आधार कार्ड की अनिवार्यता और सुरक्षा को लेकर उठ रहे सवालों पर से सुप्रीमकोर्ट के इस अहम फैसले ने पर्दा हटा दिया है। सुप्रीमकोर्ट के इस फैसले ने आधार की अनिवार्यता को कई महत्त्वपूर्ण जगह से समाप्त कर दिया है। सबसे बड़ा है बैंकिंग सेक्टर, जहां आधार कार्ड की वजह से लोगों को काफी परेशानी उठानी पड़ रही थी। इसी आधारकार्ड की वजह से कई लोगों को बैंकिंग फ्रॉड का सामना करना पड़ा था। लेकिन अब सुप्रीमकोर्ट के इस अहम फैसले ने लोगों को जरूर राहत दी होगी।
बता दें कि कल 26 सितंबर को आधार कार्ड की अनिवार्यता पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया। अब आपको अपना आधार कहां दिखाना है और कहां नहीं दिखना है इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सारे संशय खत्म कर दिए हैं। देश की सर्वोच्च अदालत ने आधार पर फैसला सुनाते हुए इसे संवैधानिक रूप से वैध तो माना, लेकिन साथ ही यह भी साफ कर दिया है कि इसे हर किसी से शेयर करना जरूरी नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने यहां आधार को अनिवार्य नहीं माना है
. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अब से प्राइवेट व सरकारी स्कूलों में आधार जरूरी नहीं होगा। साथ ही बच्चों के लिए आधार कार्ड जरूरी नहीं होगा।
. अब बैंक खातों से आधार को लिंक करना जरूरी नहीं, बैंक खाते से आधार को लिंक करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया।
. सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा कि मोबाइल के लिए आधार जरूरी नहीं।
. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई मोबाइल और निजी कंपनी आधार नहीं मांग सकती। टेलिकॉम कंपनियां, ई-कॉमर्स फर्म, प्राइवेट बैंक और अन्य इस तरह के संस्थान आधार की मांग नहीं कर सकते हैं।
. UGC, NEET तथा CBSE परीक्षाओं के लिए आधार अनिवार्य नहीं होगा।
. 14 साल से कम के बच्चों के पास आधार नहीं होने पर उसे केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा दी जाने वाली जरूरी सेवाओं से वंचित नही किया जा सकता है।
जिन जगह पर आधारकार्ड की अभी जरूरत होगी वो आप यहां पर देख सकते हैं।
. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार और पैन को जोड़ना जरूरी होगा, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार से पैन कार्ड को जोड़ने का फैसला बरकरार रहेगा।
. सरकार की कल्याणकारी योजनाओं में आधार जरूरी होगा।
. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुरक्षा मामलों में एजेंसियां आधार मांग सकती हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर आपसे कभी भी आधार मांगा जा सकता है, लेकिन पूर्व जज और सचिव स्तर के अफसर की इजाजत जरूरी होगी।
आधार ने गरीबों को दी पहचान
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि आधार नामांकन के लिए यूआइडीएआई द्वारा नागरिकों के न्यूनतम जनसांख्यिकीय (जनसंख्या संबंधी) और बॉयोमीट्रिक डेटा एकत्र किए जाते हैं। किसी व्यक्ति को दिया गया आधार संख्या अनन्य है और किसी अन्य व्यक्ति के पास नहीं जा सकता।’
जस्टिस एके सिकरी ने कहा, ‘आधार समाज के हाशिए वाले वर्ग (गरीबों) को अधिकार देता है और उन्हें एक पहचान देता है, आधार अन्य आईडी प्रमाणों से भी अलग है क्योंकि इसे डुप्लीकेट नहीं किया जा सकता है। डेटा सुरक्षा को लेकर जस्टिस सिकरी ने केंद्र से कहा कि जितनी जल्दी हो सके मजबूत डेटा संरक्षण कानून लागू करें।
आधार सुरक्षा के उल्लंघन के आरोपों पर केंद्र ने कहा कि डेटा सुरक्षित है और इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता। केंद्र ने यह भी तर्क दिया कि आधार समाज के कमजोर और हाशिए वाले वर्गों के अधिकारों की रक्षा करता है और उन्हें बिचौलियों के बिना लाभ मिलते हैं और आधार ने सरकार के राजकोष में 55000 करोड़ रुपये बचाए हैं।
फैसला पढ़ते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार से बड़े वर्ग को फायदा। साथ ही प्राइवेट पार्टी भी डेटा नहीं देख सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार के पीछे तार्किक सोच, साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऑथेंटिकेशन डाटा सिर्फ 6 महीने तक ही रखा जा सकता है। कम से कम डेटा होना चाहिए। आधार की अनिवार्यता पर फैसला पढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, बायोमीट्रिक डेटा की नकल नहीं की जा सकती।
इससे पहले आधार को लेकर कोर्ट में सरकार का पक्ष रखने वाले महाधिवक्ता मुकुल रोहतगी का कहना है कि इस फैसले का असर बहुत दूर तक होगा, क्योंकि आधार बहुत-सी सब्सिडी से जुड़ा है। यह लूट और बरबादी को रोकने में भी कारगर है, जो होती रही हैं… मुझे उम्मीद है कि फैसला आधार के हक में आएगा। डेटा की सुरक्षा बेहद अहम है और सरकार यह स्पष्ट कर चुकी है कि वह डेटा की सुरक्षा करेगी। इस सिलसिले में कानून भी लाया जा रहा है।”
आपको बता दें कि अबतक 38 सुनवाई हुई सुप्रीम कोर्ट में आधार को लेकर हुई हैं। 17 जनवरी से शुरु हुई थी आधार की सुनवाई. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए के सीकरी, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और जस्टिस अशोक भूषण की संविधान पीठ ने की थी सुनवाई।
आधार पर फैसला आने तक सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं के अलावा बाकी सभी केंद्र व राज्य सरकारों की योजनाओं में आधार की अनिवार्यता पर रोक लगाई गई है। इनमें मोबाइल सिम व बैंक खाते भी शामिल हैं। अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कोर्ट में कहा कि ये सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में दूसरी सबसे बडी सुनवाई है, इससे पहले 1973 में मौलिक अधिकारों को लेकर केशवानंद भारती केस की सुनवाई करीब पांच महीने चली थी।
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