बता रहें स्वामी सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
इस कीलन में इस सिद्धासिद्ध महामंत्र से जप और यज्ञाहुति दे-“सत्य ॐ सिद्धायै नमः ईं फट् स्वाहा”
और जो सभी प्रकार के संकट और मनोकामना के अर्थ को देने वाले मंत्र में विश्वास करते है की मुझे मंत्र जपते में लगे की मेरी मनोकामनाएं सिद्ध हो रही है उनके लिए ये सिद्ध किया महाशावर सिद्धासिद्ध मंत्र है- सत्य गुरु ॐ माई शक्ति,
अष्ट सिद्धि नव निधि दे भक्ति।
नष्ट करो शत्रु विकराल,
चढाउ पान मिठाई माला।
जो देखूँ वो सच दिखलाओ.
ढूंढ ढूंढ मनचाहा लाओ।
मुझको दे दो सच्चा दूत,
बाँधू पीर वीर जिन्न भुत।
चोर चोकी मुँह की खाये,
पीड़ा रोग जड़ से जाये।
सत्य गुरु ॐ की आन.
सत्य ॐ सिद्धायै नमः दे ज्ञान।
शब्द साँचा पिंड कांचा,
चले मंत्र सत्य ॐ का वाचा स्वाहा।।
इस महामंत्र से यज्ञ करने से पूर्व आप एक मीठा पान और एक फूलों की माला यज्ञ कुण्ड पर रखें और अंत में दोनों को यज्ञ कुण्ड में ये अंतिम मंत्र पढ़ते हुए स्वाहा कहते हुए डाल दे।।बाकि सब पहले जैसा ही विधि विधान है।
जिस भक्त को अभी अपने गुरु मंत्र और ध्यान विधि पर विशेष आस्था नही बनी है और उसे लगता है की कोई ऐसा कर्मकांड हो जिसे करके मुझे कुछ लगे की मेरी रक्षा हो रही है उन भक्तों के लिए यहाँ सरल हानि रहित एक अनुभूत प्रयोग दिया जा रहा है की जिस भक्त को भी अपने परिवार और मकान में अज्ञात भय डरावने,सपने,पितरों का अनावश्यक दर्शन और वास्तु दोष नजर आता हो उसे आने वाली दीपावली व् विशेष कर छोटी दीपावली को ये अनुभूत प्रयोग करना चाहिए-
विधि-पहले आपके घर में जितने भी कमरे और दरवाजे है उन्हें गिन ले और उतनी छोटी कीलें ले ले और उन कीलों को पंचाम्रत यानि गंगा जल,गो मूत्र,दही,दूध,शहद से धो ले और उन कीलों को एक काले वस्त्र में गांठ मार कर अपने पास रख ले अब शुद्ध यज्ञ हवन की सामग्री और घी या तिल का तेल हवन में आहुति देने के लिए पूजा स्थान पर अपने पास रखे और लगभग 9 बजे से या फिर समय नही हो तो 11 बजे से उत्तम समय में रात्रि में स्नान करके अपने पूजाघर में यज्ञ कुण्ड में सबसे पहले एक गाय या जो भी कण्डा मिले उसे बीच हवन कुण्ड में रखे और उसके ऊपर वो कीलों वाला काला कपड़ा रखे अब अग्नि जलाने के लिए आम की लकड़ी रखे तब यज्ञ को प्रज्ज्वलित करें और अपने गुरु या इष्ट मंत्र से स्वाहा कहते हुए यज्ञाहुति देते रहे कम से कम 11 और मध्यम 21 और श्रेष्ठ 51 माला का जप और यज्ञाहुति दे और अब यज्ञ समाप्त कर अपनी गुरु या इष्ट आरती करें और यज्ञ समापन करें अब जब प्रातः उठ कर अपने यज्ञ के शांत हो जाने पर उसकी भभूति को हटा कर उस कीलों वाला कपड़ा जो राख हो गया होगा उसमे से वे सारी कीलें निकल ले और पहले सबसे अंदर के कमरें के दरवाजे की चोखट में या वहाँ के सीधे हाथ के कोने में एक या दोनों और के कोने में एक एक कील गाढ़ दे व् ऐसे ही करते हुए बाहर तक के सारे दरवाजों में कीलें गढ़ते चले आये और अपने साथ एक लौटे में जो रात्रि के पूजन समय का गंगा जल है उसे उस दरवाजे पर अपना गुरु मंत्र पढ़ते हुए पूरी श्रद्धा से और प्रबलता के संकल्प से छिड़कते हुए बाहर तक के सारे दरवाजो पर छिड़कें और अंत में अपने घर के बाहर के मुख्य दरवाजे के सामने खड़े हो कर अपने सम्पूर्ण घर का ध्यान करते हुए इस प्रकार से गंगा जल का छींटा मारे जैसे की आपके द्धारा छिड़का गया गंगा जल सारे घर के चारों और छिड़क गया हो और बचे गंगा जल को अपने घर की बाहरी सीढ़ियों पर और अपने पैरों पर भी डालते हुए वापस अपने घर में प्रवेश करें और अपना दैनिक कार्य करें और बची यज्ञाहुति की राख को नहर में डाल आये इस अमोघ उपाय से आपका घर कीलित हो गया अब कोई भी तांत्रिक या दुष्ट शक्ति आपको स्वप्न या प्रत्यक्ष में परेशान नही करेगी इस अनुष्ठान को आप होली और दीपावली पर तो कर ही सकते है और किसी वजह से इन समय नही कर पाये तो किसी आने वाले ग्रहण या किसी ईश्वरीय या गुरु के जन्म दिवस के पवन अवसर पर भी कर सकते है हाँ साल में केवल दो बार ही मकान का कीलन किया जाता है और पहले कीली गयी कीलों को निकाल कर दूसरी कीलें लगाएं और पहली कीलों को बहती नहर में विसर्जित कर आये।।और इसका चमत्कारी अनुभव आप स्वयं अनुभव करेंगे।।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येन्द्र सत्येन्द्र सत्यसाहिब जी
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