मानव अधिकार दिवस पर विशेषकर स्त्रियों को ही अपनी भौतिक अधिकारों के साथ आध्यात्मिक अधिकारों के प्रति भी जागरूक होना होगा। जो समान्यतोर पर इस प्रकार से है..
1-सभी स्त्रियों को पुरुषों की भांति कुम्भ शाही गंगा स्नान में पुरुषों की तरहां प्रथम व् समांतर स्नान का सर्वाधिकार की प्राप्ति को सत्यास्मि मिशन के आंदोलनों में बढ़ चढ़ कर सहयोग देना चाहिए।
2-स्त्री सन्तों को पुरुष अर्थ प्रदान करते नाम महामण्डलेश्वर पदवी के स्थान पर स्त्री शक्ति कइ अर्थ को प्रदान करते नाम महामण्डलेश्वरी पदवी को ग्रहण करनी चाहिए।
3-स्त्री सन्तों को पुरुष प्रधान देवताओं के सर्वप्रथम पूजनीय के स्थान पर स्त्री शक्ति के महाप्रतिक पूर्णिमा देवी की पूजा करनी चाहिए अथवा प्राचीन देवी दुर्गा को प्रथम स्थान देना चाहिए।
4-अपने अखाड़ों का नाम पुरुष प्रधान उपाधियों से मुक्त करके स्त्री प्रधान उपाधियों से नामकरण करना चाहिए।
जैसा की सत्यास्मि मिशन ने स्वतंत्र गंगा स्त्री स्नान आंदोलन का पांचवीं बार सफल आयोजन किया है।
5-स्त्री प्रधान त्योहारों को विशेष मान्यता के साथ मनाना चाहिए।
जैसे-चैत्र पूर्णिमा को पुरुषों द्धारा अपनी पत्नियों की सार्वभोमिक उन्नति सफलता के लिए पांचवीं बार प्रेम पूर्णिमा का व्रत मनाया गया।
6-स्त्री को सभी सामाजिक हो या धार्मिक मान्यताओं में प्रचलित अंधविश्वासों को उनके पीछे का सत्य क्या है? उसे जान कर उसमे उनके लिए क्या अच्छा और क्या बुरा है? और आज के परिवेश में वे मान्यताएं कितनी सफल सहज और उपयोगी है? ये जान कर मानना अपनाना होगा। और जो नही है, उन्हें त्यागना होगा।।क्योकि सभी धर्मों में कितना ही भौतिक उन्नति हो जाये। उसके उपरांत भी धर्म की पकड़ अत्यधिक होने से वहीं से ही सभी शोषणों का उदय होता है। उन्ही को जानना हमें अति जरूरी है। और वहीं सुधार हुए बिना भौतिक जगत में सुधार सम्भव नही है। यो इन्हें जाने और सोचे समझे।
7-स्त्री का सर्वाधिक शोषण उसकी धार्मिक ज्ञान की कमी होने से होता है।
जैसे-
1-आज भी घर में बच्चे के जन्म होने पर सोबर फेल गयी है। यो ईश्वर भजन और पूजाघर दीपक नही जला सकते है।
2-घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर सूतक फेल गया है। यो ईश्वर की पूजा नही कर सकते है।
3-मासिक धर्म पीरियड में स्त्री रसोईघर में नही जा सकती है। ये आज भी अनेक पढ़े लिखे घरों में खूब प्रचलित है।
4-मन्दिरों में अभी तक स्त्री पुजारी के बैठने पर उनके आशीर्वाद देने पर बुरा विचार माना जाता व् उनसे पूजा करनी अपशुकन मानी जाती है।
5-विधवा स्त्री माता आदि से पुत्र विवाह में शुभ कार्य नही कराये जाते है।
6-शाम होते ही घर में झाड़ू लगाने को बड़ा बुरा माना जाता है।
7-सभी व् विशेष कर स्त्रियों को अपने बच्चों को लड़कियों व् स्त्रियों के प्रति सद व्यवहार करने की सीख पर अधिक बल देना चाहिए।
8-बड़ी बहिनों को अपने भाइयों को दूसरी लड़कियों के प्रति अच्छी सोच रखने पर व् उनके लड़कियों के प्रति कामुक सोच को अपने ज्ञान से समझाते हुए सदविचार स्पष्ट करने चाहिए। ना की उनके व्यक्तिगत अफेयरों और गलत व्यवहारों को परिजनों से छिपाने में साहयता करनी चाहिए। ऐसा करके आप अपनी ही तरहां किसी अन्य लड़की व् स्त्री के प्रति होने वाले धोखेधड़ी को बढ़ावा देकर किसी ना किसी रूप में अपने को ही हानि पहुँचाती है।
8-भुत प्रेत के व्यर्थ अज्ञान को जानो और अपने शरीर में होने वाले अचानक हाथ पैरों के हिलने व् झटका लगने या शरीर के दबाब में आ जाने के वैज्ञानिक कारणों को जानों और इन अंधविश्वासों से मुक्ति अन्यों को भी दिलाने में साहयक बनो।
9- जबकि हमें जन्मे बच्चे के समय और मृतक व्यक्ति की आत्मा की शांति को स्वयं व् परिजनों के साथ मिलकर सवा लाख या अधिक मंत्र आदि का पाठ करना चाहिए। अपने अपने धर्म के धर्म ग्रन्थों का पाठ करना चाहिए। और ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए, की उन्होंने हमें एक नया जीवन हमारी नवीन पीढ़ी बना कर हमे दिया है। और मृतक को नवीन जीवन प्रदान करें।
10-ऐसे ही अनेक कारणों को हमें अपने आसपास देखते हुए उन्हें समझते हुए और समझते हुए उनका निराकरण करना चाहिए। यही मानव का मानव के प्रति सफलता भरा अधिकार दिवस होगा।
11-स्त्रियों को अपने स्त्री विषयक ज्ञान की वृद्धि की अपनी ही खोजों से बढ़ाते हुए,अपने स्वतंत्र योग शास्त्र लिखने होंगे।
12-स्त्री का शरीर और ऊर्जा पुरुष से बिलकुल भिन्न है,यो उसे अपनी ऊर्जा कैसे जाग्रत हो?इस विषय पर अपनी कुण्डलिनी शक्ति और उसके बीजमंत्र आदि सब खोजने होंगे।इस विषय पर सत्यास्मि मिशन की विश्व में प्रथम बार खोज-स्त्री की कुण्डलिनी के योग लेखों का अध्ययन करना चाहिए।
13-प्रचलित सभी व्रतों में जो पुरुषवादी वर्चस्व है,जिसमें केवल स्त्री को पुरुष की सेविका और मंगते के रूप में प्रदर्शित किया है,इसे समझना होगा।और अपनी ही आत्मा की परमावस्था ही परमात्मा है,उसे जानना और मानना होगा।
यो ऐसे अनेक अन्य कारणों को मानव अधिकार दिवस पर विशेषकर स्त्रियों को ही अपनी भौतिक अधिकारों के साथ आध्यात्मिक अधिकारों के प्रति भी पूरी तरहां जागरूक होना होगा।तभी कानून से न्याय नहीं,अपने और अपने सद्व्यवहार की उन्नति से न्याय मिलेगा।
विश्व मानवाधिकार दिवस 10 दिसम्बर पर अपना मानवतावादी संदेश कविता से देते हुए स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी कहते है की….
मानव का मानव ही शत्रु
और मानव ही मानव का मित्र।
मानव ही अधिकार हनन कर
मानवता,वीभत्स भरता मनुचित्र।।
दास बनाता आत्म हनन कर
धन लोलुपता देता बना पुरुषाकार।
शोषण को प्रेरित भी करता
शोषित कर करता तृषकार।।
भावनाओं का कंधा देता
ह्रदय में भरता आश्वासन वचन।
निभाने में बहाने भरता
उधार नाम रचे षड्यंत्र रचन।।
मध्यस्त बन दलाली करता
और करता भरता दोष।
सुलझन नाम उलझने देता
समाधान उगलता रोष।।
नियम बने उत्थान के हेतु
नियम बनते गए अधिनियम।
नियम का पालन अनियम रख होता
मुक्ति नाम बंधन है नियम।।
संसार भर में प्रयत्न होते
सभी मनुष्य समान अधिकार मिले।
रंग जाति धर्म भेद मिटे
और एक बगियाँ में सब पुष्प खिलें।।
यो गठित संस्था विश्व में करके
विश्व मानवाधिकार दिवस मनाया।
मानव एक धर्म एक है
और ईश ने मानव एक बनाया।।
बाल कार्य,विजातीय संघर्ष
सामाजिक और राजनैतिक अधिकार।
शिक्षा भेद से पेय खादय तक
व्यवसायिक संगठन और न्यायाधिकार।।
व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप
और उपयुक्त निष्पक्ष जाँच बिना।
एक पक्षीय दंड दिया जाना हो
सबका विरोध करें मानवाधिकार घना।।
यो मानवाधिकार दिवस मनाओ
और जुडो संस्था मानव अधिकार।
मानव बनो मानव संग देकर
मानव धर्म अपनाओ मानव दे प्यार।।
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स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
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