वेलेंटाइन सप्ताह के अंतिम आठवें दिन हैप्पी वेलेंटाइन डे के विषय में प्रेमा भक्ति की भारतीय संस्कृति की व्याख्या करते सत्यसाहिब कहते हैं कि…. ..
वेलेंटाइन सप्ताह पाश्चात्य नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति में भी प्रेमा भक्ति के रूप में बसंत ऋतू के बसंत पंचमी के सप्ताह में मनुष्य के स्त्री और पुरुष के परस्पर प्रेम की पराकाष्ठा के कारको को उद्धभाषित करता मनाया जाता था,क्योकि वेद अपनी आत्मा की चरमावस्था परमात्मा को जानो और उसके मध्य द्धैत भाव है,उसे एक दूसरे के प्रेम से परिपूर्ण करो,तभी अद्धैतावस्था की प्राप्ति होगी।और इसी सबको रख कर चैत्र आदि 12 प्रेम पर्व दिवस और व्रत आदि है।
जो आगे चलकर केवल ईश्वर और जीव भक्त के बीच परमभक्ति के रूप में सिमट कर रह गए।यो इस प्रेमा सप्ताह के आठवें अष्टमी दिन जो की मनुष्य का भौतिक अष्ट मनोरथ-काम से अहं तक हैं।उनकी शुद्ध का सप्ताह है,जो गुप्त नवरात्रि के क्रम में पड़ता है।और अंत में नवम दिन जो मोक्ष दिन है।की अब केवल आत्मसमर्पित होकर प्रेमा अद्धैत अवस्था में स्थिर हो जाओ।इसी अंतिम प्रेमा आत्मनिवेदन से आत्मसमर्पण तक के महाभाव में शेष रहो।यो इसी दिन को प्रेम के विशुद्ध रूप प्रेमदिवस दिन या पश्चमी संस्कृति में वेलेंटाइन डे यानि प्रेम आत्मनिवेदन दिन के रूप में मनाते है। प्रेमा भक्ति के नवधा भक्ति में जो प्रेमाभक्ति के 9 प्रेम स्तर बताये है- श्रवणं कीर्तनं प्रेमः स्मरणं पादसेवनम्।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥
उनमें से अंतिम है- आत्मनिवेदन की स्थिति का विशिष्ठा द्धैत प्रेमा भाव।यानि दो भी है-और उनके मध्य प्रेम भी है और दोनों एक दूसरे में प्रेमालीन होते भी अपने अपने व्यक्तित्व में स्वतंत्र भी है।क्योकि एक दूसरे में प्रेमालीन होने से प्रेम की परिपूर्णता का मूल आनंद लेना नहीं बनता है।ये बड़ा गूढ़ विषय है।यो इसी प्रेम पराकाष्ठा की प्राप्ति के पहले-मध्य और अंत और उसके उपरांत इससे स्वतंत्र होने की अवस्था की पहली अवस्था को आत्मनिवेदन-दूसरी को प्रेमालय-तीसरी को केवल प्रेमस्थिति-चौथी को प्रेमात्मा कहते है।और यही प्रेम जीवन से अर्थ से मोक्ष तक की प्राप्ति और जीवन का प्रेम सुख है।और यही वेलेंटाइन यानि वेळ माने शुभ और एन्टाइन यानि चरमावस्था अर्थात प्रेम के विशुद्ध शुभत्त्व की चरमावस्था ही वेलेंटाइन संत अवस्था है।और इसी के उपलक्ष्य में पाश्चात्य भक्ति में इस अवस्था को प्राप्त मनुष्य को वेलेंटाइन और इसकी प्राप्ति करने वाले को संत यानि जिसने अपना अनन्त विस्तार कर लिया हो,उसे संत कहते है इसी आत्मनिवेदन यानि वेलेंटाइन डे पर अपनी इस कविता से प्रेमिकों के चरम जीवंत प्रेम दर्शन को देने वाले राधे कृष्ण प्रेम प्रसंग के इस पक्ष को दर्शाते कह रहें हैं-सत्यसाहिब जी..
!!वेलेंटाइन डे!!
[एक प्यार ए सफ़र-8]
समा कर हम तुम दोनों
प्यार ए इज़हार से इकरार।
इश्क़ चढ़ा परवान बन बारिश
भीग गए इस प्यार की फ़ुवार।।
मुबारक़ कौन कहे
किससे कहे,बचा ना कोई।
ख़याल हक़ीक़त बन गए
खिल महक गयी जिंदगी सोयी।।
बिछुड़ना मिलना और शिक़वे गिले
कसक कशिश तन्हां रुसवाई।
रज़ा सजा अजा कज़ा का मजा
रूह ए सदा हुयी बिदाई।।
बनी उदास थकन मुस्कान
दुरी मजबूरी बनी जहां सुहान।
खुदगर्ज़ी मर्ज़ी फ़र्जी रही नहीं
यो जीना बना खुशनुमा जहान।।
कौन किसका ज़िस्म
कौन किसकी जां।
कौन नहीं रहा मिट कहाँ
अब इश्क़ रौशन है बन जानेजां।।
मैं कौन हूँ ये जना
मैं एक हो गया घना।
रौशन हुए एक रूहे बन
ना सदा को हाँ बना।।
सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज