इस दिवस पर स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी ने अपनी एक ओर ज्ञान कविता -2 इस प्रकार से कही है की
23 मार्च को प्रतिवर्ष संपूर्ण विश्व में ‘विश्व मौसम विज्ञान दिवस’ मनाया जाता है। सन् 1950 में 23 मार्च के दिन संयुक्त राष्ट्र की एक इकाई के रूप में विश्व मौसम संगठन यानी डब्ल्यूएमओ की स्थापना हुई थी और जिनेवा में इसका मुख्यालय खोला गया था। संगठन की स्थापना का उद्धेश्य मानव के कष्ट को कम करना और इस सम्बन्धित सभी विकास के विज्ञानमय तथ्यों को बढावा देना है।
यो इस दिवस पर स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी ने अपनी एक ओर ज्ञान कविता -2 इसप्रकार से कही है की,
नित प्रातः आकाश देख कर
अनुमान लगते मौसम।
बिन बादल चमक देख सूरज की
मुख निकले गर्म आज मौसम।।
नमी हवा अनुभव करके
कहे आज हो ठंडक।
बादल की कुछ छाँव देख नभ्
पता नही पड़ मिले ओले की दंडक।।
बिन मौसम के ओले पड़ते
बिन मौसम बरसात।
कैसे बिगड़ रहा निरंतर
दिन दिन प्रकर्ति चक्रवात।।
मछली पकड़ने चले समुंद्र में
पहुँची बीच जब नांव।
उठने लगी प्रचण्ड लहरें
मछुवारें चढ़े अकाल भेंट के दांव।।
श्रद्धालु करते तीर्थ यात्रा
वहाँ देखे ईश्वर लीला।
खिसकने लगे पहाड़ अचानक
कितने चढ़े मृत्यु की लीला।।
उडा जा रहा नभ् मंडल में
खोजता नव ब्रह्मांड संसार।
आई छिटक चट्टान अचानक
भस्म हुए विस्फोट नर नार।।
अनुमान तो अनुमान है होता
सच्च निकले नही पता।
मौसम विभाग निर्मित हुआ यो
विशिष्ट ज्ञान विज्ञानं दे ये बता।।
यो आज भी अनियंत्रित सब
पर बहुत कुछ है अनुकूल।
विश्व मौसम दिवस आज
जानों क्या है प्रकर्ति प्रतिकूल।।
मानव बिगाड़ रहा धरती को
चला नियम निज चाल।
विस्फोट स्थिति उत्पन्न करके
आज बैठ मृत्यु मुख अकाल।।
वृक्ष काटता नए नही लगता
खनन करता धरा सम्पत्ति।
संतुलन बिगड़ दिया आज है
परिणाम नित नवीन विपत्ति।।
अब भी सम्भल जा हे-मानव
भविष्य प्रलय कर अनुमान।
जितना लिया उतना तो दे कर
संतुलन का सुखद बना वर्तमान।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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