मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शुभकामनायें तो मकर संक्रांति का दे रहे थे लेकिन इन शुभकामनाओं में संदेश कुछ और ही छिपा हुआ था।
शिवराज सिंह चौहान की जिंदगी बड़ी उथल-पुथल भरी रही 12वीं विधानसभा में पहली बार 29 नवंबर 2005 को मुख्यमंत्री बने। इसके बाद 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने जीत हासिल की और दोबारा मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए। 5 साल कार्यकाल पूरा करने के बाद 2013 में फिर एक बार विधानसभा चुनाव में बीजेपी जीती और इस बार भी मुख्यमंत्री का ताज शिवराज के सिर ही सजा।
शिवराज से पहले बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री थे। बाबूलाल 23 अगस्त 2004 को उमा भारती को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद मुख्यमंत्री बने थे और इस पद पर करीब 1 साल 3 महीने तक रहे।
बाबूलाल से पहले उमा भारती 2003 विधानसभा चुनावों में बीजेपी की जीत के बाद करीब 8 महीने मुख्यमंत्री रही थीं। उमा भारती से पहले राज्य में कांग्रेस की सरकार थी और कांग्रेस की ओर से दिग्विजय सिंह ने 7 दिसंबर 1993 से 7 दिसंबर 2003 तक मुख्यमंत्री पद के अपने दो कार्यकाल पूरे किए थे।
शिवराज सिंह चौहान को लालकृष्ण आडवाणी के खेमे का माना जाता है। इस वक़्त भाजपा में दो खेमें हैं। एक मोदी शाह की तरफ तो दूसरा लालकृष्ण की तरफ वाला।
लालकृष्ण आडवाणी मोदी के सामने कमजोर भले पड़ गए हों लेकिन सक्रिय राजनीति में उनके दिग्गज चहेतों की छाप बड़ी जबरदस्त है।
मोदी-शाह की राजनीति ने लालकृष्ण आडवाणी के खेमें को हाशिये पर धकेलने का काम किया, लेकिन जैसे ही भाजपा 3 राज्यों का चुनाव हारी वैसे ही पार्टी में मोदी-शाह के विरोधियों ने आलोचना शुरू कर दी। इस कड़ी में आरएसएस ने भी अपनी भूमिका बखूबी निभाई। आरएसएस ये भलीभाँति जानती है कि मोदी-शाह का प्रत्यक्ष विरोध उनके लिए उल्टा दाव हो सकता है। इसीलिए आरएसएस फूंक-फूंक कर कदम रख रही है और राम मंदिर मुद्दे को लेकर मोदी को घेर रही है। इसके लिए मोहन भागवत ने खुद कमान संभाली हुई है और वे कई बार बातों-बातों में बिना नाम लिए मोदी शाह को घेर चुके हैं।
2019 के लोकसभा चुनावों का समय जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है वैसे-वैसे मोदी-शाह की आलोचना का फायदा पार्टी के दिग्गज अपने-अपने पक्ष में करने में जुट गए हैं।
अब अपने शिवराज सिंह चौहान भी पीछे कहाँ रहने वाले थे। उसी कड़ी में हमारे चहेते नेता शिवराज सिंह चौहान भी शामिल हो गए।
भले शिवराज मोदी विरोध में अभी तक खुलकर न बोल पाए हों लेकिन गाहे बगाहे बहुत कुछ बोल जाते हैं। 2014 में शिवराज ने अपना नाम पीएम पद के लिए भी आगे किया था। लेकिन मोदी के आगे वे फीके पड़ गए जिसकी वजह से उन्हें पीछे हटना पड़ा। “तो अब मौका भी है दस्तूर भी।” उसी की बानगी यह वीडियो है जिसमें शिवराज सिंह चौहान शुभकामनाएं तो मकर संक्रांति का दे रहे हैं, लेकिन इस वीडियो से संदेश तो कुछ और देना चाह रहे हैं।
मनीष कुमार
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