प्रवासी भारतीय दिवस भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष 9 जनवरी को मनाया जाता है। इसी दिन महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से स्वदेश वापस आये थे। इस दिवस को मनाने का प्रारम्भ वर्ष 2003 से हुआ। प्रवासी भारतीय दिवस को मनाने का अद्धभुत वैचारिक योजना स्वर्गीय लक्ष्मीमल सिंघवी जी की रही थी।सबसे पहला प्रवासी भारतीय दिवस 8-9 जनवरी 2003 को नयी दिल्ली में आयोजित हुआ था।
साल 2019 में यह सम्मलेन वाराणसी में आयोजित किया गया था इस सम्मेलन के लिए अनेको प्रसिद्ध बड़े-बड़े व्यापारिक उद्योगपति और कई राज्यों के मुख्यमंत्री भी इस अवसर पर पधारे ओर अपना सहयोग दिया।इस दिवस पर मुख्यतया तीन दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। इसमें अपने क्षेत्र में विशेष उपलब्धि प्राप्त करने वाले भारतवंशियों का विधिवत सम्मान किया जाता है तथा उन्हें प्रवासी भारतीय सम्मान से नवाजा जाता है। यह आयोजन भारतवंशियों से सम्बन्धित विषयों और उनकी समस्यायों की चर्चा के लिए ये सर्वश्रेष्ठ मंच भी है।अप्रवासी भारतीयों की भारत के प्रति विकाशील सोच, उनकी सांस्कृतिक भावनाओं की अभिव्यक्ति के साथ ही उनकी अपने देशवासियों के साथ उन्नतिकारक सकारात्मक बातचीत के लिए एक मंच उपलब्ध कराना है।
भारतवासियों को अनेक देशों में बसे अप्रवासी बंधुओं की सभी प्रकार की सामाजिक राजनीतिक व्यवसायिक आदि उपलब्धियों के बारे में बताना तथा अप्रवासियों को देशवासियों की उनसे क्या ओर कैसे अपेक्षाएं है उन सबसे से अवगत कराना है।
विश्व के लगभग 110 देशों में अप्रवासी भारतीयों का एक नेटवर्क बनाना एक भविष्य उद्धेश्य है।
भारत का दूसरे देशों से बनने वाले मधुर संबंध में अप्रवासियों की भूमिका के बारे में आम लोगों को बताना है।
भारत की भावी युवा पीढ़ी को अप्रवासी भाईयों से जोड़ना मुख्य विषय है।
भारतीय श्रमजीवियों को विदेश में किस तरह की विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना होता है,उस सबके बारे में परस्पर विचार-विमर्श करना इस दिवस का उद्धेश्य है।
वर्ष 2021 में 16वें प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन का मुख्य विषय थीम ‘आत्मनिर्भर भारत में योगदान’ रहेगी।
इस सब विषय ज्ञान को लेकर स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी के कविता इस प्रकार से है कि,
प्रवासी भारतीय दिवस पर ज्ञान कविता
गांधी जी आये अफ्रीका से
इस उपलक्ष्य मनाते ये दिवस।
ओर स्मरण करते प्रवासीजन को
जो रहते देश छोड़ विदेश जा बस।।
उन्हें परदेशी कभी न समझो
उनकी जड़ें है भारत देश।
संस्क्रति नहीं छोड़ते अपनी
घर बोलते भाषा अपनी देश।।
अपनाते विदेश नियम संगत को
ओर सहयोग वहां उन्नति देते।
परिश्रम करते झुंझ परिस्थिति
अपना बना उसे अनुकूल कर लेते।।
उनकी उपलब्धियों से हम सीखें
ओर जुड़े उनके साथ ले दे हाथ।
विकास बने और बनाये स्वदेश
नई तकनीकों से उन संग बना नात।।
उनकी समस्याओं से हो अवगत
ओर वे भी जाने देश के हाल।
दोनों की एक दूजे हो संगत
तब देश हो गर्वित ऊंचा कर भाल।।
सम्बन्ध जोड़े सूचना क्रम से
जहां जहां है भारत प्रवासी।
तभी सहयोग मिले सके दें
विपदा में हो सब स्ववासी।।
भावी युवा पीढ़ी जुड़े स्वदेश
ओर संस्क्रति का हो समावेश।
जड़ सदा बनी रहे उनकी
शाखा फूले फैले चाहे जिस देश।।
धन तन मन से स्वीकारें एक दूजे
नहीं लगें दूजे से लोग।
सदा स्वागत हो देश में अपने
चाहे किसी मोड़ मिल हो संयोग।।
आओ मनाये भेज संदेशे
जो अपने बसे है किन्हीं विदेश।
हम सदा तुम्हारे तुम हमारे
स्वागत है सदा ह्रदय भारत स्वदेश।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिबजी
Www.satyasmeemission.org