
14 अप्रैल सत्यास्मि भक्त सोनिका सिंह के जन्मदिन पर स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी की आशीर्वाद भरी कविता के माध्यम शुभकामना देते हुए,ये सन्देश भरा अर्थ है कि गुरु का शिष्य के जीवन में कब और किस तथा केसी स्थिति में आकर अपना निस्वार्थ आशीष मिलता है,जिससे शिष्य का विपदाओं में मिटता वजूद फिर से खिलखिलाता जीवन जीने की महक से महक उठता है,ओर गुरु का अर्थ के साथ साथ इस भक्त सोनिका का प्यार में जो गुरु नाम दिया है,उसका सच्चा अर्थ क्या है,क्योंकि गुरु के नाम का अर्थ ही-ग का अर्थ है-गर्व यानी अहंकार के पर सच्चे ज्ञान का ज्ञेय बनाना,उ का अर्थ है-ऊर्ध्व यानी ऊंचाई चरम प्रदान करना,र का अर्थ है-रमण यानी अपनी शक्ति के शक्तिपात की दीक्षा देकर शिष्य को क्रिया योग का ज्ञान देना,फिर ग का अर्थ है-गुहतम यानी आत्मा के छिपे सभी जीवन रहस्यों का गूढ़तम ज्ञान देना,ओर फिर र का अर्थ है-रमित होना यानी अब हो भी गूढ़तम ज्ञान को रमण क्रिया योग से पाया है,उस पाए आत्मा के साक्षात्कार में सदा रमित स्थिर आनन्दित बने जीवन जीना,यही गुरु के चार शब्द का अर्थ है,ओर शिष्य को उसके नाम का अर्थ भी देता है,इस प्रकार से ..
!!मुबारक़ हो पैदाइश दिन!!
🌹सोनिका(चंगु ccs) बंसल🙌
ना उम्मीद के जब छाए
काले साये हो।
ना ख़ुशी देता कोई ख़्याल
न ख़्वाब आये हो।
मुश्किल की घड़ी पकड़ती रहे
रफ़्तार हर पल को छोड़
न नजर मिलाए नज़रों में कोई
मानो सबने ये कसम खायी हो।
तब’ भी छोड़ दे सब्र का हाथ
हूक की कूक आ आ करें बात।
तन्हाई ही मिटाती लगे वक़्ते साथ
कौन भी ख़ामोश हो जाये खप
इस घुंध पीछे छिपे जाने कहाँ औकात।
खुली ओर बंद आंखों एक हो
सांस की हर आवाज एक फ़ेंक हो।
जहां हो वहीं जैसे जम से गये
पत्थर ख़ुद ख़ुद के संग एक हो।।
ठीक यहीं वह तब आता है
बिन सवाल जबाब दे जाता है।
उसे न जरूरत तू मैं की
मिटे वजूद में मिला खुद का वजूद
खुद की नजरों से खुदा बना जाता है।।
वो नामो से परे है सच्चा ग़ुरूर
उसके ही आने पर आता सुरूर।
रम जाता हममें हम बन
उसे ही मोहब्बत में कहते है गुरु जी हुजूर।।
ऑलवेज योर्स-गुरु जी…
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चौदह अप्रैल सोनिका जन्मी
माता सुरेश पिता चैन राज।
विज्ञानं की शिक्षा पूर्ण नेट तक
बनी शिक्षक सरकारी आज।।
पति प्रियांक बंसल इंजीनियर
एक पुत्र कुलदीपक अमोघ।
सत्यास्मि मिशन की मूल सदस्य
अहम् सत्यास्मि बोध आत्मयोग।।
सत्य ॐ सिद्धायै नमः मंत्र का
करती आत्मवत् ध्यान।
सत्य गुरु की प्रिय चंगु
है दिव्य प्रेम आशीष नितमान।।
च अर्थ और वही
न अर्थ और कोई नाही।
गु अर्थ गुरु गुह ज्ञान
चंगु अर्थ स्वयंभू गुरु साई।।
यही सत्यास्मि उद्धेश्य जग
बने नारी गुरु स्वयं।
पुरुष सहयोगी दिव्य प्रेम चरम
आत्मसाक्षात्कार स्वयं के अहम्।।
चतुर्थ धर्म अपनाइये
और कर चार नवरात्रि आवाहन।
यही सत्यास्मि आत्मज्ञान पूर्णिमाँ
सोनिका प्रत्यक्ष जीवन यही संधान।।
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Jai guru ji. Bhut sundr kavita h.