आज एस.एन विनोद (SN Vinod) जी का जन्मदिन है और उनके जन्मदिन पर लोकमत अखबार की वरिष्ठ पत्रकार पूर्णिमा पाटिल ने पूर्व सांसद और लोकमत ग्रुप के चैयरमेन विजय दर्डा जी का साक्षात्कार लिया इस साक्षात्कार में विजय दर्डा जी ने एस.एन विनोद जी के जन्मदिन पर अपने ही अंदाज में उन्होंने शुभकामनाएं दी। जिसे हम आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं। और साथ ही एस.एन विनोद जी के जन्मदिन पर हम उनकी लंबी उम्र की कामना करते हैं। एस.एन विनोद जी हमेशा खुश रहें स्वस्थ रहें।
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सुख्यात वरिष्ठ पत्रकार और संपादक श्री एस. एन.विनोद के 75वें जन्मदिवस के अवसर पर एक स्मारिका में प्रकाशन हेतु मैंने यह विशेष साक्षात्कार पूर्व सांसद और लोकमत ग्रुप ऑफ न्यूज़ पेपर्स के चेयरमैन श्री विजय दर्डा जी से लिया था। आज 1नवंबर को विनोद जी के 78वें जन्मदिन पर शुभकामनाओं सहित वह विशेष साक्षात्कार ….
पूर्व सांसद और लोकमत ग्रुप ऑफ़ न्यूज़ पेपर्स के चेयरमैन श्री विजय दर्डा जी से वरिष्ठ पत्रकार पूर्णिमा पाटिल की बातचीत के अंश ….
योग देखिये पूर्णिमा जी , आज 1 नवम्बर विनोद जी के जन्मदिवस पर आप मुझसे उनके बारे में बातचीत करने आई हैं। आज सुबह ही मैंने उन्हें फोन पर प्रतिवर्ष की तरह शुभ कामनाएं दीं। उनसे कहा कि चलिए अब आप भी हमारे साथ हो गए। इस पर विनोद जी ने बताया – अरे आप तो 65 वर्ष के हैं और मैं तो 75 वर्ष का हो गया। मैं ये सुनकर दंग रह गया ! विनोद जी इस उम्र में इतने स्वस्थ-सक्रिय सिर्फ इसलिए हैं क्योंकि उन्हें किसी से ईर्ष्या नहीं , कोई भेदभाव नहीं , किसी बात का मलाल नहीं। कोई बोझ लेकर वे नहीं रहते। उनका मन स्वच्छ है , इसलिए ही वे स्वस्थ हैं। विनोद जी को पत्नी शोभा जी का सहयोग गजब का मिलता रहा है। अपनी पीड़ा- दुःख का असर शोभा जी ने कभी विनोद जी पर नहीं होने दिया। मैं तो कहूँगा कि विनोद जी की शोभा, उनकी पत्नी शोभा से है !
विनोद जी का लोकमत परिवार में प्रवेश किस तरह हुआ ? मेरे बाबूजी स्व. माननीय जवाहरलाल जी दर्डा लोकमत के संस्थापक थे। मराठी अख़बार महाराष्ट्र में हमारा था। मेरे बाबूजी ने गांधी जी के विचारों से प्रेरित होकर एक सपना देखा था कि मराठी प्रदेश में हिंदी की सेवा के लिए एक हिंदी अख़बार शुरू करना है। माँ भारती की सेवा करनी है। बाबूजी की इच्छा यह अख़बार नागपुर से शुरू करने की थी। तब संपादक की खोज शुरू हुई। हमारे परिवार से जुड़े सुख्यात पत्रकार सन्मानीय श्री कुलदीप नय्यर से पूछा गया। उन्होंने कलमनवीस जुझारू संपादक के रूप में श्री एस. एन. विनोद का नाम सुझाया। उन्होंने कहा कि विनोद जी की कलम में वह ताकत है जो अख़बार को लोक- मान्य और लोक- जागरण का अस्त्र बना सकती है।
विनोद जी को बुलाया गया। प्रथम बातचीत के दौरान बाबूजी ने विनोद जी को बताया कि अख़बार की भाषा गांधी जी द्वारा मान्य आम आदमी की सरल भाषा होनी चाहिए। अख़बार में साहित्यनिष्ठ भाषा का प्रयोग कर उसे क्लिष्ट न बनाया जाए। यह हिंदी अख़बार मुनाफे के लिये नहीं बल्कि माँ भारती की सेवा के लिये है। तब विनोद जी ने बाबूजी जवाहरलाल दर्डा जी से पूछा था कि आप राजनीति में हैं। आप मंत्री हैं। हम पर क्या बंधन होगा ? तब बाबूजी ने कहा था — आप स्वतंत्र हैं। कोई रोक टोंक , दखल आपके अख़बार में हमारी तरफ से नहीं होगा। और यह वादा हमारी तरफ से हमेशा निभाया गया। मुझे याद आ रहा है एक बार मैं और विनोद जी कमरे में बैठे थे। इलेक्शन के दिनों की बात है। वहां बाबूजी आये। उन्होंने विनोद जी से अनुरोध किया कि ” हमारा ( पार्टी का ) भी ध्यान रखियेगा। बताइये , इससे ज्यादा हौसला अफजाई क्या हो सकती है ?
लोकमत समाचार गुणवत्ता में श्रेष्ठ था लेकिन उसका सर्क्युलेशन नहीं बढ़ रहा था। विनोद जी हमसे चर्चा करते थे परन्तु हमने कहा था ” आप चिंता न करें। ” इस तरह के हमारे बीच सम्बन्ध थे।
विनोद जी के साथ कार्य करना मैंने ‘ इन्जॉय ‘ किया है। हमारे बीच कोई मनमुटाव या झगड़ा कभी नहीं हुआ। हमने विनोद जी को संपादक के रूप में स्वतंत्र कार्य करने और निर्णय लेने की हमेशा पूर्ण स्वतंत्रता दी थी। विनोद जी ने भी कभी इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं किया। हमने कभी पूछताछ के लिए उन्हें नहीं बुलाया। जब भी मुलाकात होती तो साथ में बैठकर चाय पीते , भोजन करते और गपशप होती। लोकमत परिवार इसी परंपरा को लेकर चलता है। मालिक – संपादक जैसा हमारा सम्बन्ध कभी नहीं रहा।
हमारा मानना है कि प्रबंधन और संपादन कौशल के सम्यक समन्वय से समाचारपत्र की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सकती है। इसके लिए स्वस्थ , रचनात्मक , सकारात्मक मन और दिमाग की जरुरत है और यह बात हम और विनोद जी बखूबी जानते थे।
मैं मानता हूँ कि ‘ परफेक्ट ‘ कोई भी नहीं होता। यदि कोई परफेक्ट है, तो फिर वह मनुष्य नहीं हो सकता। विनोद जी अपनी बात के लिए आग्रही रहे। जबकि उन्हें दूसरों की बात भी समझना आना चाहिए। अपने सहयोगियों की बात वे जल्दी समझते नहीं थे। बाद में वे कहते थे और उन्हें लगता था कि उन्हें उनकी बात को सुनना चाहिए था।
विनोद जी प्रयोगधर्मी और संघर्षशील व्यक्ति हैं। नये- नये प्रयोगों का उत्साह उनके द्वारा प्रारम्भ अनेक अख़बारों में सहज ही देखने को मिल जाता है। चुनौती लेना और जोखिम उठाना उनकी आदत है। इसमें उन्हें आनंद आता है। भले ही संघर्ष ज्यादा करना पड़े वे घबराते नहीं है। दिल पर बोझ रखकर नहीं जीते हैं। ऐसा नहीं कि उन्हें परेशानी , घरेलू मुश्किलों से सामना नहीं करना पड़ता होगा परन्तु वे स्वच्छ मन के इंसान हैं इसीलिये 75 वर्ष की आयु में भी स्वस्थ हैं। तभी तो बिहार फिर महाराष्ट्र, दिल्ली में जाकर नये- नये प्रयोग करते रहते हैं। प्रिंट मीडिया फिर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से भी वे जुड़े। बदलाव , नयी दिशा नयी सोच देता है। जरुरी नहीं कि निर्णय सही ही होंगें। परन्तु गतिशीलता ही जीवन की निशानी है। अब तो विनोद जी इसी विदर्भ की मिटटी के हो गए हैं। शायद बिहार से ज्यादा वे विदर्भ में पहचाने जाते हैं।
संपादक के रूप में मेरे लिये विनोद जी क्या हैं ? मुझे लगता है वे सम्पादकीय जहाज के एक ‘ परफेक्ट कप्तान ‘ हैं । वे बखूबी जानते थे कि उनके इस जहाज को किस दिशा , किस तरह और कैसे ले जाना है। उनका दिल और दिमाग एक साथ कार्य करता है । मूल्यों के साथ उन्होंने कभी कोई समझौता नहीं किया। विनोद जी ने कभी नौकरी नहीं की। नौकरी में तो समय देखकर आना और जाना होता है। विनोद जी ने तो निष्ठापूर्वक अपनी ड्यूटी , संपादक का धर्म, मिशन और पैशन के साथ साकार किया। वे हार्डकोर ( मंजे हुए ) पत्रकार थे। वे अच्छे निर्देशक , कुशल प्रशासक, और कर्मठ संपादक थे। निर्भीकता और बेबाकी में इनका जोड़ नहीं है। विनोद जी ने लोकमत समाचार ( क्षेत्रीय होते हुए भी ) को गुणवत्ता की दृष्टि से किसी राष्ट्रीय अख़बार से मुकाबला करने लायक बनाया। पत्रकारिता के विभिन्न आयामों पर उनकी गहरी पकड़ , प्रभावी भाषा , वैचारिक समझ उनके लेखकीय और पत्रकारीय व्यक्तित्व को उजागर करती है।
उनकी पत्रकारीय ईमानदारी के कारण लोकमत समाचार लोकप्रिय और विश्वसनीय अख़बार बना। नवीन और मौलिक कल्पना के आधार पर विनोद जी ने लोकमत समाचार का प्रारूप तैयार किया था।
चलिये, विनोद जी के जन्मदिवस पर उन्हीं के नाम समर्पित मेरी ( श्री विजय दर्डा जी की ) ये भावनाएं —–
प्रिय , तुम संपादक हो तो इसका यह अर्थ तो नहीं कि आधी रात गये तक सताओ
और सुबह होने पर फिर यह कहो कि मैं ही सत्य हूँ।
ये नहीं कि मैं तुम्हें जानता नहीं पर करूँ क्या ,
तुम्हारी कलम से मुझे प्यार हो गया।
वरना स्याही ढोलना हमें भी आता है।
चलो कल तो बीत गया
आइये आज गले मिल लेते हैं
और कह देते हैं
अनंत शुभ कामनाएं
तुम्हारे जन्मदिन की
हैं हम तुमसे नाराज पर
चलो तुम्हारे लिये यह भी कह देते हैं कि
तुम्हारे सौ ( 100 ) मनाने के लिये हमें ईश्वर
अच्छी सेहत दे दें ताकि मिलकर
हम भी नाच लें और गुनगुना लें।
प्रस्तुति: पूर्णिमा पाटिल ( पत्रकार )
ऑस्ट्रेलिया के लोकप्रिय अख़बार साऊथ एशियन टाइम्स
की पत्रिका ‘ हिंदी पुष्प ‘ की संपादकीय सदस्य
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साभार :
वरिष्ठ पत्रकार (लोकमत न्यूज़ पेपर) पूर्णिमा पाटिल के फेसबुक वॉल से