खैर अभी हाल ही में एक वक्त ऐसा भी था जब देश के 29 में से 20 राज्यों में बीजेपी का प्रत्यक्ष या परोक्ष शासन था। लेकिन अब यह 17 राज्यों में सिमट गया है। (16 राज्य थे एक जबरन छीना गया यानी महाराष्ट्र है।)
बीजेपी की यही कोशिश झारखंड में चल रही है और कुछ-कुछ कोशिशें छत्तीसगढ़ में भी हो रही हैं।
लेकिन इन कोशिशों के बीच बिहार हाथ से निकलने की तैयारी कर रहा है। यही वजह है कि भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह पटना में डेरा जमाए हुए हैं। बिहार में लगभग 1 महीने से चल रही उठापटक अब अपने अंतिम चरण पर है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नड्डा और शाह से दूरी बना ली है। वहीं जेडीयू और आरजेडी के बीच की दूरी थोड़ी कम होती दिखाई दे रही है। दोनों ही पार्टियों के नेता सिर्फ बीजेपी पर हमलवार हैं लेकिन एक दूसरे के खिलाफ बयान बाजी करने से बच रहे हैं।
जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने भी शनिवार को खुला ऐलान कर दिया कि उनकी भी पार्टी सभी 243 सीटों पर तैयारी कर रही है। ललन सिंह ने कहा कि बीजेपी चाहे तो 200 क्या सभी सीटों पर तैयारी कर सकती है। उन्होंने कहा कि सभी दल तैयारी करने को स्वतंत्र हैं। वहीं जब ललन सिंह से जब बीजेपी और जेडीयू के रिश्तों को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि गठबंधन की मजबूती को किसी तराजू पर तौला नहीं जा सकता है।
बता दें कि बिहार की राजनीति में पिछले कुछ महीनों से अंदर ही अंदर काफी कुछ पक रहा है। पिछले कुछ समय से सरकार में शामिल बीजेपी और जेडीयू के नेताओं के बीच कई मौकों पर जुबानी जंग सामने आ रही है। वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों के बीच भी खिचड़ी पक रही है। इसी क्रम में जून में बिहार में बड़ा राजनीतिक उलटफेर सामने आया था असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के 5 में से 4 विधायक राजद में शामिल हो गए थे। ऐसे में सदन में पार्टियों का समीकरण बदल चुका है। दूसरी ओर बीजेपी और जेडीयू के नेताओं के बीच चल रही अंतर्कलह भी जगजाहिर है। तो सवाल ये है कि कुछेक ऐसे समीकरण और बने तो क्या सत्ता भी बदल जाएगी?
बता दें कि वर्ष 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बन के उभरी थी, लेकिन बावजूद इसके सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पाई।
बिहार विधानसभा में 243 सीटें हैं। जिसमें भाजपा गठबंधन यानी एनडीए के पास कुल 126 विधायकों हैं। जिसमें भाजपा के पास 77, जेडीयू के पास 45, हम के कुल 4 विधायक। लेकिन हम के जीतन राम मांझी भी भाजपा के ऊपर हमलावर होते रहते हैं। अब ऐसे में 4 विधायक हम के अलग हो जाते हैं तो भाजपा गठबंधन खतरे के निशान पर होगा। अब ऐसे में कोई भी विधायक भाजपा से गठबंधन से अलग हुआ तो सरकार अल्पमत में आ जाएगी।
अगर हम आपको बिहार की राजनीति को थोड़ा विस्तार से बताएं तो विधानसभा में आरजेडी के 80 (जिसमें 76 आरजेडी के और 4 MIM के) विधायक हो गए हैं। कांग्रेस के 19 और लेफ्ट के 16 मिलाकर, महागठबंधन के पास कुल 115 सीटें हो गई हैं। वहीं बीजेपी के 77 (जिसमें बीजेपी के 73 और 3 VIP के) जेडीयू 45 और हम के 4 विधायकों को मिलाकर एनडीए के पास अब 126 विधायक हैं। यानी उसके पास 122 के जादुई आंकड़े से 4 सीटें ज्यादा है। महागठबंधन जादुई आंकड़े से दूर महज 7 सीटें दूर है।
भाजपा नहीं चाहती कि बिहार की सत्ता उसके हाथ से खिसके। लेकिन जेडीयू की नाराजगी कहीं न कहीं इस खाई को और गहरी कर रही है।
आरजेडी को सरकार बनाने के लिए एनडीए के खेमे से कम से कम 7 विधायक तोड़ने होंगे। एनडीए से 7 विधायक कम हो जाएं तो उनके पास 119 सीटें बचेंगी और एक निर्दलीय को साथ लेकर भी वह जादुई आंकड़े से दूर रह जाएगी।
खैर समीकरण तो बहुत कुछ कहते हैं। अब देखना यह है कि मजबूरी का गठबंधन अपने कार्यकाल को ऐसे ही पूरा कर पाता है या नीतीश कुमार अपनी की गई भूल को सुधारना चाहते हैं। वो भूल क्या है यह हमें बताने की जरूरत नहीं है।
ब्यूरो रिपोर्ट : मनीष कुमार अंकुर, पटना