
नकटों का सम्प्रदाय..
भारत में मूर्खता दिवस कथा
बहुत प्राचीन घटना कथा है की भारत में एक नकटों का सम्प्रदाय बड़ी संख्या में बढ़ता जा रहा था। उनका कहना था की जो ईश्वर के नाम पर अपनी नांक की बलि देगा उसे ईश्वर के अति शीघ्र कृपा दर्शन होंगे, ये समाचार के फैलते और ऐसे अनेक नकटों को इस प्रचार से की हाँ हमने ईश्वर के साक्षात् दर्शन किये है और नित्य प्रति होते है, यूँ बहुत लोगों ने अपनी नांक कटाई और इस सम्प्रदाय की वृद्धि की जिसकी प्रसिद्धि उस समय के सम्राट के पास पहुँची, उन्होंने उस नकटे सम्प्रदाय के मुखिया गुरु को अपने दरबार में बुलाया, तब इनका मुखिया महाराज के दरबार में उनके सामने पहुँचा, उससे उसने इस सत्यता के विषय में पूछा।तो नकटा गुरु बोला की महाराज ये सत्य है,की मुझे और मेरे जैसे अनेक नासिका की बलि ईश्वर को अर्पित करने के कारण उन्हें साक्षात् खुली आँखों से ईश्वर के दर्शन होते है। साथ ही ईश्वर इन भक्तों से वार्ता करते हुए उनकी सभी समस्याओं का उत्तर और समाधान करते है, मैं जब एक दुर्घटना में अपनी नाक खो बेठा था, तब सभी मुझे नकटा नकटा कह कर चिढ़ाया करते थे, मैं भी चिढ़ता था और बड़ा निराश होता था।
तब एक दिन मैने अपने को ही समाप्त करने के लिए एक ऊँचे पहाड़ से कूद कर अपने प्राण देने की सोची और इस कार्य को करने पहाड़ पर चढ़ा, ज्यों ही वहाँ से कूदने को हुआ की चमत्कार हुआ, एक तीर्व प्रकाश के साथ साक्षात् मेरे इष्टदेव भगवान ने मुझे रोक लिया और मुझे बताया की तुमनें मेरे लिए अपनी नाक की बलि चढ़ाई है, क्योकि दुर्घटना के समय तुमने यही विचार किया की हे ईश्वर सब तेरी ही इच्छा से हुआ है, तो तुम ही जैसा मुझे रखना चाहों वेसा रखो। लेकिन तुमने अन्य लोगो के कटु वाक्यों पर अधिक ध्यान देना प्रारम्भ कर दिया था, यो मुझे दिए ये वचन भूल गए, यो मेने तुम्हे दर्शन नही दिए और अब जब तुम पहाड़ से नीचे कूद कर अपने प्राण देने जा रहे थे, तब तुमने यही प्रार्थना की की हे ईश्वर मेने तुम्हें ही अपना आराध्य माना है, जेसी आपकी हो उस महाइच्छा में मेरी इच्छा है, यो मैं तुरन्त प्रकट हो गया और मुझे अपना जीवन अर्पण करने वाले प्रिय भक्त की रक्षा की है, और मैं तुम्हे ये वरदान देता हूँ की जो भी भक्त मेरे लिए अपनी नाक का कुछ भी भाग अर्पित करेगा,उसे मैं तुरन्त दर्शन देकर उसके संकट हरूँगा और मनोरथ पूर्ण करूँगा।
लेकिन नियम यही है की मुझे अर्पित की नाक को सही नही करूँगा, क्योंकि ये मुझे प्रदान की गयी।ये मेरी भक्ति का इष्ट चिन्ह है, यो ये अन्य भक्तों को मेरी इस कृपा को शीघ्र प्रदान करने का ये चिन्ह होगा।
राजन तब से मैं अति प्रसन्न होकर वापस अपने नगर आया,जहाँ लागों ने मुझे चिढ़ाया, पर मेरी चिढ़ने के स्थान पर उन्हें मेरा मुस्कान के साथ आशीर्वाद वचन सुन आश्चर्य हुआ, तब उन्होंने इसका कारण पूछा मेने उन्हें ये ईश्वर कृपा और नियम बताया।
जिसे सुनकर उन्हें विश्वास नही हुआ और जिस भी भक्त ने ऐसा किया, उसे तुरन्त ईश्वर के साक्षात् दर्शन हुए और निरन्तर हो रहे है,यो राजन जरा भी संशय नही करते हुए अपनी नाक को अपने इष्टदेव के नाम पर श्रद्धा से अर्पण करो और साक्षात् चमत्कारिक ईश्वर के दर्शन कृपा पाओ। महाराज भी इस पर विचार कर की अब तक अनेक व्रत पूजापाठ ध्यान विधियों से मुझे अपने इष्ट के दर्शन नही हुए, जिसने जो पूजाविधि बताई वही की, यो सम्भव है ये असम्भव अविश्वनीय लगते हुए भी जाने सम्भव हो कृपा हो, यो ये विचार करते हुए अपनी नाक को कटाने हेतु तैयार हो गए। ये देख उनका महाविद्धान् महामन्त्री ने ये सब सुनकर गम्भीर विचार किया की, आज तक धर्म इतिहास में ऐसा कोई ईश्वर के दर्शन पाने का कोई उल्लेख नही है। ये अवश्य कोई प्रपँच झूठ है, यो उसने तुरन्त महाराज को रोका और नकटे गुरु से बोला महाराज से पहले मैं अपनी नाक ईश्वर को अर्पित करता हूँ, मेरे दर्शन के उपरांत प्रमाण होने पर तब महाराज ऐसा करेंगे, तो महामन्त्री ने अपनी नाक काटी तो केवल उन्हें खून निकलने के अलावा कोई ईश्वर के दर्शन नही हुए।
तब उन्होंने नकटे गुरु से पूछा तो नकटा गुरु तुरंत उनके कान में बोला की अरे मुर्ख, तुम भी यही कहो की हां मुझे ईश्वर के साक्षात् दर्शन हो रहे है। अन्यथा अब इस नाक कटने पर सभी और नकटे नकटे पुकारे और जीवन भर अपमानित होंगे ये प्रपँच झूठ सुनकर महामन्त्री ने सत्य बात महाराज को बतायी।
जिसे सुनकर सब स्तब्ध हो गए और क्रोधित होकर सत्यता बताने को कहा। तब डर से नकटा गुरु बोला महाराज छमा करें। मैंने अपने निरन्तर अपमान के कारण ये प्रपँच बनाया और जब लोगो को ऐसा करने पर इष्ट दर्शन नही होते थे, तब मैं उन्हें यही कहता, की अब लोक अपमान से बचने को मेरा साथ दो और अपनी संख्या बढ़ाओ। ताकि सब एक जैसे हो जाये, अंत में मेरे मस्तिष्क में ये षड्यंत्र आया की यदि राजा भी हमारे जैसा हो जाये, तो ये समस्या ही समाप्त हो जायेगी। यो मेने आपको भी ऐसा करने को कहा, ये तो आपके विश्वासपात्र और सत्य को प्रमाण के साथ स्वीकारने वाले ये महामन्त्री जी ने ऐसा करके भी इस झूठ के पीछे के सत्य को जान लिया और आप बच गए। महाराज मुझे छमा करे, तब महाराज ने उसे ईश्वर के नाम पर इतना बड़ा भयंकर झूठ फेलाने और लोगो को नकटा बनाने के लिए दंड स्वरूप आजीवन कारावास दिया, की अपने किये पर चिंतन करे और पश्चाताप करता ईश्वर चिंतन करे और अपने महामन्त्री को पुरुष्कृत किया।
तब महामन्त्री ने महाराज से एक और घोषणा करने की आज्ञा मांगी, की सारे राज्य में आज के दिन इस झूठ का अंत होने की प्रसन्नता में और लोगो में ये संदेश भी प्रचारित हो, की ऐसे झूठ पर किया कोई भी धार्मिक या भौतिक कार्य अधिक समय तक छिप और सफल नही होता है। उसका अंत अवश्य होता है, उस स्मरण में इसको *मुर्ख दिवस” के नाम से समाज में प्रचलित किया जाये। ये उत्तम और उपयोगी समाजिक कल्याण के विचार को सुन प्रसन्नता से उसे राज्य में मुर्ख दिवस के रूप में घोषित किया।
तभी से ये अन्य राज्यों में प्रचारित होता हुए सदूर देशों में भी अनेक ऐसे ही झूठ के बोलने और उनके खुलने के रूप में तरहां तरहां से प्रचलित चला आ रहा है। कालांतर में अनेक बार नकटे सम्प्रदायों जेसे ही अनेक प्रपंची लोगों ने इस दिवस को भारत में अपने प्रभावों से राज्यों और प्रजाओं में इस भ्रम से फैलने से रोक दिया, की ऐसा करना ईश्वर को भी मुर्ख बनाने जैसा घोषित करना आदि हुआ, ताकि उनके झूठे प्रपंच सदा चलते रहे, परन्तु झूठ सदा छिपता नही है। सत्य पुनः प्रकट हो जाता है, तो ये दिवस किसी न किसी और रूप में अन्य विदेशों से फिर से संसार में फेल गया और हमारे भारत में भी मनाया जाने लगा। परन्तु ये दिवस हमारी ही देन है।
इस मुर्ख दिवस को भी उस दिन चैत्र माह के प्रथम दिन को इस घटना के झूठ पर सत्य की विजय के रूप में मनाने को लेकर की झूठ यानि असत्य पर सत्य की विजय के रूप में आपको खूब प्रसन्नता से मनाना चाहिए और समाज को हानि पहुँचाने वाले सभी झूठी कथाओं और अफवाहों को अवश्य रोकने का प्रयास करना चाहिए। ये ही सच्चा मनुष्य कर्तव्य है। यही आपको आज के मुर्ख दिवस पर सत्य के प्रचार की शपथ खानी चाहिए, की हम झूठ के प्रकारों को समाज के सामने पहले झूठ के रूप में बताकर लाएंगे और फिर उसकी सत्यता भी लोगों को बताएंगे, यही सबकी प्रसन्न हंसी का कारण होगा *यही 1 तारीख यानि प्रथम झूठ से और अप्रैल यानि चैत्र चैतन्य होना ही मुर्ख दिवस का सच्चा अर्थ है।
इसका उल्लेख महृषि दयानन्द जी ने भी अपने ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में भी किया है।

स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
www.satyasmeemission.org