आजका दिन भारतीय सभ्यता में महिलाओं का दिन होता है महिला अपने पति की लंबी उम्र के लिए कामना करती हैं और शाम को पूजा पाठ के बाद चंद्रमा को अर्क देकर अपने पति का चेहरा देखकर फिर इस उपवास को तोड़ती हैं। पति पत्नी के इस स्नहे और त्याग को करवाचौथ का व्रत कहते हैं। करवाचौथ के व्रत की वैसे तो अलग कथा है लेकिन समय के अनुसार बहुत सारी चीजें आती गयी हैं।
श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज ने महिलाओं के लिए के प्रेम और त्याग के लिए एक कविता समर्पित की है।
करवा चौथ पर कवि कविता का अर्ध्य अर्पण…
ए चाँद तुम को देख कर
जो ख़्वाब मेने सदा बुने।
वो आज बन हक़ीक़त
मेरे सामने सच हुए घने।।
क्या क्या न जतन किये
क्या क्या न सहा मेने।
रहा तू चाँद साक्षी मेरा
सदा साथ दिया तूने।।
तुम्हे क्या दूँ देने लायक क्या
तुम देते प्यार ले विरह।
मिटाते स्नेह दे किरण
रात बात खोल गिरह।।
जाने कितनी और कितने
तुम्हें ताकते है आज।
तुम व्यस्त हो मिटा त्रस्त
पिय संदेश दे लगे काज।।
तुम प्रिय प्रेम प्रीत रास
यूँ चार कर्म करवा चौथ।
चरि चारु चकोर चाँदनी
तुम्हें व्रत कर रही न्यौत।।
यूं ही तो सदा याद रखूँ
ए चांदनी के चाँद।
पहले देखती तुम्हें
उन्हें देखती उसके बाद।।
यही मेरा अर्ध्य तुम
यही मेरा वंदन तुम्हें।
साथ तुम देते रहना
आशीष किरण प्यार की हमें।।
आज तुझसे ले रही
मैं छलनी की ओट।
कहीं तू कह न दे मुझे
वो मिले तो दे गयी चोट।।
क्या करु सदा था
मुझे इन्हीं का इंतजार।
यही मेरे थे वो साजना
जिनका मुझे था गुमनाम प्यार।।
सभी को करवा चौथ की बहुत बहुत आशीष सहित शुभकामनायें..
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श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी महाराज
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः