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पितृपक्ष (भाग छः) यानि प्रायश्चित दिवस, श्राद्ध के समय में क्या करें क्या नहीं? कोई शुभ कार्य करने से क्या हो सकता है नुकसान? बता रहे हैं श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज

 

 

 

 

पितृपक्ष यानि श्राद्ध शुरू हो चुके हैं। श्राद्धों की हिन्दू धर्म में बहुत मान्यता है। इन दिनों बहुत से ऐसे कार्य होते हैं जो नहीं किये जाते, शुभ कार्य या कोई नया कार्य इन शार्द्धों में वर्जित माना गया है।

 

तो आइए श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज से जाने कि श्राद्धों में किस प्रकार पूजा पाठ करें? किन चीजों से बचें? या कोई नया कार्य या शुभ कार्य करने से पहले किन बातों का ख्याल रखें? क्या श्राद्धों में शुभकर्म किये जा सकते हैं?
इस प्राकर के जो भी सवाल मन में हैं श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज हर सवाल का जबाव देंगे।

 

 

 

पितृपक्ष (भाग-पांच), सोलह दिवस यानि पूर्णिमा से अमावस तक, पितृऋण से मुक्ति का ज्ञान एवं रहस्य, जानें पूजा विधि और महामंत्र, श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज की जुबानी…

पितृपक्ष (भाग-पांच), सोलह दिवस यानि पूर्णिमा से अमावस तक, पितृऋण से मुक्ति का ज्ञान एवं रहस्य, जानें पूजा विधि और महामंत्र, श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज की जुबानी

 

 

स्वामी जी के अनुसार अपने पितरों की आत्मा को शांति देने का सही समय है यही श्राद्ध पक्ष होता है। ऐसा माना जाता है कि इस समय सूर्य दक्षिणायन होता है, जिस कारण आत्माओं की मुक्ति का मार्ग खुल जाता है। और यदि इस दौरान श्राद्ध पाठ किया जाए, तो प्रेत योनि में जूझ रही आत्माओं को मुक्ति दिलवाकर अगले चरण तक पहुंचाया जा सकता है।

श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के अनुसार श्राद्ध पक्ष में मांगलिक कार्य यानी सगाई और शादी से लेकर गृह प्रवेश निषेध है, लेकिन श्राद्ध में खरीदारी अशुभ नहीं शुभ है। इससे पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है।

 

श्राद्धों के बारे में स्वामी जी विस्तारपूर्वक बता रहे हैं। पितृपक्ष यानि प्रायश्चित दिवस 2018 श्राद्ध की तिथियों और पूजा विधि के बारे में बता रहे हैं,और क्या इस पितृपक्ष में कोई नया कार्य या नई वस्तु नहीं खरीदनी चाहिए?

 

[भाग-6]

जन्मकुंडली के सभी 12 प्रकार के पितृ दोष से मुक्ति पाने का सबसे सही समय होता है पितृपक्ष। इस पक्ष में किए गए श्राद्ध कर्म और दान-तर्पण से पितृों को और स्वयं को भी तृप्ति मिलती है। वे प्रसन्न होकर अपने वंशजों को सुखी और संपन्न जीवन का आशीर्वाद देते हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करने की परंपरा हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। इस साल श्राद्ध 25 सितंबर से शुरू हो रहे हैं।

1-श्राद्ध कर्म के लिए यह है आवश्यक है की:-

श्राद्ध करने के अपने शास्त्रगत नियम होते हैं। श्राद्ध पक्ष हिंदी कैलेंडर के अश्विन महीने के कृष्ण पक्ष में आता है। जिस तिथि में जिस परिजन की मृत्यु हुई हो, उसी तिथि में उनका श्राद्ध कर्म किया जाता है। श्राद्ध कर्म पूर्ण विश्वास, श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाना चाहिए। पितृों तक केवल हमारा प्रसन्नता से किया दान ही नहीं बल्कि हमारे व्यक्तिगत भाव भी पहुंचते हैं।

2-अमावस्या को किया जाता है इनका श्राद्ध:-

जिन लोगों की मृत्यु के दिन की सही-सही जानकारी न हो, उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि को करना चाहिए। सांप काटने से मृत्यु और बीमारी में या अकाल मृत्यु होने पर भी अमावस्या तिथि को श्राद्ध किया जाता है। जिनकी आग से मृत्यु हुई हो या जिनका अंतिम संस्कार न किया जा सका हो, उनका श्राद्ध भी अमावस्या को करते हैं।कारण है की-हमें उनकी मृत्यु तिथि पता नहीं, यहीं हमारा पता नहीं होने का अज्ञान ही ये अमावस्या तिथि में श्राद्ध कर्म करना अर्थ है।

3-चतुर्थी तिथि को होता है इनका श्राद्ध:-

जिसने आत्महत्या की हो, जिसकी हत्या हुई हो, ऐसे लोगों का श्राद्ध चतुर्थी तिथि को किया जाता है। जिन लोगों की चतुर्थी तिथि में मृत्यु हुई है उनका तर्पण भी इसी चतुर्थी तिथि को किए जाने का विधान है।कारण है की-चतुर्थी का अर्थ ही-अर्थ+काम+धर्म+मोक्ष है।यो इन लोगो के चार धर्म और चार कर्म अभी अधूरे रह गए।यो इन लोगों के प्रति किये जप तप दान कर्म से उन्हें इस चतुर्थी के दिन ही हमारे द्धारा किये पूण्य कर्म से अपने शेष कर्म का फल प्राप्त होता है और आगामी जन्म में पूर्वजन्म का शेष कर्म का शेष कार्य करने की शक्ति प्राप्त होती है।यो चतुर्थी में श्राद्ध करते है।

4- मृत्यु को प्राप्त सुहागिनों का श्राद्ध:-

पति जीवित हो और पत्नी की मृत्यु हो गई हो, ऐसी महिलाओं का श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाता है। इसे मातृनवमी कहा गया है। इस दिन महिलाओं को भोजन कराने का विधान है।कारण नवम भाव इष्ट और धर्म का होता है।और इस दिन किया तप जप दान का फल इन्हें आगामी जन्म में और भी अच्छे गृहस्थी धर्म के सुहागन और जीवन साथी के साथ अधिक प्रेममयी समय व्यवतीत करने के पालन को प्राप्त होता है।

5-एकादशी को श्राद्ध:-

एकादशी में उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है, जिन्होंने संन्यास ले लिया हो। इसके अतिरिक्त जिनकी इस तिथि में मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध इस तिथि में होगा।जन्मकुंडली में ग्यारहवां भाव प्रत्येक प्रकार की आय यानि कमाई का यानि काम का होता है,यहाँ सन्यासियों को अभी उनकी जप तप सेवा की जो निस्वार्थ भाव से की गयी कमाई यानि आत्मकमाई के शेष फल को कहा गया है।यो वो हमारे द्धारा उन्हें बल मिले और उन्हें अपनी सिद्धि पूरी हो,इसके लिए एकादशी में श्राद्ध कर्म किया जाता है।

6- जानें किस दिन होगा श्राद्ध कर्म:-

पितृपक्ष से एक दिन पहले पूर्णिमा तिथि को सभी कुल गुरुओं और वर्तमान जन्म के गुरुओं और इष्ट और देवताओं की पूजा की जाती है, इस दिन इनके नाम से तर्पण किया जाता है। यह तिथि इस साल 24 सितंबर को है। 25 तारीख को दोपहर से पितरों का श्राद्ध शास्त्रों के अनुसार उचित होगा।

7- 2018 में श्राद्ध की तिथियां:-

24 सितंबर 2018 को पूर्णिमा श्राद्ध
25 सितंबर 2018 प्रतिपदा श्राद्ध
26 सितंबर 2018 द्वितीय श्राद्ध
27 सितंबर 2018 तृतिया श्राद्ध
28 सितंबर 2018 चतुर्थी श्राद्ध
29 सितंबर 2018 पंचमी श्राद्ध
30 सितंबर 2018 षष्ठी श्राद्ध
1 अक्टूबर 2018 सप्तमी श्राद्ध
2 अक्टूबर 2018 अष्टमी श्राद्ध
3 अक्टूबर 2018 नवमी श्राद्ध
4 अक्टूबर 2018 दशमी श्राद्ध
5 अक्टूबर 2018 एकादशी श्राद्ध
6 अक्टूबर 2018 द्वादशी श्राद्ध
7 अक्टूबर 2018 त्रयोदशी श्राद्ध, चतुर्दशी श्राद्ध
8 अक्टूबर 2018 सर्वपितृ अमावस्या

8- एक साल में इतने अवसरों पर कर सकते हैं श्राद्ध:-

शास्त्रों के अनुसार, अपने पितृगणों का श्राद्ध कर्म करने के लिए एक साल में 96 अवसर मिलते हैं। इनमें साल के बारह महीनों की 12 अमावस्या तिथि को श्राद्ध किया जा सकता है। साल की 14 मन्वादि तिथियां, 12 व्यतिपात योग, 12 संक्रांति, 12 वैधृति योग और 15 महालय शामिल हैं। इनमें पितृपक्ष का श्राद्ध कर्म उत्तम माना गया है।

यो सभी को प्रसन्नता से और मुक्त भाव से श्राद्ध कर्म करना चाहिए और अधिक सेअधिक अपने गुरु मंत्र या इष्ट मंत्र का जप अपने पितरों के नाम से करना चाहिए।तो सभी प्रकार के पितृदोष समाप्त होकर सभी भौतिक और आध्यात्मिक लाभ हमें प्राप्त होते है।
पितृपक्ष यानी श्राद्ध पक्ष में नई वस्‍तु खरीदना शुभ है या फिर अशुभ। इसको लेकर ज्योतिष विद्वानों और सामाजिक लोगों में दो प्रकार के मत हैं। कुछ लोग नई वस्‍तु खरीदने से मना करते हैं और कुछ का मानना है कि श्राद्ध में नई वस्‍तुएं खरीदने से पितरों की कृपा बनी रहती है।आओ जानते हैं, क्‍या हैं हिंदू धर्म की मान्‍यताएं पितृपक्ष यानि श्राद्ध में नई वस्तु की खरीदारी को लेकर मतधारणाएँ…

1-क्या इसलिए माना जाता है अशुभ:-

अनेक विद्वानों का मानना है कि पितृपक्ष में हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं। ऐसे में हमें पितृ सेवा के कर्म से विमुख होकर नई वस्‍तु की ओर अपना ध्यान और खरीददारी करते देख पितृ आहत होकर दुखी होंगे।और हमें अपना आशीष नहीं देंगे।

2- पितरों का कर्ज उतारने का समय है ये:-

इन श्राद्ध पक्ष को शास्त्रों में पितरों का कर्ज उतारने के समय के तौर पर देखा जाता है। इस दौरान 16 दिन की इस अवधि में उनका श्राद्ध करके, तर्पण करके, दान पुण्‍य करके उनका कर्ज उतारने का हम प्रयास करते हैं। ऐसे में यह माना जाता है कि- हम पहले से ही पितरों के कर्ज में डूबे हैं और कर्ज में डूबा व्‍यक्ति नई वस्‍तु कैसे खरीद सकता है?

3- कुछ लोग मानते हैं नई वस्तु की खरीद को शुभ:-

अनेक विद्वान ऐसे भी हैं जो पितृपक्ष में नई वस्‍तु की खरीद को अशुभ नहीं मानते। उनका यह मानना है कि- पितृपक्ष में हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और हमें अपना सभी प्रकार का सुखी रहने का आशीर्वाद देते हैं। ऐसे में हमें नई वस्‍तुओं की खरीद और कुछ नया निर्माण करते देखकर भला वे दुखी क्‍यों होंगे?

4-गणेश आराधना के बाद प्रारम्भ होता है,श्राद्ध उत्सव:-

श्राद्ध पक्ष का प्रारम्भ गणेश चतुर्थी के बाद और अंत माता दुर्गा की पूजा से होता है। तो यदि श्राद्ध पक्ष के आरंभ से पहले हम सभी शुभ कर्मों के देव गणपति की पूजा कर चुके हैं, तो वह अशुभ कैसे हो सकती हैं?

5-श्राद्ध पक्ष के पीछे मां दुर्गा भी खड़ी हैं तो इसे अशुभ मानने का कोई कारण नहीं है। श्राद्ध पक्ष में हमारे पूर्वज सूक्ष्‍म रूप में हमारे आस-पास ही रहते हैं और हमें आशीष देते हैं।
पर मूल मान्यता यही है की-कहीं हम पितरों के प्रति अपना दायित्त्व नहीं भूल जाये और नए कामों में नहीं लगे रह जाये।जिससे इनके प्रति हमारा किया जप तप दान शेष रह जायेगा।यो जप तप दान करते हुए भी नवीन कार्य किया जा सकता है।कार्य करते में अपने पितरों को स्मरण रखे तो, यो पितृ दोष नहीं लेगा

 

इस लेख को अधिक से अधिक अपने मित्रों, रिश्तेदारों और शुभचिंतकों को भेजें, पूण्य के भागीदार बनें।”

अगर आप अपने जीवन में कोई कमी महसूस कर रहे हैं घर में सुख-शांति नहीं मिल रही है? वैवाहिक जीवन में उथल-पुथल मची हुई है? पढ़ाई में ध्यान नहीं लग रहा है? कोई आपके ऊपर तंत्र मंत्र कर रहा है? आपका परिवार खुश नहीं है? धन व्यर्थ के कार्यों में खर्च हो रहा है? घर में बीमारी का वास हो रहा है? पूजा पाठ में मन नहीं लग रहा है?
अगर आप इस तरह की कोई भी समस्या अपने जीवन में महसूस कर रहे हैं तो एक बार श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के पास जाएं और आपकी समस्या क्षण भर में खत्म हो जाएगी।
माता पूर्णिमाँ देवी की चमत्कारी प्रतिमा या बीज मंत्र मंगाने के लिए, श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज से जुड़ने के लिए या किसी प्रकार की सलाह के लिए संपर्क करें +918923316611

ज्ञान लाभ के लिए श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के यूटीयूब  https://www.youtube.com/channel/UCOKliI3Eh_7RF1LPpzg7ghA  से तुरंत जुड़े

 

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श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी महाराज

जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः


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