राजस्थान में इस बार भाजपा बिना किसी चेहरे के चुनाव लड़ रही है। मतलब सिर्फ पीएम मोदी के चहरे पर राजस्थान में चुनाव लड़ा जा रहा है। इतना ही नहीं इस बार पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया को बीजेपी और खुद पीएम मोदी साइड कर रहे हैं। उनसे दूरी बना रहे हैं।
ऐसी चर्चाएं तो पहले से तेज़ थीं लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार दो जनसभाओं में मानो उन पर मुहर लगा दी।
वह जिस खुली जीप पर सवार होकर आए, उनके साथ सिर्फ़ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और सांसद सीपी जोशी थे, पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश की प्रभावशाली नेता वसुंधरा राजे नहीं थीं।
मंच का संचालन सांसद दीया कुमारी कर रही थीं. मंच पर प्रदेश भाजपा की कई महिला नेताएं भी मौजूद थीं. दीया कुमारी को संघनिष्ठ नेताओं का अप्रत्याशित समर्थन भी पार्टी के पुराने पहरेदारों को चौंका रहा है।
प्रधानमंत्री ने जयपुर की सभा में न तो पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का ज़िक्र किया और न ही उनके नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती भाजपा सरकार की उपलब्धियों का।
राजस्थान में चेहरा विहीन भाजपा की इस स्थिति को लेकर चर्चाएं छिड़ गई हैं. भाजपा ने नई संसद के पहले ही सत्र में ‘नारी शक्ति वंदन विधेयक’ को दोनों सदनों में पारित करवाया है।
ऐसे समय में प्रदेश की एक ताक़तवर महिला नेता अगर अग्रणी भूमिका में नहीं दिख रही हैं तो ज़ाहिर है लोगों का ध्यान उस पर जाएगा ही।
हैरान करने वाली बात यह है कि एक अनुभवी नेता की तरह वे अपने ग़ुस्से और मनोभावों को लगातार पी रही हैं. उन्होंने अब तक ऐसी कोई प्रतिक्रिया सार्वजनिक तौर पर नहीं दी है, जिसकी उम्मीद उनसे बहुत से राजनीतिक खेमे लगाए हुए हैं।
कुछ लोग मान रहे हैं कि वसुंधरा राजे की मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से नजदिकियां कहीं न कहीं पार्टी को खटक रही हैं। वसुंधरा राजे गहलोत की करीबी मानी जाती हैं। यहाँ तक कि लोगों का कहना है कि वसुंधरा राजे की नजदिकियां कांग्रेस से ज्यादा बढ़ गई हैं। हो सकता है यही वजह हो कि पीएम मोदी और राजस्थान भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री से इतनी दूरी बना ली हों।
वसुंधरा 2003 से लगातार हर पाँच साल बाद अपनी प्रभावशाली यात्राएं प्रदेश भर में निकालती रही हैं, यह पहला मौक़ा है, जब उनके नेतृत्व में यात्रा नहीं निकली और चार दिशाओं और चार इलाक़ों में अलग-अलग यात्राएँ सामूहिक नेतृत्व में पार्टी ने निकालीं।
एक मौक़ा तो ऐसा था, जब वसुंधरा राजे के प्रतिद्वंद्वी गुलाबचंद कटारिया ने मेवाड़ में अलग से यात्रा निकालनी चाही थी तो उसे रोक दिया गया था लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं हुआ।
वैसे आपको बता दें कि राजस्थान में वसुंधरा राजे से दूरी बनाने के बाद फिलहाल भाजपा के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं है। अब ऐसे में यहां कांग्रेस को एक बार दोबारा मौका फिर मिलता नजर आ रहा है। वहीं अगर बात करें गहलोत के काम कि तो राजस्थान देश का पहला ऐसा राज्य है जिसकी सभी सरकारी योजनाएं जन-जन तक, घर-घर तक पहुंची हैं।
राजस्थान से खबर 24 एक्सप्रेस के लिए जगदीश तेली की रिपोर्ट