कुछ गणितज्ञ ये गणित दिवस 14 मार्च को मनाते है।परंतु सत्यास्मि मिशन ने इसे भारत के महान गणितज्ञों के जन्मदिवस पर मनाने का व्यक्तिगत पहल की है। भारत के प्रसिद्ध गणितज्ञ
भारत और गणित के बीच रिश्ता कोई नया नहीं है। यह 1200 ईसा पूर्व और 400 ईस्वी से 1200 ईस्वी के स्वर्ण युग तक जाता है। जब भारत के महान गणितज्ञों ने इस क्षेत्र में बड़ा योगदान दिया था। भारत ने संसार को दशमलव प्रणाली, शून्य, बीजगणित, उन्नत ट्रिगनोमेट्री यानि त्रिकोणमिति, नेगेटिव नंबर यानि नकारात्मक संख्या और इसके अलावा बहुत कुछ दिया है। 15 वीं शताब्दी में केरल के एक स्कूल के गणितज्ञ ने त्रिकोणमिति का विस्तार किया। यह यूरोप में गणना के आविष्कार से भी दो सदी पहले हुआ था। वैदिक काल के वेद ग्रंथ भी संख्या के इस्तेमाल के प्रमाण हैं। वैदिक काल का जो गणित ज्यादातर वैदिक ग्रंथों में मिलता है वह पारंपरिक है। संस्कृत वह मुख्य भाषा है जिसमें भारत में प्राचीन और मध्य काल का गणितीय काम किया गया था। सिर्फ यही नहीं बल्कि गणित का इस्तेमाल प्रागैतिहासिक काल में भी देखा जा सकता है। सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई जैसे हड़प्पा और मोहन जोदड़ो में भी गणित के व्यवहारिक इस्तेमाल के प्रमाण मिलते हैं। दशमलव प्रणाली का इस्तेमाल सभ्यता में वजन संबंधी अनुपात जैसे 0.05, 0.1, 0.2, 0.5, 1, 2, 5, 10, 20, 50, 100, 200 और 500 में किया जाता था। वे लोग ब्रिक्स के सबसे ज्यादा स्थिर आयाम का इस्तेमाल 4:2:1 में रुप में करते थे। वैदिक काल, 400 से 1200 का शास्त्रीय काल और आधुनिक भारत में हमारे पास कई मशहूर गणितज्ञ थे।
आर्यभट्ट:-
कौन होगा जिसने वैदिक युग के प्रसिद्ध गणितज्ञ आर्यभट्ट के बारे में नहीं सुना होगा? महान गणितज्ञ आर्यभट का -जन्म- 0 दिसम्बर 476 है।
इनका जन्म स्थान अश्मक, महाराष्ट्र, भारत में हुआ और इनकी मृत्यू 0 दिसम्बर 550 में हुई यानी इनकी उम्र 74 वर्ष रही।
इन्होंने ‘आर्यभटीय’ लिखी जिसमें गणित के बुनियादी सिद्धांत 332 श्लोकों के माध्यम से शामिल हैं। अगर सरल शब्दों में कहें तो आर्यभट्ट प्रथम ने द्विघात समीकरण, त्रिकोणमिति, साइन सारणी, कोसाइन सारणी, वरसाइन सारणी, गोलीय त्रिकोणमिति, खगोलीय स्थिरांक, अंकगणित, बीजगणित आदि हमें दिए हैं।
ये वही हैं जिन्होंने कहा था कि पृथ्वी प्रतिदिन अपनी ही धुरी पर घूमती है ना कि सूरज। उन्होंने वैज्ञानिक रुप से सूर्य और चंद्र ग्रहणों की अवधारणा को समझाया था।
पिंगला:-
एक अन्य लोकप्रिय गणितज्ञ जिन्होंने गणित के क्षेत्र में बहुत योगदान दिया वह पिंगला हैं। उन्होंने संस्कृत में छंद शास्त्र लिखा था। बाइनोमियल थियोरम यानि द्विपद प्रमेय के ज्ञान के बिना ही उन्होंने पास्कल त्रिकोण समझाया था।
कात्यायन:-
-कात्यायन वैदिक काल के आखरी गणितज्ञ थे और उन्होंने कात्यायन सुलभ सूत्र लिखा था। उन्होंने 2 के वर्ग मूल की पांच सही दशमलव स्थानों से गणना समझाई थी। उन्होंने ज्यामिति और पाइथागोरस सिद्धांत में उल्लेखनीय योगदान दिया।
जयदेव:-
नौवीं शताब्दी के इस मशहूर गणितज्ञ ने चक्रीय विधि विकसित की जिसे ‘चक्रवला’ के रुप में जाना जाता है।
महावीरा:-
नौवीं शताब्दी के इस दक्षिण भारतीय गणितज्ञ ने द्विघात और घन समीकरणों को हल करने की दिशा में बहुत योगदान दिया।
ब्रह्मगुप्त:-
भारत के इस गणितज्ञ ने बहुत अच्छा खगोलीय काम किया। उन्होंने ब्रह्मगुप्त प्रमेय और ब्रह्मगुप्त सूत्र दिया जिस पर लोकप्रिय हेरन सूत्र आधारित है। ब्रह्मगुप्त ने गुणा के चार तरीके भी दिए थे।
भास्कर प्रथम:-
यह भारत के पहले गणितज्ञ थे जिन्होंने संख्या को दशमलव के रुप में हिंदू और अरबी शैली में लिखा था।
भास्कराचार्य:-
क्या आप जानते हैं कि किसने बताया था कि यदि किसी संख्या को शून्य से विभाजित किया जाए तो परिणाम अनंत आएगा? हां, आप सही हैं। भास्कराचार्य जिन्हें भास्कर द्वितीय भी कहा जाता है, ने ही यह अवधारणा दी थी। साथ ही उन्होंने शून्य, क्रमचय और संयोजन और सर्डस के बारे में समझाया था।
भास्कराचार्य ने यह भी समझाया कि धरती समतल क्यों दिखती है, क्योंकि उसके वृत्त का सौवां हिस्सा सीधा दिखता है।
विश्व की प्रथम स्त्री गणितज्ञ- लीलावती:-
ये दसवी सदी के प्रसिद्ध गणितज्ञ भाष्कराचार्य की इकलोती संतान पुत्री लीलावती थी। इनके विवाह के विषय में ये जान लिया की ये विवाह के बाद विधवा हो जाएँगी तब अकाट्य महुर्त निकाला परन्तु लिखे विधि विधान के कारण किये उपाय में कमी रहने से वो महुर्त में विवाह के उपरांत लीलावती विधवा हो गयी इस घटना के क्षोभ के निवारण को इन्होंने लीलावती को गणित का सम्पूर्ण ज्ञान दिया और लीलावती गणित के गणित के आष्चर्यजनक नवीनतम सिद्धांत स्थिर कर विश्व का बड़ा कल्याण किया है सिद्धांतशिरोमणि को भाष्कराचार्य ने लिखा उसमें गणित का अधिकांश भाग लीलावती की रचना है यो पाटीगणित के अंश का नाम ही भाष्कराचार्य ने अपनी पुत्री के नाम पर लीलावती रखा है।
श्रीनिवास रामानुजन् इयंगर जन्म-22 दिसम्बर-1887 और अल्पायु में मोक्ष-26 अप्रैल- 1920:-
एक महान भारतीयगणितज्ञ थे। इन्हें आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में गिना जाता है। इन्हें गणित में कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं मिला, फिर भी इन्होंने विश्लेषण एवं संख्या सिद्धांत के क्षेत्रों में गहन योगदान दिए। इन्होंने अपने प्रतिभा और लगन से न केवल गणित के क्षेत्र में अद्भुत अविष्कार किए वरन भारत को अतुलनीय गौरव भी प्रदान किया।
ये बचपन से ही विलक्षण प्रतिभावान थे। इन्होंने खुद से गणित सीखा और अपने जीवनभर में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। इनमें से अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किये जा चुके हैं। इन्होंने गणित के सहज ज्ञान और बीजगणित प्रकलन की अद्वितीय प्रतिभा के बल पर बहुत से मौलिक और अपारम्परिक परिणाम निकाले जिनसे प्रेरित शोध आज तक हो रहा है, यद्यपि इनकी कुछ खोजों को गणित मुख्यधारा में अब तक नहीं अपनाया गया है। हाल में इनके सूत्रों को क्रिस्टल-विज्ञान में प्रयुक्त किया गया है। इनके कार्य से प्रभावित गणित के क्षेत्रों में हो रहे काम के लिये रामानुजन जर्नल की स्थापना की गई है।
डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह:-
2अप्रैल 1944 को जन्मे रामानुज की कोटि के गणितज्ञ बन कर उभरे थे और देश विदेशों में अपने गणितीय ज्ञान का डंका बजवाया और साइकिल वेक्टर स्पेश थ्योरी पर किये शोधों ने विश्व में प्रसिद्ध किया इन्हें जिनीयसो का जीनियस नाम दिया इन्होंने आइंस्टाइन की थ्योरी व् अनेक थ्योरियों को चुनोती दी पर आज मानसिक रोग से ग्रस्त अंजाना जीवन जी रहे है।ईश्वर कृपा करें।
इस महान गणितज्ञ के साथ सभी गणितज्ञों को सत्यास्मि मिशन का सह्रदय स्मरण..
इनके अलावा आधुनिक भारत के बहुत से गणितज्ञ हैं जिन्होंने इस क्षेत्र में योगदान दिया है। जैसे तिरुक्कनपुरम विजयराघवन (1902-1955), हरीश चंद्र (1920-1983), 1932 में जन्में एमएस नरसिम्हन, वी एन भट (1938-2009), 1978 में जन्में अमित गर्ग, एल महादेवन आदि।
गणितज्ञों को नोबेल पुरस्कार नहीं दिया जाता है I ‘फील्ड्स पदक’ गणित के क्षेत्र में दिया जाने वाला सर्वश्रेष्ठ व् प्रतिष्ठित पुरस्कार है Iयह पदक जिसे कभी – कभी गणित का “नोबल पुरस्कार”भी कहा जाता है, प्रत्येक चार वर्ष में एक बार चार जवान गणितज्ञों को (४० वर्ष से कम), जो प्रतिभाशाली हैं, दिया जाता है। अन्य प्रमुख पुरस्कार हैं abel पुरस्कार Abel Prize, नेमर्स पुरस्कार Nemmers Prize, वुल्फ पुरस्कार Wolf Prize, Schock पुरस्कार Schock Prize और नेवानलिना पुरस्कार Nevanlinna Prize
इस दिवस पर सत्यास्मि मिशन की ओर से स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी की गणितिय कविता इस प्रकार से है कि,
जय भारतीय गणितज्ञ
शून्य से लेकर पाई तक
और पाई से प्रमेय दिये।
सभी गणितीय योग जन्म
भारत धरा के गणितज्ञ जीये।।
पृथ्वी अपनी धुरी घुमे
और समतल दिखे क्यों।
सौवां भाग दिखे सीधा
सूर्य चंद्र ग्रहण है क्यों।।
चक्रीय विधि द्धिघात घन
समीकरण हल हो कैसे।
गुणा की चार विधि बतायी
शून्य क्रमचय संयोजन कैसे।।
संख्या को दशमलव रूप में
हिंदू अरबी शैली लिखा।
किसी संख्या को शून्य से
विभाज्य कर अनंत परिणाम दिखा।।
दो के वर्ग मूल की
पांच सही दशमलव गणना।
द्विपद प्रमेय ज्ञान बिना
पास्कल त्रिकोण कैसे हो वरणा।।
सिद्धांत गणित के सभी मूल
तीन सो तेंतीस दिए श्लोक।
द्धिघात समीकरण त्रिकोणमिति
साइन कोसाइन सारणी आलोक।।
गणितीय नकारात्मक संख्या दे
गणित किया चरमगत वरणी।
स्थिरांक अंक बीज गणित दे
धन्य भारत गणितज्ञ धरणी।।
जय आर्यभट् कात्यायन पिंगला
जयदेव महावीरा ब्रह्मगुप्त।
भास्कर प्रथम द्धितीयचार्य संग
लीलावती गणितज्ञ युक्त।।
धन्य रामानुजन गणितज्ञ महान
विजय हरीश नरसिम्हन।
भट् गर्ग महादेवन वरिष्ठ जी
सभी देश विदेश गणितज्ञ नमन।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
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