खिल उठा चंद्रमा निलंभर
सोलह कला संग करता रास।
बदल गया स्वरूप चन्द्र का
बन ज्ञान पूर्णिमा कार्तिक मास।।
दिव्य ओषधि रस नभ से टपके
चंद्र पूर्णिमा प्रेम ओस बनकर।
जिस पर पड़ती अमृत सुख देती
हरती पीड़ा तन मन झरकर।।
श्वेत रंग मिल निलवर्णीय आभा
शुभ्र ज्योतिर्मयी कृपा जग दे।
बनते सभी वृक्ष ओषधि
स्फूर्ति जीव नव रग रग दे।।
सत्य नारायण प्रेम दिवस है
ये चौथ पूर्णिमा बारहमासी।
अर्थ काम धर्म मोक्षदायनी
कार्तिक पूर्णिमा सर्व दुःखनाशी।।
नारी स्वरूपी ईश्वरी माता
पूर्ण माँ बन जग करे कृपा।
आज करें जो व्रत पूर्णिमा
माँ पूर्णिमाँ दे उस वर नृपा।।
राम संग सीता की भक्तजन
स्तुति करें रसिक नवधा राग।
हनुमान गुंजाये श्री राम नाम जग
जो सुने ध्यान में इस रात है जाग।।
कृष्ण राधा और गोपियां
रचते रासमंडल मीत मधुर ।
ऋषि तपस्वी छोड़ कमंडल
तपते मन तृप्त करें गीत मुकुर।।
एक ओंकार सतनाम गुरु वाहे
जगतारन पूर्णिमा नानक आये।
सब मानुष उपजे एक नूर करतार
समता कर्म कर प्रेम जताए।।
इस उजिति रात ज्ञात जग
चले अजपा सोहम निरंकारी।
मंत्र अक्षर बन कला हो प्रकट
दिव्य प्रेम स्वरूप हो सत्कारी।।
दूध चावल और पंचमेवा
बना रखें छलनी नीचे खीर।
तुलसी की छाया कृपा लेकर
लगा भोग चंद्र खाये खीर।।
पहन श्वेत वस्त्र जप श्वेत माला
बैठे पूर्णिमा दिव्य प्रकाश।
सदा सुखी सफल त्रिलोक हो
अंत पाये आत्मस्वरूप अविनाश।।
दान खीर चांदी दे दक्षिणा
करें दीप जला गुरु चित्र प्रदक्षिणा।
गुरु मंत्र जप करे रेहिक्रिया
तरे भवसागर पा वंश सुलक्षणा।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
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