“उत्तराखंड में भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले स्वतंत्र पत्रकार राजीव प्रताप सिंह की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत ने पूरी पत्रकारिता जगत को हिला कर रख दिया है।“
राजीव ने 11 दिन पहले अपने यूट्यूब चैनल ‘दिल्ली-उत्तराखंड लाइव‘ पर उत्तरकाशी के एक सरकारी अस्पताल की बदहाली को उजागर करते हुए वीडियो पोस्ट किया था।
उनका वीडियो अस्पताल के कर्मचारियों द्वारा शराब पीने और मरीजों की जान से खिलवाड़ करने के आरोपों पर आधारित था।
उनकी पत्नी का कहना है कि वीडियो के वायरल होने के बाद उन्हें लगातार जान से मारने की धमकियां मिल रही थीं। राजीव अक्सर ऐसे वीडियो बनाते थे, जिससे भ्रष्ट अधिकारियों और सिस्टम की आंखों में किरकिरी होती थी।

वीडियो की कुछ अहम बातें:
- डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल उत्तरकाशी के ट्रामा सेंटर की छत पर शराब की बोतलें पड़ी मिलीं।
- अस्पताल में गंदगी और लापरवाही फैली हुई थी।
- सीढ़ियों पर कुत्तों की वजह से मरीज ऊपर नहीं जा पा रहे थे।
राजीव ने वीडियो में कहा था, “यहां हॉस्पिटल तो अब मदिरालय बन गया है, और डॉक्टर्स, CMS, CMO कभी राउंड पर नहीं आते।”
मौत की संदिग्ध परिस्थितियाँ:
18 सितंबर की रात राजीव अपनी कार से गंगोत्री क्षेत्र लौट रहे थे। उनके साथी रास्ते में उतर गए। अगले दिन उनकी कार गंगोत्री नदी के किनारे मिली, लेकिन राजीव का कोई सुराग नहीं था। परिवार ने तुरंत गुमशुदगी दर्ज कराई, और 10वें दिन, 28 सितंबर को उनका शव बरामद हुआ।
उनकी मौत ने उत्तराखंड में पत्रकारों की सुरक्षा और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की चुनौती पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह सिर्फ एक हादसा था या उनके काम का परिणाम?
उत्तराखंड में पत्रकारिता और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में इस मामले ने संसदीय और प्रशासनिक ध्यान आकर्षित किया है। अब सवाल उठता है कि कौन देगा पत्रकारों को सुरक्षा और संरक्षण, ताकि वे निर्भीक होकर भ्रष्टाचार को उजागर कर सकें।
एक्सक्लूसिव रिपोर्ट : मनीष कुमार अंकुर
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