इन्दिरा एकाद्शी का पितृदोष मुक्ति महत्त्व:-(5-अक्टूबर 2018)
इस दिन एकादशी व्रत से पितरों में विशेषकर सास सुसर व् दादा दादी व् परदादा परदादी को मिलता है मोक्ष, जानें व्रत विधि, कथा और पारण का समय..
पितृपक्ष में पड़ने वाली एकादशी को इंदिरा एकादशी या श्राद्ध पक्ष एकादशी कहते हैं। पितृपक्ष में पड़ने के कारण इस एकादशी का महत्व और भी बढ़ जाता है। माना जाता है कि- यदि कोई पूर्वज जाने-अनजाने में हुए पाप कर्मों के कारण दंड भोग रहा होता है।तो इस दिन विधिपूर्वक व्रत कर उनके नाम से दान करें तो पूर्वजों को मोक्ष मिलता है। इस साल यह 5 अक्टूबर 2018 को है।
यह व्रत एकादशी के एक दिन पहले यानी दशमी को शुरू होता है। इस रात भोजन नहीं किया जाता। इस दिन अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है। फलाहार लेकर व्रत रख सकते हैं। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। उसके बाद अपने अपने इष्ट देव या इष्ट देवी या सत्यनारायण भगवान पूर्णिमां माता या सत्यनारायण और पूर्णिमां के अवतार भगवान भगवान विष्णु व् लक्ष्मी देवी के आगे घी का दीप प्रज्जवलित करें।उनका ध्यान लगाकर उनके भजन, पुर्णिमां चालीसा और आरती कर पूजा करें। एकादशी के व्रत का पारण एकादशी के अगले दिन सुबह किया जाता है।
लेकिन व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि में पारण न किया जाए तो व्रत का फल व्रती को नहीं मिलता।
इंदिरा एकादशी की कथा:-पूर्णिमां पुराण से..
ये बहुत प्राचीन कथा है,जिसके अनुसार
चन्द्र्वंश में महिष्मतीपुरी के एक राजा थे इंद्रादित्य जिन्हें इन्द्रसेन भी कहते है।ये धर्मपूर्वक प्रजा के उद्धार के लिए कार्य करते थे और साथ ही भगवान सत्यनारायण और भगवती सत्यई पूर्णिमां के बड़े परम् भक्त भी थे। एक दिन देवर्षि नारद उनके दरबार में आए। राजा ने बहुत प्रसन्न हो उनकी सेवा की और आने का कारण पूछा। देवर्षि ने बताया कि मैं यम से मिलने यमलोक गया, वहां मैंने तुम्हारे माता और पिता को देखा।
उन्होंने बताया कि-वे एकादशी का श्राद्धो में किये गए व्रत के व्रतभंग दोष से पीड़ित होकर, वो यमलोक की यातनाएं झेलने को विवस है।इंद्रादित्य ने महर्षि नारद से प्रश्न किया की-क्या सच में नरक लोक या यमलोक होता है? और इस यमलोक का और हमारे व्रत संकल्प का और उसके तोड़ने का सच्चा अर्थ क्या है?ये सुन नारद मुनि बोले- हे राजन अपने संसार के कल्याण का बड़ा उत्तम प्रश्न पूछा है,ठीक यही मेने भी भगवान सत्यनारायण और भगवती सत्यई पूर्णिमां से पूछा था।तब माता पूर्णिमां ने मुझे संसार के कल्याण को ये परम् शांति देने वाला ज्ञान दिया।जो मैं तुम्हें बता रहा हूँ।की-
इसका मुख्य कारण होता है की-स्वयं के किये संकल्प को बोलकर उस पूरा नहीं करना और फिर उस संकल्प के पूरा नहीं होने के बदले में अपने आप को कोई दंड दिए जाने का भी संकल्प किया जाता है की-मेरी ये मनोकामना है जो पूरी होनी चाहिए और यदि मैं व्रत को सम्पूर्ण विधि विधान से सम्पूर्ण नहीं करता या करती हूँ,तो मैं अपने को इस प्रकार के दंड-जैसे-इतना धन बांटूंगा या इतने और व्रत करूँगा आदि आदि दंड स्वयं के लिये निर्धारित करता है।यो यहाँ यम का अर्थ है-5 नियम-1-सत्य-2-अहिंसा-अस्तेय-अपरिग्रह-ब्रह्मचर्य-यो इनके नियम बनाकर फिर उन्हें तोड़ने पर स्वयं की ही आत्मा में एक प्रतिक्रिया स्वरूपी दंड बन जाता है,जो उस व्यक्ति को अनेक प्रकार के क्षोभ के रूप में पश्चाताप की अग्नि में अंतर्मन में जलकर भोगना पड़ता है।यही अंतर्मन की क्षोभ भरी अग्नि ही मनुष्य के पापो को उसका अनेक प्रकार के दंड बनकर नष्ट करती है।यही नरक की 14 कर्म अग्नि यानि नरक चौदस के रूप में जगत में प्रचलित है।इन्हीं में से एक ये एकादशी का व्रतभंग दोष की अग्नि से वे पीड़ित है।
ठीक यही दंड तुम्हारे माता पिता अपनी आत्मा में यमलोक में भोग रहें है। इसलिए उन्होंने तुम्हारे लिए यह संदेश भेजा है कि तुम उनके लिए इन्दिरा एकादशी का व्रत करो। ताकि वो इससे मुक्त होकर पृथ्वी पर पुनः जप तप दान करते हुए शाप मुक्त होकर स्वर्गलोक को प्राप्त कर सकें।
राजा ने पूछा- कृपा करके इस माता पिता आदि पितरों के शाप ताप मिटाने वाली श्राद्धों में आने वाली एकादशी के संदर्भ में बताएं। देवर्षि ने बताया कि- आश्विन मास की यह एकादशी पितरों को सद्गति देने वाली है। व्रत में अपना पूरा दिन नियम-संयम के साथ बिताएं। व्रती को इस दिन आलस्य त्याग कर अपने गुरु मंत्र और इष्ट मंत्र व् स्त्रोत्र पाठ,चालीसा आरती आदि भजन करना चाहिए। पितरों का भोजन निकाल कर पूजाघर में जलती ज्योत पर एक ग्रास यानि सभी भोगो को एक रोटी के टुकड़े पर लगा कर अपने मृत माता पिता पितरों को स्मरण करते हुए छुलाना चाहिए और उस पितृ अर्पित भोजन के टुकड़े को प्रसाद समझ स्वयं खाये और बाकि भोजन को परिवार के सभी सदस्यों में बांटें।और एक थाली गाय को व् एक थाली ब्राह्मण को दक्षिणा सहित दे खिलाएं।और फिर अपने भाई-बन्धु, नाती और पु्त्र आदि को खिलाकर स्वयं भी मौन धारण कर भोजन करना चाहिए। इस विधि से व्रत करने से आपके माता पिता की मनवांछित सद्गति होगी।
राजा इंद्रादित्य यानि इन्द्रसेन ने इसी प्रकार से एकादशी का व्रत सम्पूर्ण किया।और इस प्रकार से इस किये एकाद्शी व्रत के फल से राजा के माता पिता को हमेशा के लिए उनका इष्ट धाम का वास मिला और मनोइच्छा पूर्ण होने से उनके जप तप दान का भविष्य मार्ग खुला और साथ इस पितरों के लिए किये पितृकर्म के फल से राजा इन्द्रसेन भी जीवंत अनेकों प्रकार के लौकिक अलौकिक सुख प्राप्त होकर सद्कर्म फल से परम्मोक्ष की प्राप्ति हुयी।यो ये व्रत उस चन्द्र वंशी महाराजा इन्द्रसेन के नाम से ही इन्दिरा एकादशी का व्रत उस काल से वर्तमान काल तक संसार में प्रचलित हुआ।
इंदिरा एकादशी पारण समय: 6 अक्टूबर सुबह 6:24 से 8:44 मिनट
एकादशी प्रारम्भ: 4 अक्टूबर रात 9:49 मिनट
एकादशी समाप्त: 5 अक्टूबर शाम 7:18 मिनट।
जय भगवान सत्यनारायण और सत्यई पूर्णिमां की जय
जय इन्द्रसेन महाराज की जय
जय नारद मुनि की जय
जय सभी पितरों की जय
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श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी महाराज
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः