जैसा कि मैं सदा आसन से पहले अवश्य बताता हूं कि,अपने सीधे हाथ के उल्टे भाग पर दोनों नांक की सांस को मार कर देख ले कि,कोन सा स्वर चल रहाहै,उसी हाथ को शीर्षासन में पहले उपयोग ले, ओर वही पैर आकाश की ओर पहले उठाये,,
अब जाने की,इस शीर्षासन में वाम मार्ग का उपयोग क्यों है,पृथ्वी तत्व का कैसे उपयोग है,संछिप्त में बताता हूं कि,पृथ्वी हमारी मातृभूमि व जननी पालक है,यो इससे निकलने वाली ऊर्ध्व आकर्षण व विकर्षण शक्ति जो गुरुत्त्वाकर्षण है,उसका उपयोग योगियों ने इस शीर्षासन के माध्यम से उल्टा होकर लिया,
इसे ही वाममार्ग का आसरा लेना कहते है और हमारे शरीर मे जो दो शक्तियां कार्य कर रही है,ऋण ओर धन,जो पुरुष में नीचे मूलाधार चक्र से नाभि चक्र के आधे भाग तक ऋण है और आधे नाभि चक्र से लेकर कंठ चक्र तक धन शक्ति है,इसके विपरीत स्त्री में उसके मूलाधार चक्र से आधे नाभि चक्र तक धन शक्ति और आधे नाभि चक्र से कंठ चक्र तक ऋण शक्ति है,यो इस दोनों स्त्री व पुरुष अपनी अपनी पैरों केअंगूठे से लेकर जांघ तक के 9 शक्ति बिंदुओं की शक्तियों को मूलाधार चक्र की ओर समेटकर यानी अपनी ऋण व धन शक्तियों को,
यानी उल्टी शक्तियों को इस शीर्षासन करने से अंदर उलट देते है और इंगला पिंगला नाड़ियों का मूलबंध मूलाधार चक्र में बार बार लगाकर ओर सामान्य सांस प्रसांस के चलाये रखते हुए,इस वामासन से सुषम्ना को खोल देकर कुंडलिनी को सिर में आज्ञाचक्र तक लेकर बाहर फेंक देते है।
यो इस शीर्षासन के पहले शौच ओर टॉयलेट कर ले और अतिरिक्त पानी नहीं पीए।नही तो अंदर गड़बड़ हो जाएगी।
ओर अधिक लाभ को शीर्षासन के साथ पद्धमासन का भी उपयोग लिया जाता है,ताकि पैरों से मूलाधार चक्र तक आ रहे 9 शक्ति बिंदुओं की शक्तियों को संतुलित कर बार बार मूलबंध लगाकर सुषम्ना में चढ़ाते रहें।
शीर्षासन की विधि जाने:-
शीर्षासन करने के लिए के सबसे पहले किसी समतल स्थान पर दरी या कंबल आदि बिछाकर वज्रासन की अवस्था में बैठ जाएं। अब आगे की ओर झुककर दोनों हाथों की कोहनियों को जमीन पर टिका दें। दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में जोड़ लें। अब सिर को दोनों हथेलियों के मध्य में रखें और आपके मस्तक का पहला भाग जमीन पर टिका रहे और कपाल का मध्य भाग आपकी दोनों हाथों की हथेलियों के मध्य रहें।अब सांस सामान्य रखें। सिर को जमीन पर टिकाने के बाद धीरे-धीरे शरीर का पूरा वजन सिर छोड़ते हुए अपने शरीर को उकड़ू अवस्था मे बिन पैरों को खोले,धीरे से ऊपर की उठाना शुरू करें।
अब शरीर का भार अपने हाथों की कोहनियों सहित कुछ वजन सिर पर लें लें।अब अपने चल रहे स्वर वाले पैर को ऊपर की ओर सीधा करें और फिर दूसरा पैर सीधा कर परस्पर पंजे मिला ले तथा सारा शरीर को पैरों घुटने सहित बिलकुल सीधा कर लें। बस यही शरीर की उल्टी हुई अवस्था को शीर्षासन कहा जाता है। यह आसन सिर के बल किया जाता है इसलिए इसे शीर्षासन कहते हैं।इस आसन के करने के बाद जितनी देर शीर्षासन किया लगभग उतनी देर अपने दोनों हाथों को ऊपर की ओर खींचते हुए गहरी सांस धीरे से लेते व धीरे से छोड़ते रहना आवश्यक है,ऐसा नहीं करोगे तो,ब्लड सर्कुलेशन गड़बड़ा जाने से आपको चक्कर आ जाएंगे।
लाभ क्या क्या है:-
सामान्य तौर पर तो,शीर्षासन से हमारा पाचनतंत्र स्वस्थ रहता है। इससे मस्तिष्क का रक्त संचार बढ़ता है, जिससे की स्मरण शक्ति अच्छे स्तर पर बढ़ जाती है।मनोरोग, हिस्टिरिया एवं अंडकोष वृद्धि, हर्निया, कब्ज आदि रोगों को दूर करता है। बहुत हद तक असमय बालों का झडऩा एवं सफेद होना दूर करता है। इस आसन से हमारा पूरे शरीर का रक्त उलटकर हमारी मांसपेशियां में जाकर सक्रिय हो जाता है।जैसे हम किसी गंदी बोतल में जल डालकर उसे उल्टी सीधी कर धोकर साफ करते है,यही यहां अर्थ है। इस आसन से शारीरिक बल के साथ आत्मविश्वास बढ़ता है और किसी भी प्रकार का अनावश्यक भय मन से निकल जाता है। थायराइड ग्रंथि में सुधार होता है और थायराइड के मरीजों को इससे लाभ होता है।पीयूष ग्रन्थि में सही से संतुलित रसों का स्राव होता है।उसे सभी हार्मोन्स सक्रिय होकर सम्पूर्ण शरीर को लाभ देते है।
शीर्षासन की सावधानियां:-
यदि आप पूर्णत: स्वस्थ नहीं है तो इस आसन को नहीं करें,किसी योग गुरु के मार्गदर्शन में करें। जिस व्यक्ति हाई या लो ब्लड प्रेशर की परेशानी है वह इस आसन को बिलकुल ना करें। आंखों से संबंधित कोई बीमारी हो, तब भी इस आसन को नहीं करना चाहिए। गर्दन में कोई समस्या हो तो भी इस आसन को न करें।यानी योग गुरु के निर्देशन में ही करें।
ये सब है,प्रचलित ज्ञान,पर असल मे देखे तो,चिमगादड सारी जिंदगी उल्टा लटका रहता है,तो वो योगी नही हो जाता है,नट ओर जिम्नास्टिक के खिलाड़ी भी इसे अनेको प्रकार से करते है,वे भी योगी नही हो जाते है,बस बड़े हैरत अंग्रेज करतबो से आश्चर्य ने डालकर पैसा व वाह वाही लूटते है।
ये शीर्षासन का हमारे पैरों से लेकर 9 शक्ति बिंदुओं की शक्ति को मूलाधार चक्र में एकत्र करना फिर बार बार सामान्य सांस व मूलबंध लगाते रहने के प्रयास से इंगला पिंगला नाड़ियों से बहने वाली प्राण ऊर्जा को सुषम्ना में चढ़ा कर स्वाधिष्ठान में जो जल तत्व है,उसे ओज में बदलकर फिर नाभि चक्र के अग्नि तत्व को अपने मिलाकर ह्रदय की वायु तत्व को अपने मिलाता हुआ,फिर कंठ चक्र के आकाश तत्व को समल्लित करते हुए,प्राणातीत कर मनोमयी कोष में लाकर आज्ञाचक्र से पृथ्वी से संयुक्त करके एक उल्टा ऊर्जा सर्किल बनाना है,तब हमें एक पृथ्वी से ऋण या धन शक्ति की अतिरिक्त शक्ति मिल जाती है,जो हमारी रीढ़ में हमे अपने ऊर्जा के साथ मिलकर एक कम्पन्न गति कराने में सहयोग करती है,जिसे प्राकृतिक शक्तिपात कहते है,इससे हमें प्राणों ओर मन के स्तर पर एक शक्ति स्पंदन के रूप में स्वभाविक चलने वाला अनुलोम विलोम क्रियायोग मिल जाता है।तब हमें किसी बाहरी प्राणायाम के अनुलोम विलोम क्रिया की आवश्यकता नही रखती है,स्वमेव शक्ति का हमारे शरीर सहित हमारी रीढ़ के दोनों छोरो-मूलाधार से आज्ञाचक्र तक,फिर आज्ञाचक्र से मूलाधार चक्र तक में एक शक्ति स्पंदन चलता रहता है।यही हमे चाहिए आत्मिक क्रियायोग, जो गम्भीर ध्यान में ले जाता है।यही योग विज्ञान है,शीर्षासन करने के पीछे,न कि प्रचलित योग रहस्य,जिसमे कुछ नही गल्प कथाओं के।समझे।
बस,ये सुनकर पढ़कर एक दम से शीर्षासन को करने नहीं लग जाना,समझो ओर धीरे धीरे 10 सेंकेंड से करते हुए,अगले सप्ताह में 20 सेकेंड तक ओर एक महीने में 1 मिंट तक ही बढ़ाना है,ये ध्यान रहे,अन्यथा,
!!देखी देखे साधे योग,,
!!छीजे काया बाढ़े रोग।
कहावत कर लोगे।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
महायोगी स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
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