प्राचीनकाल में योगियों में दो योगव्यायामों का उच्चतर विकास किया-देर तक अध्ययन चिंतन और ध्यान समाधि से आई शरीर मे स्थिलता,आलस्य ओर जड़ता की सहज समाप्ति को,84 आसनों में मुख्य आसनों का नियमित अभ्यास करना और दूसरा था-युद्धकला में उच्चत्तर कला और अपार शक्ति व्रद्धि के कौशल के लिए शक्ति योग,जिसमें हो,सम्पूर्ण व्यायाम शक्तियां-पावर,फोर्स,इस्ट्रेंथ, स्टैमिना,एनर्जी।ओर वो भी कम समय मे,तब आया ये पफ़स्सि योग व्यायाम,जो समय समय पर लुप्त ओर पुनर्जागृत होता रहा है।
एक कलाकार ग्रुप,जिसे भारत में नट कहते है,जो भगवान शिव के रूप नटराज के आराधक है,उन्होंने अपने असाधरण करतबों में लचीलापन ओर गति आदि के विकास को अनेक योगासनों का विकास किया,जैसे आज जिमनास्टर्स करते है।जिनमे केवल स्ट्रेंथ ओर स्टेमिना ओर स्पीड अधिक प्रदर्शित हुई और शक्ति योग व्यायाम के माध्यम से नटों ने अनेक शक्ति प्रदर्शनों को जनसाधारणो व राजाओं के सामने,अनेक ट्रिक्सओं के साथ प्रदर्शन कर आश्चर्यजनक खेल दिखाएं,जैसे-लोहे की सरियाँ शरीर के विभिन्न अंगों से मोड़ना ओर भारी वजनो को सीने से उतारना आदि।
इनमें से बहुत कुछ बलवर्द्धक करतब पहलवानों ने अपने प्रदर्शनों को बहतरीन बनाने को कुश्तियों के अलावा भी बल प्रदर्शित करते हुए अपनाएं।
योगासन एक अलग विषय है,जो केवल शरीर की स्वस्थ रखते हुए केवल स्ट्रेंथ,स्टेमिना,कुछ हद तक फोर्स की व्रद्धि होती है,एनर्जी का विषय आंतरिक विलपावर से सम्बन्ध है,उसके लिए विशेष प्राणायाम ओर संयम ध्यान का उच्चतर अभ्यास है।जो कि पफ़स्सि व्यायाम की लगभग 15 कसरतों से कुछ ही समय मे प्राप्ति होती जाती है और आगे चलकर उच्चतर प्रणायाम के साथ साथ असाधारण बल व्रद्धि की प्राप्ति होती है।यो प्राचीन विशुद्ध भारतीय पफ़स्सि व्यायाम करो ओर स्वस्थ बलवान बनो।
कुटकुटासन के दो प्रकार है-
1-जमीन पर उकड़ू सा बैठकर, दोनों हाथों के पंजो को कंधों के सीधे अनुपात में थोड़ा खोलकर टिकाए,ओर फिर थोड़ा सा आगे को झुककर अपनी कोहनियों के ऊपर के भाग पर,अपने दोनों घुटनों को टिकाकर,पैर के पंजो को ऊपर उठाएं हुए,अब हाथों पर अपनी सामर्थ्यानुसार बेलेंस बनाये रखना होता है।इसे बहुत से आसनाचार्य,योगाचार्य बकासन भी कहते है।
जैसे-बक यानी बत्तख ओर मुर्गा या पंछी अपने दोनों पैरों पर चलते हुए,घूमते है और अपनी चोंच से खाना चुगते है,ओर सभी प्रकार के कठिन भोजन को भी पचा जाते है।पर देखें तो,उन्हें गंदा भोजन खाने से ही चिकिन गुनिया रोग भी होकर मनुष्यो को मृत्युतुल्य रोग हो जाता है।तब इन्ही बत्तख व मुर्गे आदि पंछियों को मारा भी जाता है।तो मनुष्य तो ऐसे झुककर भोजन नही चुग या खा सकता है।यो ये बकासन या कुटकुटासन मुद्रा स्वास्थ को सामान्यतौर पर लाभकारी है।
2-कुटकुटासन:-
अपने दोनों पैरों को घुटने से जांघों की ओर को मोड़कर एक दूसरे के विपरीत चढ़ाकर,पद्धमासन लगाकर अपने दोनों हाथों को,पैरों के अंदरूनी ओर से पिंडलियों के बीच से नीचे की ओर कोहनियों तक निकाल कर,फिर अपने हाथों के पंजो पर संतुलन बनाकर ऊपर को उठा रहना होता है।
सामान्यतया लाभ:-
इन दोनों के द्धारा हाथों के पंजे कलाई व कंधों व गर्दन का भाग तथा सीने व छाती, पेट,पीठ का भाग मजबूत होता है।
किसे करना चाहिए किसे नहीं:-
जिनका पेट खराब रहता है,लिवर कमजोर है और नाभि हटती रहती है साथ ही हाथों में कम्पन्न होते रहते है,लिखने में कांपते है।उन्हें ये आसन अभ्यास करना चाहिए।
जिनके अभी हार्ट या पेट या डिस्क का व हर्निया ऑपरेशन हुआ है,उन्हें नहीं करना चाहिए,वे जब छः महीने हो जाये,तब ये आसन का धीरे धीरे प्रारम्भ कर सकते है।
जैसा कि मैने अपने योग के अभ्यासों के अनुभव अनुसार कहा है कि,इन सभी प्रकार के आसनों से मात्र स्ट्रेंथ,स्टेमिना की मुख्यतया ओर स्थिरता की प्राप्ति होती है,पावर ओर फोर्स ओर एनर्जी का बहुत विशेष प्राप्ति नहीं होती है।
वह केवल ओर केवल 15 मिंट के पफ़स्सि व्यायाम पद्धति से ही प्राप्त होती है।
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
महायोगी स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
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