भक्त बिना भगवान नहीं
भगवान बिना ना भक्त।
एक भक्ति,एक शक्ति है
एक दूजे बिन अशक्त।।
ज्यों दाता बिन लेता नहीं
यो ग्रहण बिना क्या दान।
भगवान हो भक्त से पूरा
भक्त पूरा संग भगवान।।
यो नर नाम भगवान कहे
और भक्त कहलाता नारी।
प्रेम दोनों के मध्य पूर्ण
दोनों एक दूजे आभारी।।
योग मार्ग उपभोगता भगवान
भक्ति मार्ग रस भोग भगवान।
कर्म मार्ग भगवान भाग्य
शक्ति मार्ग नारी भगवान।।
द्धैत से अद्धैत बना है
अखण्ड से दो खण्ड जना है।
पिता मात बहिन भाई बंधु
सर्व नाम ईश भक्त बना है।।
कोई एक बन जीवन जीये
चाहे भगवान या भक्त रस पीये।
प्रेम समर्पण अहं बिन करना
बस एक के बन सदा हम जीये।।
श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी महाराज
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
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Jay satya om siddhaye namah