भाजपा या उसके सहयोगी धर्मांतरण के मुद्दे को लेकर हमेशा से मुखर रहे हैं यह कोई गलत बात नहीं है लेकिन हिंसा? देश के कई हिस्सों से धर्मांतरण के मामले सामने आते रहते हैं लेकिन जो भी मामले गैर भाजपा सरकार के प्रदेशों में होते हैं वहां भाजपा का उग्र रूप देखने को मिलता है। भाजपा का हमेशा से आरोप रहता है कि धर्मांतरण जबरन करवाया जाता है वहीं लोगों का कहना होता है कि हम दूध पीते बच्चे नहीं जो कोई आकर हमारा धर्म ही बदलवा देगा। धर्म बदलने में आप इसे हमारी आस्था कह सकते हैं या मजबूरी भी। हम निचली जातियों से आते हैं तो ऊंची जाति वाले हमारे साथ भेदभाव करते हैं हमारी खुशियों को बर्बाद करने का काम करते हैं, हमें मंदिरों में प्रवेश नहीं देते। जब हमसे इतनी ही दिक्कत है तो फिर हम कोई सा भी धर्म अपनाएं इन्हें क्या दिक्कत? जब हमें कोई काम नहीं देता, हमारे बच्चे भुंखे रहते हैं, हमसे भेदभाव किया जाता है, हमारे साथ मारपीट होती है, हमें हिन्दू नहीं समझा जाता है, हमें अछूत माना जाता है , हमारी बेटियों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है, किसी भी बात का विरोध करने पर पीट पीटकर मार दिया जाता है तब हमारा दर्द देखने कोई क्यों नहीं आता है? इनको दिक्कत है कि हम दूसरे धर्म में क्यों जा रहे हैं? हम इनसे मार खाते रहें, प्रताड़ित रहें बस ये इसमें खुश हैं। हमें अपनी खुशी देखनी है जब इन्हें हमसे कोई मतलब नहीं तो ये भी भाड़ में जाएं। हम अपना ईसाई धर्म अपनाकर खुश हैं।
बता दें कि छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में धर्मांतरण मामले को लेकर भाजपा कार्यकर्ता सड़कों पर उतरकर गुस्सा जाहिर कर रहे थे उनमें से कुछ कार्यकर्ताओं ने मौके पर पहुंचे नारायणपुर के एसपी सदानंद कुमार पर हमला कर दिया इस हमले में उनके सिर पर गंभीर चोट आई। उन्हें इलाज के लिए अस्पताल पहुंचाया गया।
गौरतलब है कि नए साल के ठीक एक दिन पहले भाजपा के नेताओं ने लोगों के बीच यह मैसेज देना शुरू कर दिया कि नारायणपुर में जबरन धर्मांतरण करवाया जा रहा है इसको लेकर लोगों ने विरोध जताया और उग्र प्रदर्शन शुरू कर दिया।
इसके बाद चर्च में तोड़फोड़ की, ईसाई धर्म के लोगों पर हमला किया। मूर्ती तोड़ी, लोगों को उनके घरों से भगा दिया गया लेकिन राष्ट्रीय मीडिया का यह मुद्दा नहीं रहा। भाजपा के जिलाध्यक्ष और पूर्व जिलाध्यक्ष के नेतृत्व में यह सब हुआ लेकिन मीडिया ने इसे नहीं दिखाया। गोदी मीडिया ने उल्टे ईसाई आदिवासियों के ऊपर ही हमले का आरोप लगा दिया।
खैर जो भी हो पुलिस को आरोपियों के ऊपर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए वहीं सवर्णों को भी चिंतन करना चाहिए कि धर्मांतरण उनकी वजह से ही हो रहा है। कोई कब तक अत्याचार सहेगा। हम 21वीं सदी में जी रहे हैं मोबाइल टेक्नोलॉजी का युग है। लोग जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने लगे हैं, दलित आदिवासियों को कमजोर समझने वाले भूल कर रहे हैं और अब यही भूल उल्टा पड़ रही है।
ब्यूरो रिपोर्ट : राकेश सिंह, नारायणपुर