
दिल्ली की सत्ता से बाहर चल रही बीजेपी का इस बार बनवास खत्म हो सकता है। या यूं कहें खत्म होने वाला है। क्योंकि तमाम एग्जिट पोल्स की माने तो दिल्ली की जनता ने इस बार भाजपा को बंपर जीत दिलाई है। 27 साल से सत्ता से बाहर चल रही बीजेपी 1993 के बाद एक बार फिर दिल्ली की सत्ता पर काबिज होती दिख रही है।
और इसकी वजह भी है क्योंकि दिल्ली की सत्ता तक पहुंचने के लिए बीजेपी ने इस बार हर संभव प्रयास किए हैं। एग्जिट पोल में बीजेपी नेताओं की मेहनत रंग लाती नजर आ रही है। दिल्ली में बीजेपी की सत्ता में वापसी होती दिख रही है। इस तरह दिल्ली में 27 साल से चला आ रहा सत्ता का वनवास बीजेपी खत्म करती दिख रही है। बीजेपी चुनावी बाजी भले ही जीत रही हो और सत्ता पर काबिज होने की फिराक में हो, लेकिन सवाल है कि दिल्ली की उन 11 सीटों को भी जीतने में कामयाब होगी, जिन पर कभी भी ‘कमल’ नहीं खिल सका है?
इस बार दिल्ली में किसकी सरकार, बीजेपी, आम आदमी पार्टी या कांग्रेस… तीनों ही दल अपनी अपनी जीत के दावे कर रहे हैं लेकिन एग्जिट पोल तो भर भरकर बीजेपी को जीत दिला रहा है 2020 के विधानसभा चुनावों में 62 सीट जीतने वाली आप क्या इस बार अपनी जीत पर कायम रह पाएगी? क्या 8 सीट जीतने वाली बीजेपी 36 सीटों के जादुई आंकड़े को छू पाएगी?
कई साल दिल्ली की सत्ता में रहने वाली कांग्रेस क्या शून्य से 36 तक पहुंच पाएगी।
खैर जो भी हो ये अब कल सुबह यानी 8 फरवरी को दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों के नतीजे आ जाएंगे और यह भी साफ हो जायेगा कि दिल्ली में भाजपा, आप या कांग्रेस तीनों में से कौन बाजी मारता है।
दिल्ली की जनता इस बार किसे चुनती है ये कल यानी 8 फरवरी को पूरी तरह से साफ हो जाएगा। लेकिन एग्जिट पोल ने आम आदमी पार्टी और केजरीवाल के दिन का चैन और रातों की नींद हराम कर दी है।
केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में विधानसभा 1991 में बहाल हुई है, जिसके बाद से दिल्ली में सात बार चुनाव हो चुके हैं और अब आठवीं बार चुनाव हुआ है. बीजेपी सिर्फ एक बार 1993 में सरकार बना सकी है।
दिल्ली की सत्ता में वापसी की लड़ाई को बीजेपी ने जोरदार तरीके से लड़ा और सियासी माहौल को काफी हद तक अपने पक्ष में करने में कामयाब रही, जिसके चलते एग्जिट पोल में बीजेपी की बल्ले नजर आ रही है। इसकी फेहरिस्त में बीजेपी ने उन सीटों को भी जीतने का खास प्लान बनाया था, जिन पर वो कभी भी जीत नहीं सकी थी। बीजेपी ने दलित वोटों को साधने के लिए अपने दलित नेताओं को लगाया। बीजेपी ने अपने प्रत्येक नेता अपने दायित्व वाले क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर प्रबुद्ध लोगों, आरडब्ल्यूए के सदस्यों, मंदिरों के पुजारियों व अन्य संस्थाओं के प्रतिनिधियों के साथ बैठक कर उन्हें पार्टी के साथ जोड़ने के लिए मशक्कत की।
वहीं, बीजेपी अधिक मुश्किल मुस्लिम बहुल ओखला, मटिया महल, सीलमपुर और बल्लीमरान सीट पर कमल खिलाने के लिए उतरी थी। बीजेपी ने किसी भी मुस्लिम बहुल सीट पर कोई भी मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा। विपक्ष दलों से मुस्लिम कैंडिडेट थे, जहां पर बीजेपी ने अपना हिंदू प्रत्याशी उतारा। इस तरह बीजेपी ने मुस्लिम बनाम मुस्लिम की लड़ाई में हिंदू दांव चलकर सारे समीकरण बदलने का दांव चला। इसके अलावा मुस्लिम बहुल सीटों पर AIMIM के जमकर प्रचार करने का भी लाभ बीजेपी को हो सकता है।