चौंकिए मत, मैं बात कर रहा हूँ बुलंदशहर में सुनियोजित तरह से दंगे कराने की साजिश की। बुलंदशहर को जलाने की साजिश की। दंगों के ज्वालामुखी पर बैठे पश्चिमी उत्तरप्रदेश को दहलाने की।
लेकिन इन सबको यूपी पुलिस यानि बुलंदशहर की बहादुर पुलिस ने नाकाम कर दिया। नाकाम ही नहीं किया बल्कि अपना एक होनहार इंस्पेक्टर खो तक दिया। खोया भी किसकी वजह से ? यह मैं पहले भी विस्तारपूर्वक बात चुका हूं तो अब संक्षिप्त में बता देता हूँ।
दरअसल बुलंदशहर में तीन दिवसीय तब्लीगी इज्तिमा का आयोजन हो रहा था। यानि 1 दिसंबर से 3 दिसंबर तक। इस जमात के आयोजन की दूरी बुलंदशहर जिला मुख्यालय से तकरीबन 4 किलोमीटर की रही होगी। इस जमात में लगभग 50 लाख के करीब मुस्लिम समुदाय के लोग इकट्ठा हुए थे। लेकिन लोगों के मुताबिक यह संख्या लगभग एक से डेढ़ करोड़ के करीब थी।
कुछ संगठनों ने इस जमात को मुस्लिमों का शक्ति परीक्षण भी नाम दिया, यहां तक कि स्थानीय भाजपा सांसद इस आयोजन पर सवाल खड़े कर दिए और इसे मुस्लिमों का शक्ति परीक्षण बताया।
अब बात करते हैं बुलंदशहर में दंगों की साजिश की, बुलन्दशहर भले राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में हो। इसकी सीमा दिल्ली नोएडा से सटी हों लेकिन यह एक शांत शहर है। यहां पर लोगों में एक दूसरे के प्रति इज्जत भाव है, यहां संस्कार हैं। पूरा जिला बहुत सारी चीजों के लिए प्रसिद्द है तो यह एक ऐतिहासिक शहर भी है। बुलंदशहर की सीमा कभी दिल्ली को छूती थी। लेकिन गौतमबुद्ध नगर बनने के बाद बुलंदशहर का एक बड़ा हिस्सा ग्रेटर नोएडा और नोएडा दूसरे जिले को दे दिया गया, जिसे मिलाकर गौतमबुद्ध नगर बना। अब बुलंदशहर के सम्पूर्ण जिले की आबादी (शहरी, ग्रामीण) 10 लाख से भी कम है।
बात बुलंदशहर दंगों की हो रही थीं तो थोड़ा उन पर प्रकाश डालते हैं। बुलंदशहर जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर की दूसरी पर स्याना तहसील का गांव चिंगरावठी, जाट बाहुल्य इलाका, वहां लगभग गांवों में जाट, ठाकुर, पंडित इत्यादि रहते हैं जाटों की संख्या ज्यादा है। मुसलमानों की गिनती की जा सकती है।
एक ऐसे इलाके में गौकशी की सूचना मिलती है लोग वहां स्थित पुलिस चौकी में शिकायत लेकर जाते हैं, वहां के इंचार्ज सुबोधकांत लोगों को विश्वास दिलाते हैं कि जो भी दोषी होगा उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी। भीड़ मान भी जाती है कि एकाएक पथराव शुरू हो जाता है। इससे पहले पुलिस कुछ समझ पाए लोग लाठी डंडों, अवैध हथियारों और पत्थरों से लैस पुलिस चौकी को घेरकर पथराव शुरू कर देते हैं। पुलिस भीड़ को डराने व नियंत्रित करने के लिए हवाई फायरिंग भी करती है लेकिन भीड़ नहीं डरती और इसी दौरान भीड़ में से एक पत्थरबाज की गोली लगने से मौत हो जाती है और अपवाह उड़ जाती है कि पत्थरबाज सुमित को पुलिस की गोली लगी है फिर क्या, इस अपवाह ने आग में घी डालने का काम किया और चन्द पुलिस वालों के सामने सौंकड़ों की भीड़ और पुलिस इंस्पेक्टर को गोली मार दी जाती है जिसका आरोप जीतू फौजी पर लगता है, जीतू फौजी, जैसा कि नाम से प्रतीत हो रहा है वह भारतीय सेना में है, जिसके वीडियो भी वायरल हुए। जीतू फौजी इंस्पेक्टर को गोली मारने के बाद वहां से फरार हो जाता है और जाकर अपनी ड्यूटी जॉइन कर लेता है। जो फौजी अपनी जान की परवाह किये बिना सरहद की हिफाजत की कसमें खाता है यहां पर वो फौजी एक हत्यारा बना जाता है। और हमारे देश की सबसे बड़ी और बहादुर सेना का नाम बदनाम करने का घिनोना काम करता है।
पुलिस द्वारा दंगों का मास्टरमाइंड योगेश राज और उसके साथियों को बताया जाता है जो अब तक फरार है।
योगेश राज और उसके साथियों का ताल्लुक बजरंग दल, हिन्दू युवा वाहिनी, विश्व हिंदू परिषद और भाजपा से होता है।
चूंकि सूबे और केंद्र में सरकार ही इन्ही की है, तो सारी बात आपको समझ आ जानी चाहिए।
दंगे क्यों हुए? यह आपको नीचे दी गयी पोस्ट पढ़ने के बाद समझ आ जाना चाहिए।
एक शांत शहर को आग लगाने की नाकाम साजिश का पर्दाफाश, बुलंदशहर दंगों का सारा सच, सबूतों और पूरे कच्चे चिट्ठे के साथ- मनीष कुमार ने किया दंगों की साजिश का पर्दाफाश
लेकिन एक बात जो गौर करने लायक है कि अगर दंगे होते तो आप सोचिए नुकसान किसका होता? कौन मरता? किसके घर जलते? कौन बेघर होता?
हमारे प्रदेश का मुखिया? हमारी नाकाम सरकार?
नहीं !! बल्कि मरती आम जनता और मरती इंसानियत और तमाशे देखते वो मांदरी जिनकी डुगडुगी पर बंदर नाच रहे थे।
जिस योगेश राज ने दंगे भड़काये वो ठाकुर है और हमारे सूबे का मुखिया भी ठाकुर है। इस देश का सबसे बड़ा दंश ही जाति और धर्म हैं जिसकी वजह से ये सरकारें बनती बिगड़ती हैं। और नेता सरकार में आने के लिए सम्प्रदायिकता फैलाते है, यहां विकास के नाम पर नहीं बल्कि जाति धर्म के नाम पर सरकार बनाई जाती हैं, और वर्चस्व के लिए दंगे कराए जाते हैं, लोगों को भड़काया जाता है।
योगेश राज का नाम पुलिस की एफआईआर में है और उसको इन दंगों के लिए जिम्मेदार भी ठहराया गया है।
सूबे के मुखिया माननीय श्री योगी आदित्यनाथ जी ने पुलिस के इंटलीजेंस को फेलियर बताकर इन दंगों का जिम्मेदार पुलिस को बताया है, दंगों को पुलिस की नाकामी करार दिया है। और इस घटना को साजिश नहीं बल्कि दुर्घटना करार दिया।
अब थोड़ा सामाजिक होकर सोचिए क्या पुलिस कोई साधु महात्मा है, या अंतर्यामी है, हमारे प्रदेश के मुखिया तो एक बड़े मठ के साधु महात्मा है परप पूजनीय हैं फिर उन्हें कैसे कोई इनपुट नहीं मिला?
जिस जगह की घटना है उस चौकी में मुश्किल से 5-6 पुलिस वाले रहे होंगे। शहर के सभी थानों की लगभग पुलिस बुलंदशहर में आयोजित जमात की शांति व्यवस्था में लगी हुई थी। क्योंकि जरा सी चूक पर कौमी दंगे हो सकते थे, धार्मिक उन्माद हो सकता था। बुलंदशहर पुलिस ने भी वही किया जो सही मायने में करना चाहिए था।
और रही बात इनपुट की और इंटलीजेंस फेलियर की तो मतलब दंगाई अपना इनपुट देते, वो भी.. वो दंगाई जो सोच समझकर रणनीति तैयार कर रहे हों? जबकि गांव वालों का कहना था कि “हम गांव वाले तो मान गए थे, पुलिस से सहमत भी हो गए थे लेकिन बाहरी लोगों ने आकर उत्पात मचाया।” अब इसमें पुलिस का फेलियर कहाँ से सामने आया, बल्कि पुलिस ने पूरे प्रदेश को जलने से बचाया। अगर दंगे होते तो पूरे पश्चिमी उत्तरप्रदेश को अपनी चपेट में ले लेते। ऊपर से 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी, वो और आग में घी डालने का काम करती।
वैसे दंगों के तुरंत बाद आशंका जताई जा रही थी कि इसमें बहुत सारे पुलिस अधिकारियों के ताबड़तोड़ तबादले होंगे, पुलिस को जिम्मेदार ठहराया जाएगा और हुआ भी कुछ वैसा ही। बुलंदशहर के एसएसपी का तबादला, साथ में स्याना के सभी बड़े पुलिस अधिकारियों के तबादले इस बात की सहमति देते हैं। लेकिन हमारी परम पूज्नीय सरकार दंगाइयों को दंगाई मानने के लिए सहमत नहीं हैं।
तो मेरी माननीय परम पूज्नीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी को एक सलाह कि वो अब लगे हाथ उन सभी दंगाइयों को भी सम्मानित कर दें जिन्होंने दंगों की कोशिश तो की, भले वो पुलिस वालों की गलती से नाकाम हो गयी, लेकिन उन्होंने दंगे करवाने की बहादुरी तो दिखाई, जबकि उन सभी दंगाइयों को इस बात का अंदाजा था कि अगर शहर में दंगे होते तो उनके घर भी इस चपेट में आ जाते। वाकई यह बहादुरी वाला काम था, तो इन सबकी सम्मानित करना भी बनता है।
और वैसे भी पुलिस को कौन इनाम देता है वो तो वैसे भी बदनाम है अच्छा काम करे तो दोषियों की नज़र में बदनाम, और कानून व्यवस्था अच्छे से देखे और कड़ाई करे तो सरकार की नज़र में बदनाम।
तो ऐसे में पुलिस सजा की हकदार है लेकिन सजा सिर्फ तबादले? सजा मिली भी तो वो भी कम। वायरल वीडियो में पुलिसवालों के लिए मिली गालियों सुनने के मुताबिक तो सभी पुलिस वालों को गोली से उड़ा देना चाहिए था।
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मनीष कुमार
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