पश्चिमी उत्तरप्रदेश के एक ऐसे ही बाबा की हम कहानी आपको बताने जा रहे हैं।
श्रुष्टि चौधरी (काल्पनिक नाम) के बच्चे नहीं हो रहे थे। लेकिन वो दिखने में बला की खूबसूरत थी, जो उसे देखता वो देखता रह जाता।
लेकिन बच्चा न होने की वजह से उसके पति व ससुराल वालों से उसकी अनबन चल रहा थी जिसको लेकर श्रुष्टि काफी परेशान रहती थी। श्रुष्टि को एक दिन उसकी किसी जान पहचान वाली औरत ने एक बाबा के बारे में बताया उसने श्रुष्टि को बताया कि बाबा बिना तुम्हारे बारे में जाने सब कुछ बता देते हैं। हो सकता है तुम्हारी परेशानियों का हल बाबा के पास हो। तुम एक बार बाबा के पास होकर आओ। चूंकि श्रुष्टि अपने पति व ससुराल की तरफ से काफी परेशान थी और उसके बच्चे भी नहीं हो रहे थे। श्रुष्टि बाबा के आश्रम जा पहुंची। वहां बाबा सामने एक सोफे नुमा कुर्सी पर जप करने की मुद्रा में दिखा। बाबा की आंखें बंद थी। श्रुष्टि ने बाबा के पैर छुए। बाबा ने बन्द आंखों से श्रुष्टि को इशारा किया कि वहां थोड़ी दूर जाकर बैठ जाओ। श्रुष्टि सरक कर बाबा से थोड़ा दूर बैठ गयी। बाबा मौन मुद्रा में बैठा था। श्रुष्टि लगभग 15 मिनट तक वहां बैठी रही और बाबा की आंखें खुलने का इंतजार करती रही। इसके बाद एक अधेड़ उम्र की महिला आई और उसने श्रुष्टि के हाथ में एक किताब थमाई, बोली, “बाबा जप कर रहे हैं किसी भक्त की परेशानी को दूर कर रहे हैं”। श्रुष्टि बाबा के चमत्कारों और बाबा के द्वारा पैदा किये हुए एक नए भगवान के नाम की महिमा पढ़ने लगी। श्रुष्टि ने किताब वाले भगवान का नाम न कभी पहले सुना था और न ही भगवान की तस्वीर ही देखी थी। श्रुष्टि को देवी देवताओं में बहुत आस्था थी उसे लगा कि ये भी किसी देवता के अवतार होंगे।
श्रुष्टि के मन में बहुत सारे विचार चल रहे थे और वो किताब भी पढ़ रही थी उसे पता ही नहीं चला कि बाबा ने कब आंखें खोल दीं और वो जप से बाहर आ चुके थे। बाबा ने कहा बोलो भक्त, अब नज़दीक आकर बैठों, चूंकि श्रुष्टि दिखने में काफी सुंदर थी और ऊपर से साड़ी पहनकर बाबा के सामने गयी थी। बाबा उसकी सुंदरता का कायल हो गया वो उसे निहारे ही जा रहे थे। थोड़ी असहज हुई श्रुष्टि अपनी परेशानियों को लेकर बाबा के द्वार पहुंची थी तो उसे कुछ सूझ नहीं रहा था। श्रुष्टि की आंखों में उम्मीद भरे आंसू आ गए। इसके बाद बाबा ने उसके के सिर पर हाथ रखा और मन ही मन कोई मंत्र पढ़ा और बाबा उसकी आँखों में देखते हुए बोल उठा कि सुसराल व पति की तरफ से तुम्हें समस्या है, बच्चे नहीं हो रहे हैं। श्रुष्टि चौंक गई क्योंकि वो पहली बार बाबा से मिली थी और वो किसी को बिना बताए पहली बार आश्रम गयी थी। ये सब सुनकर श्रुष्टि की आंखों से सैलाब फुट पड़ा और वो बाबा के चरणों में नतमस्तक हो गयी। इसके बाद बाबा उसकी पीठ सहलाने लगा, श्रुष्टि रोती रही। बाबा ने उससे कहा “भक्त शांत हो जाओ अब तुम्हारी सभी समस्याएं हल हो जाएंगी”।
बाबा बोला भक्त तुम्हारे बच्चा नहीं होता है जिस कारण तुम्हें पति और सुसराल पक्ष की तरफ से परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं। इसके बाद बाबा ने उसको बहुत कुछ बताया। (श्रुष्टि के मुताबिक वो बाबा का तुक्का था, या बाबा को किसी ने बताया था वो ये सब नहीं जानती है।)
श्रुष्टि का भरोसा बाबा में बेहद बढ़ गया। बाबा ने उसे एक पुड़िया में भभूत दी और कहा कि नहाकर इसको अपने शरीर पर मल लेना और लगातार 7 दिन इन चमत्कारिक भगवान के दीपक जलाकर यज्ञ करना इससे तुम्हारे सारे दोष दूर हो जाएंगे, इसके बाद तुम्हें बच्चे के लिए और पति को काबू करने के लिए उपाय बताए जाएंगे।
श्रुष्टि बाबा के कहे अनुसार लगातार 7 दिन तक दीपक जलाने लग गयी और यज्ञ करने लग गयी। इन सात दिनों में बाबा के प्रति उसकी आस्था में लगातार इजाफा होने लगा। वो बाबा को ही भगवान मानने लग गयी। 7 दिन पूरे होने पर उसने कहा कि बाबा “अब मैं बहुत हल्का महसूस करने लगी हूँ और मेरा मन हल्का भी होने लगा है।” बाबा ने कहा कि भक्त अब बच्चे पैदा करने की पूजा का समय आ गया है। अब तुझे 3 दिन तक अपने घर में सुबह 4 बजे अपने शरीर पर भभूत मलकर इस भगवान की पूजा करनी होगी। श्रुष्टि तैयार हो गई। बाबा ने कहा कि पूजा करते हुए तुम्हें कोई देखें ना, इस बात का खास ध्यान रखना है। श्रुष्टि ने कहा कि बाबा जैसा आप कहें वैसा ही होगा। बाबा ने उसको एक पैकेट में और भभूत दी और कहा कि इसे चाय या खाने में मिलाकर लेना इससे तुम्हारी परेशानियां दूर हो जाएंगी। वो दोनों भभूत लेकर अपने घर आ गयी। चूंकि श्रुष्टि परेशान थी तो वो अपनी ससुराल से वापस आकर मायके में रह रही थी।
श्रुष्टि ने बाबा के कहेनुसार सुबह की पूजा शुरू कर दी। अब तीन दिन बीत जाने के बाद वो फिर बाबा के आश्रम जा पहुंची। बाबा ने उससे ने पूंछा कि बताओ भक्त तुम्हें कैसा लग रहा है। उसने कहा कि बाबा बहुत अच्छा फील हो रहा है अब लग रहा है कि आपके आशीर्वाद से सब अच्छा हो जाएगा। आज पति का भी फोन आया और वो बोल रहे थे कि तुम कब आओगी बहुत दिन हो गए हैं।
वो बेहद खुश थी। बाबा ने उससे कहा कि आओ आज कुछ सेवा करो, मेरी टांगें दबाओ। श्रुष्टि बाबा को बहुत मानने लगी थी उसने बाबा की टांगे दबानी शुरू कर दीं। उस दिन आश्रम से भी सब जा चुके थे क्योंकि बाबा ने आश्रम के बाहर साफ लिखा था कि 11 बजे से लेकर 4 बजे तक कोई भी आश्रम में नहीं आएगा। अगर कोई आया तो उसे बाहर भगा दिया जाएगा। सुबह 11 बजे से 4 बजे तक बाबा की मर्जी से ही आश्रम में प्रवेश मिल सकता था।
दोपहर के साढ़े बारह बज रहे थे बाबा आराम से तख्त पर लेटा हुआ था और श्रुष्टि बाबा की टांगें दबा रही थी। गर्मी बहुत थी तो उसको पसीना भी आ रहे थे। वो अपने पल्लू से पसीना पौंछती और बाबा की टांगे पूरी आस्था के साथ दबा रही थी उस दौरान श्रुष्टि ने देखा कि बाबा उसके ऊपर व उसकी छाती और कमर में झांक रहा है लेकिन आस्था से भरी हुई श्रुष्टि ने इस पर जरा भी गौर नहीं किया।
टांग दबाते-दबाते ज्यादा देर हो गयी थी और वो खुद को थोड़ा सा थका हुआ भी महसूस करने लगी। बाबा बोला भक्त अब तुम यहाँ सामने बैठ जाओ मैं तुम्हें प्रसाद दे देता हूँ। श्रुष्टि नीचे फर्श पर बैठ गयी। बाबा अपनी किचन में गया और चाय बनाकर ले आया। उसने एक ग्लास में उसको चाय दी। चाय का ग्लास पूरा भरा हुआ था, श्रुष्टि बोली बाबा मैं इतनी चाय नहीं पीती हूँ, बाबा ने कहा कि भक्त ये चाय नहीं मेरा भोग लगाया प्रसाद है। (बाबा ने चाय के बड़े ग्लास पर कुछ पढ़ा था और उससे एक घूंट पिया और श्रुष्टि को दिया।) श्रुष्टि ने प्रसाद समझकर चाय पीनी शुरू कर दी। उसे चाय बहुत अच्छी लगी और अलग ही स्वाद लगा। जबकि वो बेहद कम चाय पीती थी।
चूंकि बातों बातों में 3 बज चुके थे सुबह 8 बजे की आयी श्रुष्टि बोली बाबा अब मेरे जाने का समय हो गया है कल फिर आती हूँ। बाबा ने श्रुष्टि को पास बुलाया और उसके सिर पर कुछ मंत्र पढ़ते हुए फूंक मारी और इसके बाद पीठ पर हाथ सहलाया, लेकिन श्रुष्टि को पहली बार लगा कि बाबा का हाथ पीठ सहलाते-सहलाते उसके आगे तक आ गया और बाबा ने उसके आगे छुआ। श्रुष्टि को कुछ अजीब लगा लेकिन साथ ही लगा कि वो लगभग 20 दिन से आश्रम आ रही है ऐसा वैसा कुछ नहीं होगा।
श्रुष्टि ने अपने मन को समझाया और घर के लिए निकल पड़ी।
फिर 3-4 दिन के बाद फिर आश्रम पहुंची। उसके हाथ में मिठाई का डब्बा था और वो बेहद खुश भी थी। श्रुष्टि ने बाबा के पास पहुंचते ही सबसे पहले अपना सिर बाबा के चरणों में रखते हुए पैर छुए और फिर मिठाई बाबा के पैरों में रखते हुए बोली “आज वो मुझे लेने आये हैं”। वो बेहद खुश थी। लेकिन बाबा को यह सुनकर बेहद धक्का सा लगा। बाबा बोला भक्त तुम गलत कर रही हो। अभी तुम्हारे जाने का समय नहीं हुआ है। अभी तुम्हारी सुबह 4 बजे वाली पूजा शुरू नहीं हुई है तुम सुबह वाली पूजा करने आओ इसके बाद जाना। श्रुष्टि उस दिन बिना कुछ बोले आशीर्वाद लेकर जल्दी आश्रम से निकल गयी और पूरे दो हफ्ते तक आश्रम नहीं आयी।
दो हफ्ते बाद श्रुष्टि बाबा के आश्रम पहुंची लेकिन बाबा उससे नहीं बोला। लेकिन श्रुष्टि ने बाबा के सामने कान पकड़े हुए चुलबुले पन से बाबा से माफी मांगते बोली, क्या हुआ स्वामी मैं कहीं चली गई थी। आप नाराज मत होइए। मेरे पति मुझे लेने आये थे और उन्होंने आपके आशीर्वाद से मुझसे माफी भी मांगी थी। मैं मजबूर हो गई थी, मुझे जाना पड़ा। और हां आप यकीन नहीं करेंगे मेरी सास भी अचानक मुझे बेहद प्यार करने लगी। ये सब आपके आशीर्वाद और आपकी पूजा का फल है। बाबा जी आपने मुझे बहुत कुछ दे दिया। श्रुष्टि की बाते सुन बाबा चुप हो गया। बाबा बोला भक्त तुम खुश रहोगी अब तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा। एक काम करना जब तुम्हारा पति तुम्हें लेने आये तो उसे आश्रम लेकर आना। श्रुष्टि बोली कि वो आये हुए हैं और मैंने आपके बारे में उन्हें बात दिया है वो भी आपके दर्शन करना चाहते हैं। इस पर बाबा बोला ठीक है तुम जाओ कल पति के साथ आना।
अगले दिन श्रुष्टि अपने पति के साथ बाबा के आश्रम पहुंची। उसके पति नीलेश (काल्पनिक नाम) ने बाबा के पैर छुए और बाबा के सामने बैठ गया। बाबा बोला भक्त पास आओ तुम्हें कुछ बताया जाए। नीलेश बाबा के सामने बैठ गया। बाबा ने नीलेश से कहा कि तुम्हें जो भी समस्या है मेरे सामने ये भगवान की मूर्ती है तुम अपनी सारी समस्या बिना मुंह खोले इन्हें बता दो। नीलेश ने आंखें बंद की और अपने मन में कुछ बुदबुदाने लगा। बाबा ने नीलेश से कहा आंखें खोल लो भक्त।
इसके बाद बाबा नीलेश की आंखों में देखते हुए कहा कि बच्चे न होने की वजह से तुम और तुम्हारा परिवार बेहद परेशान है, लेकिन ये तुम्हें भी पता है कि बच्चा नहीं हो सकता है क्योंकि डॉक्टर ने मना किया है। बचपन में जो एक्सीडेंट हुआ था उससे तुम्हें दिक्कत हुई है… नीलेश चौंक गया क्योंकि ये बात तो श्रुष्टि को भी पता नहीं थी और उसकी माँ और उसके अलावा सिर्फ डॉक्टर ये बात जानता था। बाबा बोला लेकिन भक्त तू चिंता न कर सब हल हो जाएगा। इसके बाद नीलेश को लगा कि कोई साक्षात भगवान उसके सामने बैठे हैं। बाबा बोला लेकिन जो भी उपाय और पूजा बता रहा हूँ वो तुझे और श्रुष्टि को करने होंगे अगर कर पाओ तो ही हां करना। इससे पहले नीलेश कुछ कह पाता श्रुष्टि ने रोते हुए कहा कि बाबा मैंने इतना किया है मैं और सह लुंगी, आप उपाय बताएं मुझे कुछ भी करना पड़े मैं करूंगी क्योंकि किसी दूसरे की समस्या की वजह से मार मुझे पड़ी है, मैंने दुःख झेले हैं। नीलेश समझ गया कि इशारा उसी की तरफ था। बाबा बोला भक्त शांत हो जाओ अब तुम्हारे दुःख के दिन बीत गए हैं। अब सिर्फ सुख ही सुख होगा। नीलेश से बाबा ने कहा कि 2 हफ्ते की पूजा है क्या तुम या श्रुष्टि रोज कर सकते हैं। नीलेश बोला बाबा 2-3 दिन की बात हो तो मैं कर सकता हूँ ऑफिस से 2 हफ्ते की छुट्टी मिलना मुश्किल है। इतने में श्रुष्टि बोली बाबा क्या मैं कर सकती हूं क्योंकि आपने कहा था कि तुम दोनों को पूजा करनी होगी। बाबा बोला हां तुम कर सकती हो लेकिन रोज सुबह 5 बजे आश्रम आना पड़ेगा। नीलेश और श्रुष्टि ने इसके लिए हां कर दी क्योंकि नीलेश का विश्वास अब बाबा के ऊपर बहुत ज्यादा बढ़ गया था क्योंकि जो बात केवल 3 लोग जानते थे अब वो बात उसकी पत्नी भी जान गई थी। नीलेश बोला ठीक है बाबा जी मैं श्रुष्टि को 2 हफ्ते के लिए उसके मायके छोड़े देता हूँ आप उपाय करवाइये।
ये सब सुनते ही बाबा का खुशी का ठिकाना नहीं था। बाबा बोला अब तुम जाओ कल श्रुष्टि तुम दोपहर 2 बजे आना मैं तुम्हें पूजा का सामान बता दूंगा पूजा परसो से शुरू कर देंगे।
श्रुष्टि नीलेश ने बाबा का आशीर्वाद लिया और घर चले गए।
अगले दिन श्रुष्टि बाबा के दिये समय पर आश्रम पहुँच गई। बाबा ने श्रुष्टि को चाय बनाकर पिलाई और थोड़ी देर इधर-उधर की बात करने के बाद बाबा बोला देखा अगर मैं तुम्हारे पति को नहीं बुलाता तो तुम और कितना मार खाती। तुम्हारे पति की गलतियों की सजा तुम्हें मिल रही थी। इसके बाद श्रुष्टि खूब रोई वो काफी देर तक बाबा के पैरों में अपना सिर रखकर रोती रही। बाबा ने पीठ पर हाथ फिराकर श्रुष्टि को उठाया और अपने गले लगा लिया। श्रुष्टि भी बाबा से लिपट गई मानों वो अपने बाप के गले लग रही हो।
बाबा ने श्रुष्टि का माथा चूमते हुए उसे सामने बिठाया और बोला भक्त तू परेशान न हो सब कष्ट दूर होंगे। श्रुष्टि को ऐसा लगा जैसे उसके पिता उसे दुलार कर रहे हों अब श्रुष्टि के मन में बाबा के प्रति श्रद्धा और बढ़ गई। बाबा श्रुष्टि को अब पूजा विधि बताने लगा। बाबा बोला कि एक सफेद सूती धोती लेना और आश्रम में सुबह 5 बजे नहाकर ऊपर से खाली धोती लपेटनी है अंदर कुछ भी नहीं पहनना है। श्रुष्टि चौंकते हुए बोली “बाबा अंदर कुछ भी नहीं पहनना है, ये तो मैं नहीं कर पाऊंगी, पूजा कर सकती हूं सुबह आश्रम में आकर नहा भी सकती हूं लेकिन कपड़े तो पूरे ही पहनूँगी।” बाबा बोला “जैसा मैं बताऊं वैसा ही करना होगा नहीं तो पूजा का कोई मतलब नहीं।” श्रुष्टि बोली बाबा ये मेरे लिए तो बहुत मुश्किल है लेकिन ठीक है मैं सोचती हूँ। श्रुष्टि अपने घर जाने लगी तो बाबा ने समझाया कि पगली तूने इतने दुःख झेले हैं क्या तू अपने लिए इतना भी नहीं कर सकती है। श्रुष्टि बोली “बाबा जी आजतक इस तरह की पूजा मैंने कभी नहीं की, मुझे तोड़ा वक़्त दीजिए मैं कल आती हूँ।”
श्रुष्टि अपने घर चली गई। अब वो सारे दिन यही सोचती रही कि वो क्या करे। आखिर श्रुष्टि ने कुछ सोचा और बाजार से पूजा का सारा सामान ले आई। उसने यह सब अपनी माँ को बताया कि आश्रम में नहा धोकर ये साड़ी पहनकर पूजा करनी है, लेकिन उसने अपनी माँ को यह नहीं बताया कि अंदर कुछ नहीं पहनना है। श्रुष्टि की माँ भी बाबा के चमत्कारों से प्रभावित थी इसीलिए उसने भी कहा ठीक है, तुम ऐसा ही करो जैसे बाबा जी कहते हैं क्योंकि बाबा भगवान समान हैं और बाबा कभी भी गलत नहीं कहेंगे और न ही होने देंगे।
अब श्रुष्टि का मन थोड़ा हल्का हुआ और उसने फ़ोन उठाया और बाबा को फ़ोन किया और जैसे ही उसने प्रणाम किया बाबा बोल पड़ा बोला भक्त कल टाइम से आने के लिए फ़ोन कर रही हो और तुमने सारा सामान ले लिया है लेकिन तुम अब भी थोड़ा सा सामान लेना भूल गई। श्रुष्टि चौंक गई बौर हंसते हुए बोली बाबा जी मैं क्या भूल गई? बाबा बोला “भक्त तुमने सुबह का प्रसाद नहीं लिया और अब कहीं मिलेगा भी नहीं” श्रुष्टि चौंकते हुए बोली “हां बाबा जी, हाथ जोडकर माफी लेकिन प्रसाद सुबह सुबह मिलेगा भी नहीं अब मैं क्या करूँ?” इस पर बाबा बोला कि तू चिंता न कर कल सुबह पहली पूजा है। पहली पूजा में माफी, तू चीनी गया गुड़ ले आना प्रसाद में, मैं काम चलवा दूंगा।
श्रुष्टि ने बाबा को प्रणाम किया और फ़ोन काट दिया। अब वो सोच में पड़ गई, मन ही मन सोचने लगी कि बाबा तो वाकई बहुत ही चमत्कारी हैं उन्हें कैसे पता चला कि मैं प्रसाद लाना भूल गई और उन्होंने यह कैसे बता दिया कि मैं सुबह पूजा के लिए आ रही हूं और माँ को सब बता दिया है। अब श्रुष्टि का विश्वास बाबा के ऊपर इतना हो गया कि वो खुद से भी ज्यादा भरोसा बाबा के ऊपर करने लगी। अब श्रुष्टि अगले दिन सुबह बाबा के आश्रम पहुंच गई। बाबा धूनी लगाकर पहले से अपनी पूजा कर रहा था। बाबा ने केवल लंगोट पहना हुआ था, श्रुष्टि थोड़ी असहज हुई लेकिन बाबा अचानक से बोला कि आश्रम आया करो तो मन के सारे संकोच बाहर रखकर आया करो। श्रुष्टि चुप हो गई क्योंकि बाबा उसके मन की हर बात जान लेता था। बाबा ने इशारा करते हुए कहा कि जाओ बाथरूम में अंदर जाकर नहा लो। और साड़ी पहनकर पूजा में आ जाओ। श्रुष्टि अंदर गई और बाबा के कहे अनुसार केवल साड़ी लपेटकर बाबा के सामने आ गई। बाबा ने जैसे ही श्रुष्टि को देखा वो देखता रह गया। श्रुष्टि सफेद साड़ी पहनकर कयामत लग रही थी, क्योंकि उसने अंदर कुछ भी नहीं पहना था, श्रुष्टि ने अपने आपको ढकने की पूरी कोशिश की लेकिन कुछ न दिखने पर भी श्रुष्टि के कसे हुए नितंब, गोरा और गठीला बदन दिख रहा था।
बाबा ने उससे कहा कि सामने यहां आकर सामने बैठ जाओ और मैं जैसा कहता रहूं वैसे ही मंत्रों का जप करते हुए पूजा करो। श्रुष्टि थोड़ी हिचकिचाते हुए बाबा के सामने बैठ गई। उसके साथ यह पहली बार था कि किसी गैर मर्द के सामने वो सिर्फ साड़ी लपेटे बैठी थी। लेकिन उसे ये सब अपने कष्ट दूर करने के लिए करना ही था। श्रुष्टि बाबा के कहेनुसार पूजा करती जा रही थी। इसके बाद बाबा बोला कि तुम अपनी आँखें बंद कर लो और सिर्फ मेरा ध्यान करती हुई मन ही मन ये मंत्र 101 बार पढ़ो। श्रुष्टि ने ठीक वैसा ही किया। जब 101 मंत्र पूरे हो गए तो श्रुष्टि ने अपनी आंखें खोली देखा तो बाबा सिर्फ उसकी छाती को देख रहा था। श्रुष्टि थोड़ी हिचकिचाई लेकिन उसने पूरी पूजा खत्म कर ली।
बाबा बोला जाओ कपड़े बदल लो और ये भभूत अपने निजी अंगों पर लगा लो। श्रुष्टि गई और उसने भभूत लगा ली। और कपड़े पहनकर बाबा के सामने आ गई। बाबा ने उसे चाय पिलाई और बोला जाओ प्रसाद लो और घर जाओ।
अब श्रुष्टि रोज समय से आती, ठीक वैसे ही पूजा करती और घर चली जाती। 5-6 दिन बीते श्रुष्टि पूजा करने के बाद कपड़े बदलने जा रही थी बाबा बोला कि बाद में बदल लेना पहले चाय पीते हैं। बाबा की बनाई चाय की श्रुष्टि दीवानी हो चुकी थी। श्रुष्टि ने हां कर दी। दोनों ने चाय खत्म की बाबा बोला अंदर आसन पर चलकर पूजा करते हैं थोड़ा ध्यान लगाते हैं। बाबा जो बोलता श्रुष्टि उसके लिए हां कर देती।
श्रुष्टि अंदर चल दी। बाबा के सामने बैठ गई। बाबा उससे पूछने लगा कि वैसे तो मुझे पता है लेकिन मैं तेरे मुंह से सुनना चाहता हूं कि तुझे अब कैसा लग रहा है। श्रुष्टि बोली कि मैं बता नहीं सकती कि मुझे कितना आराम है अब मुझे ऐसा लगता है जैसे कि मैं हवा में तैर रही हूं और सब कुछ हल्का हल्का सा महसूस होता है। बाबा बोला चल एक चाय और पीते हैं। श्रुष्टि बोली ठीक है लेकिन बाबा चाय थोड़ी ज्यादा लाना मुझे आज चाय बहुत अच्छी लग रही है। बाबा उसका पूरा ग्लास भर लाया और उसके हाथ में थमा दी। श्रुष्टि चाय पीकर अपने को काफी आनंदित महसूस कर रही थी। उसे यह तक एहसास नहीं था कि उसके जिस्म पर साड़ी के अलावा कोई कपड़ा नहीं है। बाबा बोला आओ तुम यहां लेटो अब क्रिया करनी है और आज भभूत मैं लगाऊंगा। श्रुष्टि एक अलग ही नशे में थी उसने हां कर दी और वो तख्त पसर गई।
बाबा ने उसकी साड़ी उतारी और उसके निजी अंगों पर भभूत लगाने लगा। इसके बाद श्रुष्टि को अचानक क्या हो गया वो मदहोश सी हो गयी। इसके बाद बाबा ने उसके साथ क्या किया उसे पता नहीं चला। सुबह के 8 बज चुके थे। वो उठी तो देखा उसके बदन पर साड़ी भी नहीं है और उसका जिस्म भी दुःख रहा था। श्रुष्टि बाबा से बोली बाबा मेरी साड़ी कहाँ है और मैं यहां कैसे लेटी हुई हूँ। बाबा ने कहा कि आज भगवान तुम्हारे सिर पर आ गए थे इसके बाद तुम से उन्होंने पूजा की क्रिया करवाई हैं। श्रुष्टि को कुछ समझ नहीं आया वो उठी और जल्दी से जाकर अपने कपड़े पहकर आ गई। वो बाबा से बोली कि बाबा आज बहुत अजीब सा महसूस हो रहा है बाबा बोला भक्त तेरे मन में गलत ख्याल आ रहे हैं तू जो सोच रही है वो केवल तेरी सोच का नतीजा है। श्रुष्टि वहां से चली गयी और सारे दिन सोचती रही। उसने यह बात किसी को भी नहीं बताई। वो अगले दिन फिर आश्रम गई और फिर अगले दिन फिर बाबा ने उससे क्रिया करने के लिए कहा। श्रुष्टि तख्त ओर लेट गयी और बाबा ने उसके निजी अंगों पर भभूत मलना शुरू कर दिया। बाबा उसके हर एक अंग को खुशी से निहार रहा था, उसके अंगों से खेल रहा था, श्रुष्टि के मुलायम अंगों पर हाथ फेर रहा था। वो कभी उसके नितंबों को छूता तो कभी नीचे उसकी योनि में अपनी उंगली डालता। श्रुष्टि मदहोश हो रही थी, वो बेहोश थी लेकिन आहें भर रही थी। बाबा उसके हर अंग को चूम रहा था। और इसके बाद उसने श्रुष्टि के साथ संभोग किया।
श्रुष्टि के साथ ऐसा होते होते 5-6 दिन हो चुके थे। क्योंकि दूसरा हफ्ता होने ही वाला था बाबा बोला कि अब तुम अपने पति के साथ शारिरिक संबंध बनाना अब तुम्हारा एक प्यारा सा बच्चा होगा। श्रुष्टि खुश तो थी लेकिन अब उसके मन में संशय था कि उसके साथ कुछ तो गलत हो रहा है। खैर वो अगले दिन फिर गई और वही क्रियाएं करती रही इसके बाद बाबा उसे अंदर ले गया और चाय पिलाकर फिर से तख्त पर लिटा दिया। लेकिन आज श्रुष्टि ने चाय कम पी, वो अब देखना चाहती थी कि उसके साथ क्या कुछ हो रहा है। उसने गिलास में चाय छोड़ दी। बाबा ने उसे क्रिया करने के लिए तख्त पर लिटा दिया और उसकी साड़ी उतार कर उसके निजी अंगों पर भभूत लगाने लगा, बाबा उसके अंगों को सहला रहा था, कभी उसकी छाती को सहलाता तो कभी उसकी योनि में अपनी उंगली डालता, अपनी जीभ से उसकी योनि का रसपान करता, वो उसके हर मुलायम अंगों को चाट रहा रहा था, फिर उन्हें सहलाता भी। जब ज्यादा हो गया तो श्रुष्टि चौंक गयी और बोली बाबा आप ये क्या कर रहे हैं?
श्रुष्टि के चौंकने पर बाबा चौंक गया और उसने चाय के गिलास की तरफ देखा उसमें बहुत सारी चाय बची थी। बाबा बोला भक्त परेशान क्यों हो रही हो मैं मंत्रों का जप करते हुए भभूत लगा रहा हूँ परेशान न हो, ये सब बच्चा पैदा होने के लिए क्रियाएं हैं। बाबा बोला तुम आराम से लेटो और मुझे भभूत लगाने दो। श्रुष्टि बोली बाबा जी मैं लगा लुंगी आप मंत्र पढ़ दीजिए। बाबा बोला अगर ऐसा होता तो मैं तुम्हें ही बोलता, यह क्रिया मुझे ही करनी होगी। बाबा के बार बार कहने पर श्रुष्टि मना नहीं कर पाई। बाबा ने जैसे ही उनके निजी अंगों पर भभूत लगाने लगा तो उसे एहसास हुआ कि उसके साथ बहुत कुछ गलत हो चुका है। बाबा भभूत लगाते लगाते उसके अंगों को फिर छेड़ने लगा लेकिन उस वक़्त श्रुष्टि मदहोश हो गयी और चाहकर भी कुछ नहीं कर पाई क्योंकि संभोग के वक़्त उसे भी आनंद आ रहा था। खैर उसके साथ वही हुआ जिसका उसे केवल शक था। आज श्रुष्टि के साथ बाबा ने उसके होश में ही संबंध बनाए। इसके बाद श्रुष्टि उठी और बाबा को बे मन से प्रणाम किया और अपने घर चली गई।
अब अगले दिन श्रुष्टि आश्रम नहीं गई तो बाबा का फोन आ गया लेकिन श्रुष्टि ने फोन नहीं उठाया। उसके न आने से बाबा काफी बैचेन था। वो बार-बार उसे फोन कर रहा था और श्रुष्टि बाबा से बात करने के मूंड में नहीं थी। अब 2 हफ्ते पूरे बीत चुके थे। श्रुष्टि पूरी तरह गुम सुम हो चुकी थी। वो बाबा से क्या किसी से भी बात करना नहीं चाहती थी। 2 हफ्ते बीतने के बाद नीलेश उसे लेने आ गया। वो गुम सुम थी लेकिन वो किसी को भी कुछ नहीं बताना चाहती थी। उधर बाबा उसे लगातार फोन कर रहा था, श्रुष्टि ने इस वजह से उसने बाबा का नंबर भी ब्लेक लिस्ट में डाल दिया। नीलेश ने श्रुष्टि से पूंछा कि पूजा कैसी हुई और तुम ऐसे उदास उदास सी क्यों हो उसने बे मन से हंसते हुए कहा कि कुछ नहीं बस थोड़ी तबियत सी खराब हो रही है।
नीलेश बोला चलो घर चलते हैं लेकिन एक बार बाबा का आशीर्वाद लेकर चलेंगे। श्रुष्टि बोली “क क क्यों बाबा, बाबा जी से फिर अगली बार मिल लेंगे, अभी हम घर चलते हैं मेरी तबियत सी कुछ ठीक नहीं है। श्रुष्टि अपनी सुसराल पहुंच गई। श्रुष्टि की सास और ननद का व्यवहार भी उसके प्रति काफी नरम हो गया था।
इसके बाद नीलेश श्रुष्टि के साथ जैसे ही संबंध बनाने लगा श्रुष्टि डर सी गई। नीलेश से उसे दुलार किया और प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरने लगा और बोला क्या हुआ तुम डरी डरी सी क्यों लग रही हो, मुझे बताओ कुछ हुआ क्या? श्रुष्टि मन ही मन सोचने लगी कि जैसे तैसे करके सब ठीक हुआ है अब अगर नीलेश को कुछ पता चला तो बवाल हो जाएगा। श्रुष्टि बोली “क कुछ, कुछ भी नहीं हुआ वो सुबह-सुबह पूजा के लिए जाना पड़ता था न, इसलिए जुखाम सा हो गया और थोड़ा दर्द भी है। अब इस पर नीलेश बोला “श्रुष्टि दिक्कत मुझमें है और सहना तुम्हें पड़ रहा है, इसके बाद श्रुष्टि नीलेश के गले लग गयी और फुट फुट कर रोने लगी। नीलेश ने श्रुष्टि को खूब प्यार किया और इसके बाद दोनों ने शारीरिक संबंध बनाएं लेकिन इस दौरान श्रुष्टि को बहुत अच्छा एहसास नहीं हुआ, वो संभोग करते वक़्त बाबा का चेहरा महसूस कर रही थी।
सुबह हुई श्रुष्टि जल्दी उठी लेकिन न जाने क्यों उसे बाबा का चाय का एहसास होने लगा, वो चाय पीने को तड़पने लगी। इसके बाद वो अपनी किचिन में गई और बाबा के जैसी चाय बनाने की कोशिश की लेकिन नाकाम रही। उसकी तड़प इतनी बड़ी कि उसने बाबा को फ़ोन करने का फैसला किया। श्रुष्टि का फ़ोन आते ही बाबा खिल उठा और बोला भक्त ये तो कोई बात नहीं हुई बिना बताए सुसराल चली गई जबकि पूजा भी पूरी नहीं हुई थी। श्रुष्टि थोड़े गुस्से से बोली “बाबा जी मैं वो अभीतक भूल नहीं पाई जो मेरे साथ हुआ।” बाबा बोला “तुम आओ आश्रम इस पर बात करते हैं और साथ ही बाबा बोला तुम्हें चाय की याद आ रही है कल आ जाओ आश्रम चाय पिलाई जाएगी और इसके बाद तुम्हारा बड़ा कल्याण होने वाला है।” अब श्रुष्टि को लगा कि बाबा तो सब जानते हैं, इन्हें चाय के बारे में कैसे पता चला। एक पल सोचने के बाद श्रुष्टि बोली ऐसी कोई बात नहीं है… वो कुछ आगे कह पाती, बाबा बोला “अपने पति के साथ जो शारिरिक संबंध बनाए हैं उससे तुम्हारे पेट में बच्चा आ जायेगा… श्रुष्टि बोली आप क्या बोल रहे हैं… बाबा बोला तुमने मेरा ध्यान करके अपने पति के साथ सेक्स किया था, आज भी मेरा ध्यान करना और मेरा एहसास करना और बिना बोले पति के साथ सेक्स करना, इसके बाद महसूस करना, ‘तुम्हारे पेट में कुछ भारीपन का एहसास होगा।’ श्रुष्टि मजबूर थी वो बस खुशी चाहती थी तो उसने वैसा ही किया जैसा बाबा ने बताया। उसने अपने पति के साथ वैसे ही सेक्स किया जैसा बाबा ने बोला था।
वो सुबह उठी तो उसे पेट में भारीपन का एहसास हुआ… क्योंकि उसके पीरियड भी आने वाले थे वो भी नहीं आये थे अब उसने अपने पति से कहा कि उसका चेकअप करवाकर आएं…पेट में दर्द है, चक्कर आ रहे हैं, जी मिचला रहा है। पति हाँ करते हुए उसे वो डॉक्टर के पास ले गया.. डॉक्टर ने श्रुष्टि का प्रेगनेंसी टेस्ट किया तो वो पॉजिटिव आया.. इस पर श्रुष्टि उछल पड़ी, यह बात नीलेश को पता चली तो वो भी खुशी के मारे झूम उठा क्योंकि उसे पता था कि वो कभी बाप नहीं बन सकता था लेकिन बाबा के आशीर्वाद से सब संभव हो गया… नीलेश श्रुष्टि घर पहुँचे उसने अपनी माँ को बताया कि तुम दादी बनने वाली हो माँ, हाँ तुम दादी बनने वाली हो, नेहा देखो तुम बुआ बनने वाली हो, हमारे घर भी किलकारियां गूंजेगी, हमारे घर पर भी एक नन्हा मुन्ना आएगा… इस पर नीलेश की माँ भी बेहद खुश हो गई और उसने श्रुष्टि को खूब प्यार किया और एक सोने का हार श्रुष्टि को पहना दिया। इस पर श्रुष्टि बेहद खुश हो गई। नीलेश बोला सुनो बाबा जी को फ़ोन करके बता दो…
श्रुष्टि फ़ोन कर पाती या निलेश अपनी बात खत्म कर पाता, कि बाबा का फ़ोन आ गया। बाबा बोला कहो भक्त.. कैसी हो.. कुछ बताना चाहती हो क्या? श्रुष्टि के मन में बाबा को लेकर गुस्सा तो था लेकिन अब एक बड़ी खुशी उसके पास थी, गुस्से को दबाती हुई श्रुष्टि बोली बाबा जी धन्यवाद… बाबा बोला धन्यवाद से काम नहीं चलेगा.. आश्रम आना पड़ेगा वरना मुझे बहुत कुछ आता है… और अकेले आना… श्रुष्टि थोड़ा डर गई और सन्न रह गई पास में खड़े नीलेश ने कहा क्या हुआ? क्या कहा बाबा जी ने… श्रुष्टि बोली कि बाबा जी आश्रम बुला रहे हैं अब ऐसे में कैसे जाऊं वो कह रहे हैं कि एक पूजा और करनी होगी.. नीलेश बोला पगली बाबा ने हमें एक बड़ी खुशी दी है… हम जरूर चलेंगे। डरी सहमी श्रुष्टि बोली… लेकिन पूजा तो मुझे करनी होगी… । चूंकि नीलेश का बाबा पर विश्वास इतना बढ़ गया था कि वो इतना तो साक्षात भगवान पर भरोसा न करे। उसने कहा कि तुम जाओ पूजा पूरी करो और बाबा को धन्यवाद करना न भूलना।
श्रुष्टि आश्रम पहुंच गई। बाबा उसे देखकर खुशी से झूम उठा, उसने श्रुष्टि को अपनी बाहों में कसकर भर लिया और वो उसे चूमने लगा। चूंकि श्रुष्टि को एक अरसे के बाद बेहद खुशी मिली थी तो उसने बाबा का जरा भी विरोध नहीं किया। बाबा जो कर रहा था, जहां हाथ लगा रहा था वो उसे लगाने दे रही थी। श्रुष्टि भी आज आनंद महसूस कर रही थी, वो भी आज बाबा के होंठों को चूम रही थी उसके शरीर पर अपने नाखून गड़ा रही थी। श्रुष्टि को बहुत ही अच्छा एहसास हो रहा था।
इसके बाबा भी श्रुष्टि को किस करने लगा। कभी वो उसके नितंब को छूता तो कभी वो उसके सुर्ख होंटो को पीता, बाबा ने उसके एक-एक कर सारे कपड़े उतार दिए और उसकी छाती पर हाथ फेरने लगा। श्रुष्टि को अब यह बहुत अच्छा लग रहा था। वो चाहकर भी मना नहीं करना चाहती थी। श्रुष्टि आहें भर रही थी, लंबी लंबी सांसे ले रही थी… उसकी धड़कने तेज तेज चल रही थीं उसके दोनों नितंब खड़े हो गए थे। उसे ऐसा लग रहा था जैसे वो पहली बार किसी के साथ दिल से संभोग कर रही हो… उसने अपने आपको बाबा के हवाले कर दिया था। बाबा उसके हर अंग को चूम रहा था जैसे वो बरसों का भूँखा हो। बाबा उसके साथ सब कुछ कर रहा था और शृष्टि अपने साथ सब करने दे भी रही थी… बाबा ने इस दौरान 4 बार संभोग किया… लेकिन इस बीच नीलेश अचानक आश्रम आ गया तब तक बाबा संभोग खत्म कर चुका था। लेकिन श्रुष्टि उसकी गोद में लेटी थी और बाबा उसके बालों में हाथ डालकर सहला रहा था। अचानक आये नीलेश ने ये सब अपनी आंखों से देख लिया। क्योंकि नीलेश श्रुष्टि और बाबा को सरप्राइज देना चाहता था क्योंकि उसका प्रोमोशन हो गया था। जैसे ही नीलेश ने श्रुष्टि को बाबा की गोद में लेटे हुए देखा तो नीलेश आग बबूला हो गया।
वो जैसे ही श्रुष्टि पर चिल्लाने वाला था तो बाबा बोल उठा नीलेश बेटा पास आओ तुम भी अपना सिर मेरी गोदी में रखकर लेटो, लेकिन ये क्या मिठाई कहाँ है? नीलेश अभी भी गुस्से में था, बोला कौनसी मिठाई? ये सब देखने की मिठाई? बाबा बोला शांत भक्त शांत, तेरा प्रोमोशन हुआ है क्योंकि मेरी भक्त ने इच्छा जताई तो मैंने पूजा बताई थी और इसे कहा था कि तुम्हें पता न चले। इस पर नीलेश थोड़ा शांत हुआ और बोला मतलब आप कहना क्या चाह रहे हैं? बाबा बोला भक्त तेरी प्रोमोशन के लिए श्रुष्टि बेटा ने पूजा की थी। कल सुबह से ये लगातार पूजा कर रही थी। रात भर नहीं सोई। जब ये तुम्हारे घर थी तब इसने तुम्हारे प्रोमोशन के लिए बोला था। इसके सिर में बहुत तेज दर्द हो रहा था तो मैंने अपना बच्चा समझकर इसके बालों को सहला रहा था और सिर दबा रहा था ताकि इस बच्ची को आराम मिल सके। इस पर श्रुष्टि रोने लगे गई और बाबा से बोली बाबा जी आप कोई सफाई मत दीजिए जिसके मन में मेल हो वो और सोच ही क्या सकता है। नीलेश बाबा के पैरों में गिर पड़ा और बोला, “बाबा जी क्षमा कर दीजिए, श्रुष्टि हो सके तो तुम भी मुझे क्षमा कर दो, अब से ऐसा नहीं होगा।”
श्रुष्टि इसके बाद अपने घर चली गई। उसे एहसास था कि उसने क्या किया है लेकिन साथ ही उसे यह भी खुशी थी कि उसको एक प्यारा सा बेटा पैदा हो गया था। इस दौरान श्रुष्टि के पति का ट्रांसफर काफी दूर हो गया था। उसने बाबा के आश्रम भी जाना छोड़ दिया था क्योंकि श्रुष्टि नहीं चाहती थी कि बाबा अब उसके साथ जरा भी संबंध बनाए।
(यह सब कुछ सच्ची घटना पर आधारित है)