एक बार सती अनसूया अपने अंतर्ज्योति में ध्यान मगन थी, तब उन्हें अनेक दिव्य वृक्षों के सजीव दर्शन होने लगे जिनमें एक वृक्ष अधिक दिव्यता लिए दर्शित हुया, ये देख अनसूया अचंभित होकर अंतरमन में प्रश्न करने लगी की ये क्या रहस्य है, तब उनके अपने आत्मज्ञान प्रज्ञा पूर्णिमा में प्रकाश हुया और उन्हें दिव्य ज्ञान वाणी सुनाई होने लगी की हे-आत्मज्ञ ये एक दिव्य वृक्ष आंवला है, जो आज के दिन प्रकर्ति में फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष एकादशी को सृष्ट होने के कारण इस दिवस को आंवले की अर्थात आमलकी एकादशी के नाम से जाना जायेगा और अब वर्तमान में जाना जाता है. हे देवी आमलकी का अर्थ आंवला होता है इस एकादशी का महत्व अक्षय है, ये अपने सम्पूर्ण नवगुणों को लेकर प्रकट हुया है और मनुष्य जीव के प्रकर्ति में जन्म लेते ही जो वात,मल,पित्त आदि त्रिदोषों का भी प्रभाव आता है यो इन त्रिदोषों के दूषित प्रभावों को नष्ट कर सन्तुलित स्वस्थ निरोगी जीवन की प्राप्ति के लिए ईश्वर सत्य और ईश्वरी सत्यई पूर्णिमाँ ने मनुष्य जीव कल्याणार्थ हेतु ये दिव्य वृक्ष-आंवला,पीपल,वट,अशोक,आम,नीम,सेब की उत्पत्ति की जिनमें आज का दिवस आंवले का है यो इसका नवगुण अक्षय है और अक्षय तिथियों की समस्त तिथियों जैसे अक्षय तृतीय व् अक्षय नवमी आदि के जितने भी दिव्य परिणाम है वो इस अक्षय आंवला एकादशी के रूप में मनुष्य को मिलते है। जिस प्रकार अक्षय नवमी में आंवले के वृक्ष की पूजा होती है उसी प्रकार आमलकी एकादशी के दिन जो भी मनुष्य एक या अधिक आंवले के पोधे कही भी लगाएगा और उनकी देखभाल रूपी उपासना पूजा करेगा और जो भक्ति स्वरूप ईश्वर सत्य नारायण और ईश्वरी श्रीमद् सत्यई पूर्णिमाँ की आंवले के वृक्ष के नीचे घट सहित स्थापना करके व्रत करता हुआ या करती हुयी आंवले का फल बाँटता है अथवा केवल आँवले से सम्बंधित किसी भी प्रकार के निर्मित मिष्ठान ओषधि आदि को बाँटता है उस भक्त को स्वयं व् परिवार में जितने भी असाध्य रोग कष्ट है उनसे मुक्ति मिलती है ओषधियों का उस पर प्रभाव पड़ने लगने से उसका रोग क्षीण होते होते समाप्त हो जाता है।ये सब दिव्य आत्मवाणी को सुन समझ कर देवी अनसूया ने आत्मनमन किया और ध्यान से निवर्त होकर अनेक आंवले के पोधे लाकर अपने आश्रम में श्रद्धापूर्वक लगाये और आंवले के फलों का ऋषियों व् आश्रम के विद्याध्यन विद्यार्थियों को आंवले का प्रसाद बांटा और उन्हें आंवले के महत्त्व को बताया और भविष्य में अपने अपने घर में जाकर आंवले के महत्त्व को प्रचारित करने का उपदेश दिया जिसका सभी ने समर्थन किया और आगे चलकर प्रचार किया।।
सत्यास्मि अनुसार आँवला एकादशी व्रत विधि:-
अमालकी एकादशी के दिन प्रातः स्नानादि से निवृत होकर श्रीमद् सत्यई पूर्णिमाँ के सामने घी की अखण्ड ज्योत जलाये और यदि कहीं आंवले का वृक्ष हो तो वहां भी घी की ज्योति जलाये और अधिक से अधिक खीर का प्रसाद गाय अथवा कुत्तों को दे व् स्वयं भी ग्रहण करें और नही तो एक या अधिक आंवले का पौधा लेकर अपने बगीचे या पास के किसी मन्दिर में लगाये यही आँवले की सर्वोत्तम पूजा है आंवले का प्रसाद के रूप में भी बांटे और स्वयं भी प्रसाद के रूप में खाएं..
और इस दिन आंवले की कोई भी ओषधि आदि अपने घर में लाएं और सत्यास्मि तथा अन्य शास्त्रों के अनुसार आमलकी एकादशी के दिन आंवले का सेवन सभी प्रकार के पाप को नष्ट करता है…
विशेष-आपको जब भी आज के दिन समय मिले तभी ऐसा करने से भी सम्पूर्ण दिन के किये व्रत का अक्षय फल मिलता है
आवंला व्रक्ष सभी लगाओ
यो जगो ओर जगाओ सवेरा।
आंवला लाओ खाओ बांटो
ओर भगाओ रोग अंघेरा।।
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