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शारदा यूनिवर्सिटी में एक और बेटी की चुप चीख… आखिर कब जागेगा सिस्टम?

Sharda University में छात्रा की संदिग्ध मौ*त से बवाल

ग्रेटर नोएडा की चमचमाती इमारतों के बीच बसा शारदा यूनिवर्सिटी, जहां देशभर से छात्र-छात्राएं अपने सपनों को आकार देने आते हैं। लेकिन उसी विश्वविद्यालय के छात्रावास में बीडीएस की एक होनहार छात्रा ज्योति शर्मा की लाश पंखे से लटकती मिली। ये सिर्फ एक छात्रा की मौत नहीं, बल्कि एक सुनियोजित शोषण का वो अंत था, जो शिक्षा के मंदिर में हुआ और जिसकी गूंज पूरे समाज को झकझोर देनी चाहिए।

ज्योति ने अपनी आखिरी चिट्ठी में किसी अजनबी का नाम नहीं लिखा था — उन्होंने सीधे तौर पर अपने शिक्षकों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने लिखा, “अगर मैं मर जाऊं तो पीसीपी और डेंटल मटेरियल के टीचर ही दोषी होंगे। महिंदर सर और शायरा मैम मेरी मौत की जिम्मेदार होंगी।” यह सिर्फ आरोप नहीं, एक टूटती आत्मा की चीख थी।

जब शिक्षक ही शोषक बन जाएं तो किससे उम्मीद रखें छात्र?

शिक्षक, जिन पर ज्ञान देने की जिम्मेदारी है, जिन पर एक माता-पिता अपने बच्चों को सौंपते हैं — जब वही मानसिक उत्पीड़न और अपमान के ज़रिया बन जाएं, तो शिक्षा की दीवारें हिल जाती हैं। ज्योति ने जिस दर्द में अपनी जान गंवाई, वह कोई एक दिन की घटना नहीं थी। परिवार ने कई बार बताया कि वह इन शिक्षकों के दुर्व्यवहार से परेशान थी। लेकिन विश्वविद्यालय प्रबंधन ने कोई संज्ञान नहीं लिया।

क्या शारदा यूनिवर्सिटी की चमकदार दीवारों के पीछे दब गई है इंसानियत?

घटना के बाद छात्र-छात्राएं और परिवारजन जब कैंपस के बाहर पहुंचे तो उन्हें सांत्वना की बजाय सुरक्षा बलों से जवाब मिला। कुलपति को बुलाने की जिद पर बैठे स्वजन से प्रशासन ने दूरी बनाई, संवेदना तक नहीं जताई। क्या एक छात्रा की जान इतनी सस्ती है? क्या संस्थान सिर्फ नाम और रैंकिंग से चलता है, उसकी जवाबदेही नहीं होती?

ज्योति की मां का विश्वविद्यालय के डीन को थप्पड़ मारना कोई गुस्से में किया गया कदम नहीं था — वो उस सिस्टम पर करारा तमाचा था जो अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा है।

अब सिर्फ गिरफ्तारी नहीं, जवाबदेही की मांग है

महेंद्र और शायरा जैसे शिक्षकों की गिरफ्तारी एक शुरुआत भर है। लेकिन सवाल यह है कि क्या केवल दो लोगों को बलि का बकरा बनाकर विश्वविद्यालय अपनी ज़िम्मेदारी से बच सकता है? पीड़ित परिवार अन्य तीन प्रोफेसरों की गिरफ्तारी और सख्त कार्रवाई की मांग कर रहा है, जो न्याय की पहली सीढ़ी है।

शारदा यूनिवर्सिटी जैसी संस्थानों में यदि छात्र-छात्राओं की मानसिक पीड़ा को नजरअंदाज़ किया गया, तो यह मौतें यूं ही होती रहेंगी। सवाल यही है — क्या अगली ज्योति बनने से कोई और छात्रा बचेगी?


अब वक्त है आंखें खोलने का, जवाब मांगने का, और सिस्टम को झकझोरने का।
एक बेटी चली गई… अगली को बचाने के लिए अब चुप्पी नहीं, ज़िम्मेदारी चाहिए।


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