दरअसल हर चुनाव के बाद हारने वाली पार्टियों को लेकर ऐसे कुछ सवाल खड़े होते हैं और जीत की एक लहर के आगे ऐसी पार्टियां खुद को कुछ वक्त तक बेबस महसूस करती हैं। आरोप प्रत्यारोप के दौर चलते हैं, ईवीएम के साथ-साथ निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं और कुछ समय बाद जनता के फैसले के आगे सब मजबूर हो जाते हैं। इस बार भी फिलहाल उत्तर प्रदेश में विपक्ष अपनी उम्मीदों पर पानी फिरते देख रहा है।
लेकिन कांग्रेस ने जो खोया है उसे वापस पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन नज़र आ रहा है।
मोदी का जादू लोगों के सिर पर चढ़कर बोल रहा है। अगर ऐसा नहीं होता तो उत्तराखंड में मुख्यमंत्री धामी न हारते। इसे मोदी लहर का ही नाम दिया जाएगा। मोदी का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है।
कोरोना से हुई मौतों का मुद्दा हो या बेरोजगारी, बढ़ती महंगाई, अराजकता का मुद्दा हो ये सब मुद्दे मोदी के जादू के आगे फुस हो गए।
मोदी के जादू का ही असर है कि यूपी की तीन बार मुख्यमंत्री रहीं मायावती की राजनीति लगभग खत्म सी हो गई है। वहीं भारत अब कांग्रेसमुक्त भारत नज़र आने लगा है।
विपक्ष के सारे मुद्दों को मोदी की रणनीति फेल कर देती है। यही वजह है कि पीएम मोदी हर वक़्त चुनावी मोड में नज़र आते हैं।
यूपी में अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की जोड़ी भी कुछ कमाल न दिखा पाई। यहां किसानों का मुद्दा भी भाजपा का कुछ नहीं बिगाड़ पाया। वरना लखीमपुर खीरी में भाजपा क्लीन स्वीप न कर पाती। इन पांच में से चार राज्यों में सभी मुद्दों के आगे हिंदुत्व का मुद्दा टॉप पर रहा।
मोदी के हिंदुत्व का मुद्दा इस कदर हावी रहा कि बाकी सभी दल पानी भरते नज़र आ रहे हैं। भाजपा न केवल तेज़ी से बढ़ रही है बल्कि विशाल जीत हासिल कर रही है।