अवंतिका देवी का मंदिर उ.प्र. में बुलंदशहर जनपद की अनूपशहर तहसील के अंतर्गत जहांगीराबाद से 15 किमी. दूर पतित पावनी गंगा नदी के तट पर निर्जन स्थान पर स्थित है।
यहां न कोई ग्राम है, न कस्बा है। यहां पर मां अवंतिका देवी के श्रद्धालु भक्तजनों द्वारा यात्रियों के ठहरने हेतु बनवायी गईं धर्मशालाएं, साधु-संतों की कुटिया तथा आश्रम हैं। आधुनिक चकाचौंध से दूर, कोलाहल से रहित, प्रदूषण-मुक्त प्रकृति का सुंदर, सुरम्य वातावरण तथा पतित पावनी गंगा नदी का सान्निध्य होने के कारण यह स्थल साधु-संतों की साधना एवं तपोस्थली बनी हुई है। पश्चिमी उत्तर-प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा एवं राजस्थान आदि प्रदेशों से प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु यहां की यात्रा करते हैं।
अवंतिका देवी के परम पवित्र मंदिर का महत्व एवं प्रसिद्धि बहुत अधिक है *किवदंती है की यहाँ सती के हाथ की चूड़ी श्री विष्णु के सुर्दशन चक्र से कट कर गिरी थी यो यहाँ केवल कुंवारी कन्या जिनके विवाह में प्रेम और पति भंग आदि ज्योतिष योग होते है वे इनके पवित्र कुण्ड में स्नान के उपरांत वहीं पुराने वस्त्र त्याग कर नवीन वस्त्र या स्वच्छ वस्त्र पहन कर तब माँ अवंतिका के दर्शन मन्दिर में आकर करने से अति शीघ्र मिट जाते है* और कहा जाता है कि इस सिद्धपीठ पर जगत जननी करुणामयी माता भगवती अवंतिका देवी (अम्बिका देवी) अपनी प्रिय सती रूप के साथ साक्षात् प्रकट हुई थीं। मंदिर में दो संयुक्त मूर्तियां हैं, जिनमें बाईं तरफ मां भगवती जगदम्बा की है और दूसरी दायीं तरफ सतीजी की मूतिर् है। यह दोनों मूर्तियां ‘अवंतिका देवी’ के नाम से प्रतिष्ठित हैं। मां भगवती अवंतिका देवी को पोशाक वस्त्रादि नहीं चढ़ाया जाता है, अपितु सिन्दूर व देशी घी का चोला (आभूषण) चढ़ाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त मां भगवती अवंतिका देवी पर सिन्दूर व देशी घी का चोला चढ़ाता है, माता अवंतिका देवी उसकी समस्त मनोकामना पूर्ण करती हैं। कुंआरी युवतियां अच्छे पति की कामना से माता अवंतिका देवी का पूजन करती हैं। कहा जाता है कि रुक्मिणी ने भगवान कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए इन्हीं अवंतिका देवी का पूजन किया था। यह भी कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इसी मंदिर से रुक्मिणी की इच्छा पर उनका हरण किया था।
मां भगवती अवंतिका देवी मंदिर के अतिरिक्त यहां अन्य दर्शनीय स्थलों में रुक्मिणी कुण्ड, महानन्द ब्रह्मचारी का विशाल रुक्मिणी बल्लभ धाम आश्रम, यज्ञशाला तथा उनकी साधना स्थली है। इस अवंतिका देवी मंदिर तथा रुक्मिणी कुण्ड से एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है। यह कथा द्वापर युग की है तथा रुक्मिणी-कृष्ण विवाह से संबंधित है। किंवदंतियों के अनुसार बुलन्दशहर जनपद की तहसील अनूपशहर के अंतर्गत स्थित वर्तमान कस्बा अहार द्वापर युग में राजा भीष्मक की राजधानी कुण्डिनपुर नगर था। इस कुण्डिनपुर नगर के पूर्व में अवंतिका देवी का मंदिर, पश्चिम के दरवाजे पर शिवजी का मंदिर, उत्तर के दरवाजे पर पतित पावनी गंगाजी बह रही थीं तथा दक्षिण के दरवाजे पर एक बगीचा और हनुमान जी का मंदिर स्थित था। कुण्डिन नरेश महाराज भीष्मक के पांच पुत्र तथा एक सुंदर कन्या थी। सबसे बड़े पुत्र का नाम रुक्मी था और चार छोटे थे जिनके नाम क्रमश: रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेश और रुक्मपाली थे। इनकी बहिन थीं सती रुक्मिणी।
*राजकुमारी रुक्मिणी बाल्यावस्था से अपनी सहेलियों के साथ कुण्ड (रुक्मिणी कुण्ड) में स्नान करके माता अवंतिका देवी के मंदिर में जाकर माता अवंतिका देवी का नाना प्रकार से पूजन करती थीं।* पूजन करने के पश्चात् प्रतिदिन माता भगवती अवंतिका देवी से प्रार्थना करती थीं, *हे जगतजननी अवंतिका माता! हे करुणामयी मां सती भगवती!! मुझे श्रीकृष्ण ही वर के रूप में प्राप्त हों।* राजकुमारी रुक्मिणी जब विवाह योग्य हुईं तो उनके पिता राजा भीष्मक को उनके विवाह की चिंता हुई। राजा भीष्मक को जब यह मालूम हुआ कि रुक्मिणी श्रीकृष्ण को पति के रूप में चाहती हैं तो वह इस विवाह के लिए सहर्ष तैयार हो गये। जब इस विवाह के बारे में राजा भीष्मक के सबसे बड़े पुत्र रुक्मी को मालूम हुआ तो उसने श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह का विरोध किया। राजकुमार रुक्मी ने सती रुक्मिणी का विवाह चेदि नरेश राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल से उनके हाथ में मौहर बांधकर तय कर दिया। शिशुपाल ने अपनी सेना को विवाह से तीन दिन पहले ही कुण्डिनपुर के चारों ओर तैनात कर दिया और हुक्म दिया कि श्रीकृष्ण को देखते ही बंदी बना लिया जाए। राजकुमारी को जब यह मालूम हुआ कि उनका बड़ा भाई रुक्मी उनका विवाह शिशुपाल के साथ करना चाहता है तो वह बहुत दु:खी हुई।
राजकुमारी रुक्मिणी ने एक ब्राह्मण के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण के पास द्वारिका संदेश भेजा कि उसने मन ही मन श्रीकृष्ण को पति के रूप में वरण कर लिया है, परंतु उसका बड़ा भाई रुक्मी उसका विवाह उसकी इच्छा के विरुद्ध, जबरन चेदि के राजा के पुत्र शिशुपाल के साथ करना चाहता है। इसलिए वह वहां आकर उसकी रक्षा करे। रुक्मिणी की रक्षा की गुहार पर भगवान श्रीकृष्ण अहार पहुंचे तथा रुक्मिणी की इच्छानुसार इसी माता अवंतिका देवी मंदिर से रुक्मिणी का हरण उस समय किया जब वह मंदिर में पूजन करने गयी थीं।
जब श्रीकृष्ण रुक्मिणी को रथ में बैठाकर द्वारिका के लिए चले तो उनको राजा शिशुपाल, जरासिन्ध तथा राजकुमार रुक्मी की सेनाओं ने चारों ओर से घेर लिया। उसी समय उनकी मदद के लिए उनके बड़े भाई बलराम भी अपनी सेना लेकर आ गये। घोर-युद्ध हुआ। युद्ध में राजा शिशुपाल आदि की सेनाएं हार गयीं। उसी समय से कुण्डिनपुर का नाम अहार पड़ गया।
अवंतिका देवी मंदिर के पीछे उ.प्र. सरकार के पर्यटन विभाग ने एक धर्मशाला का निर्माण कराया है तथा अनेक धार्मिक भक्तों ने यात्रियों के लिये स्थान बनाये हैं। अब यहां पर स्वामी महानन्द ब्रह्मचारी जी की कृपा से एक संस्कृत पाठशाला, मन्दिर और गऊशाला भी बनी है।
*विशेष:-*रुक्मणी द्धादशी बैशाख मई में जो भी रुक्मणी देवी का विशेष पर्व होता है उस दिन व्रत करते हुए रुक्मणी कुण्ड स्नान व् अवंतिका देवी दर्शन और उन पर सिंदूर घी का चोला चढ़ाने से ग्रहस्थ जीवन में सदा प्रेम बना रहता है।
*आरती-देवी अंवतिका माता*
ॐ जय अवंतिका माता,माता जय अवंतिका माता।
जगदम्बे सती रूपा-2,तुम कृपा की दाता।।ॐ जय अवंतिका माता।।
गिरी थी चूड़ी सती हाथ की,श्री हरि सुदर्शन कट-2..श्री हरि..
यो यहाँ विराजे सती माँ अंबे-2,देती विवाह अति झट।।
ॐ जय अवंतिका माता।।
विवाह की इच्छा थी श्री लक्ष्मी,जन्मी रुक्मणी रूप-2..जन्मी..
करा व्रत सती अंबे पूजा-2,श्री विष्णु कृष्ण रूप।।ॐ जय अवंतिका माता।।
चुनरी वस्त्र चढ़े नही पूजा,यहाँ सेवा ले माँ जी-2..यहाँ सेवा..
व्याह कुंवारी माँ वर देती-2,ले चोला सिंदूर और घी।।ॐ जय अवंतिका माता।।
घी सिंदूर का चोला चढ़ाये,चैत्र क्वार नवरात्र-2..चैत्र क्वार..
विवाह भंग सब दोष है मिटते-2,स्वप्न वर हो ज्ञात।।
ॐ जय अवंतिका माता।।
जो स्नान रुक्मणी कुंड कर,तब मंदिर माँ आय-2..तब मंदिर..
दोष प्रेम भंग मिट जाते है-2,मिले प्रेम मनचाह।।ॐ जय अवंतिका माता।।
अवंतिका माता ध्याता दर्शन,और करे आरती नित-2..और करे..
कृपा कृष्ण रुक्मणि होती-2,धन प्रेम पाये वो अमित।।ॐ जय अवंतिका माता।।
बोलो अवंतिका माता की जय
बोलो श्री रुक्मणी कृष्ण की जय
बोलो जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
स्वामी सत्येंद्र सत्य साहिब जी रचित माँ अवंतिका आरती सम्पूर्ण
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