यह गणेश भगवान की पूजा पाठ का उत्सव, यूँ तो हम गणेश भगवान की पूजा पाठ देवी देवताओं के पूजन से पहले हर रोज करते हैं। लेकिन गणेश चतुर्थी पर गणेश पूजा का विशेष महत्त्व होता है। उसी महत्त्व को श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज समझा रहे हैं।
श्री गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास की चतुर्थी से चतर्दर्शी तक यानी दस दिनों तक चलती है। इस साल गणेश चतुर्थी का उत्सव 13 सितंबर को मनाई जाएगा। भगवान श्री गणेश को देवताओं में सबसे पहले पूज्य माना गया है,ये सद् बुद्धि,यज्ञ विध्न नाशक,विघ्नेश्वर, समृद्धि और सौभाग्य शांति के देवता के रूप में पूजा जाता है। और हमारे धर्म शास्त्रों में किसी भी भगवान की पूजा उनको बिना उनका प्रिय प्रसाद चढ़ाएं कभी पूरी नहीं होती।यो प्रत्येक देवी-देवता को अलग-अलग प्रसाद पसंद होता है। जैसे गणपति जी को मोदक अति प्रिय है। लेकिन क्या आपको पता है क्यों?
क्योकि मनुष्य की श्रद्धा के अनेक स्वरूप है और देश प्रदेश व् परिस्थिति आदि से उसी के अनुसार ही उसकी भक्ति की व्रद्धि होती है।जैसे-हमारे यहां और शास्त्रों में ब्राह्मण का अर्थ है-जो ब्रह्म का ज्ञान और अनुभव रखता हो और उसका आचरण करता हो,ताकि जो भी उसका शिष्य अनुसरण करे,वो भी ब्राह्मण बने यो ब्राह्मण कर्म से है,जाति से नहीं..तब इस वेद वचन का यदि ब्राह्मण पालन नहीं करता और मांस मछली शराब आदि का भोजन करता है,तो वो ब्राह्मण नहीं चांडाल यानि नीच कर्मी कहलाता है।यो हमारे प्रदेश के ब्राह्मण और दक्षिण प्रदेश के ब्राह्मण के खानपान में भीषण अंतर है।तब यहाँ जो खाया वहीं देव भोग भी खिलाया जाता है।परिणाम देव देवी भोग भी प्रदेशों के अनुसार भिन्न भिन्न है।तब ये ही मनुष्य की श्रद्धा का अर्पण है।और इसी से अनेकों प्रकार के तामसिक-राजसिक-सात्विक भोग देवी देवो को मनुष्य द्धारा उनकी व्यक्तिगत मन भक्ति की एकाग्रता की प्राप्ति से अर्पण कर बनते गए है।जैसे-परीक्षा देने जाने वाले विद्यार्थीयों में से एक तो गंगा जल आचमन कर पेपर दे रहा है और एक पहले सिगरेट पीकर फिर परीक्षा स्थल पर जाकर पूरा पेपर कर आया।तब पेपर जाँचने वाले टीचर ने पेपर देने वाले का आचरण नहीं देखा, बल्कि उसने पेपर कैसे और पूरा उत्तर सही लिखा है,ये देख पुरे नम्बर दिए।और सिगरेट वाला विद्यार्थी सफल हो गया और आचमन वाला अनुत्तीर्ण हो गया।यही देवो की तामसिक भोज्य और भोग लगाना है।हां शुद्ध और अशुद्ध आचरण का प्रभाव व्यक्ति के भविष्य और समाज और परिवार पर अवश्य पड़ता है।
गणेश या गणपति का अर्थ है-गण का ईश या गण का अधिपति यानि स्वामी।ये गण है मनुष्य और उसका अधिपति या स्वामी है,उसकी आत्मा,यानि मनुष्य की आत्मा ही गणेश नाम है।ये सभी ईश्वर वाचक नाम हमारी ही आत्मा के अनेक नामों में से एक है।नाकि कोई हमारी आत्मा का स्वामी है।आत्मा स्वयं में स्वतंत्र और सम्पूर्ण है।और उसके चार नियम है-1-आत्मज्ञान की भौतिक और आध्यात्मिक शिक्षा-2-आत्मानन्द को प्रेम विवाह-3-आत्मानन्द को अपना विस्तार-4-और आत्मानन्द में पुनः निस्वार्थ और निर्संकल्प स्थिति यानि मोक्ष।और इसी चार कर्मो का चार स्तर यानि गुणा ही चतुर्दर्शी यानि चौदस
है और मोक्ष यानि मैं की अक्षय अवस्था को जानना आदि कर्म और उसमें अपनी ज्ञान श्रद्धा विश्वास का अर्पण ही श्राद्धों की पूर्णिमां है।
अतः गणेश हम ही है और हमें अपने सभी भौतिक और आध्यात्मिक कर्मो को सही संतुलन से करना चाहिए।यही गणेश उत्सव है।यही-“”गणपति बाबा मोरिया,अबके बरस तू जल्दी आ”…का अर्थ है की-गणपति बाबा मैं ही हूँ और प्रतिवर्ष यानि प्रत्येक जीवन में मैं ये सब ज्ञान जानकर शीघ्र आकर उस परमानन्द को लूंगा।।
चतुर्थी का अर्थ है:-चन्द्रमाँ की सोलह कलाओं में प्रथम चार कलाएं-अर्थ+काम+धर्म+मोक्ष की प्रतीक और पूरक है।यो जो मनुष्य अपने जीवन के चार धर्म और उनके चार कर्मों को क्रमबद्ध तरीके से करता है,वो मनुष्य में श्रेष्ठ बन सुख शांति पाता है।यही गणेश जी की चतुर्थी मनाने का अर्थ है।
और चतुर्थी से 10 दिनों तक यानि चतुर्दशी तक चलने वाला ये गणेश उत्सव का अर्थ भी यहीं है की-मनुष्य की अपने चारों कर्मो को सही विधान से करते चलने पर अंत में पूर्णिमां यानि आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।और इसके बाद श्राद्ध आते है।जिनका अर्थ है-श्रद्धा का अर्पण और तर्पण।अब वहीं लौटे की-मनुष्य की श्रद्धा यानि विश्वास का आधार क्या है?
ज्ञान और उसका सही क्रम से अपनाकर उसका अनुसरण करना ही मनुष्य की ज्ञान श्रद्धा यानि ज्ञान का परिणाम आनन्द नाम ही श्रद्धा है।और यह ज्ञान क्या है की-पहले तो जिनसे हम जन्में है,यानि अपने पितृ रूपी माँ पिता और उनका कुल और उनका आचरण आदि उस सबके प्रति हमारा पहला कर्तव्य है-उनका ऋण उतारना।वेसे ये ऋण यानि कर्जा कोई बोझ नहीं है।बल्कि एक आनन्द कर्म है।यो हमें जेसे उन्होंने हमारी बाल्य से वयस्क तक प्रेम सेवा की,ठीक वेसे ही हम करेंगे।और अंत में जब वे मृत्यु को प्राप्त हो गए।और उस मृत्यु से पहले वे कोई अपने लिए विशेष कर्म नहीं कर पाये।क्योकि वे हमारे लालन पालन में अधिक व्यस्त रहे और धर्म कर्म करते हुए भी,अपने पर विशेष ध्यान नहीं दे पाये।तो हमारा अब कर्तव्य बनता है की-हम अब उनके निष्क्रिय काल में में उनके लिए वो शेष बचा कर्म करते उन्हें साहयता दे।और यदि प्रेम से बिना बोझ के साहयता देनी ही हमारी उनके प्रति श्रद्धा ही उनका श्राद्ध कहलाती है।यो हम अपने पैत्रक ऋण से मुक्त होते है।यो गणेश यानि गणों का ईश और उसके नियमों का पालन करने की तैयारी ही गणेश उत्सव कहलाता है।
मोदक का संछिप्त अर्थ:-
शास्त्रों में वर्णन हैं की- मोदक का अर्थ होता हैं मोद (आनन्द) देने वाला, जिससे आनंद मिलता है। इसका सच्चा अर्थ यह है कि- तन का आहार यदि शुद्ध हो,तो मन के विचार भी सात्विक और शुद्ध होते है,और मन के विचार शुद्ध है,तो तन भी उसी विचार रूपी आहार यानि भोजन को खा कर शुद्ध बनता है और शुद्ध आचरण करता है।और तभी आप जीवन का वास्तविक आनंद पा सकते हैं। मोदक आनन्द और ज्ञान का प्रतीक होता हैं, इसलिए यह ज्ञान के देवता भगवान गणेश जी यानि स्वयं को ही अतिप्रिय हैं।
यो ही ये गणेश जी को अपने घर में बैठाने का यानि स्थापित करने का अर्थ है की-अपनी आत्म को जानो और उसके नियमों को अपने जीवन में अपनाओं यानि स्थापित करो।और उन पर चल आनन्द पाओ।
गणेश प्रतिमा का विसर्जन का अर्थ है:-की-हमें अपने भौतिक और आध्यात्मिक कर्मों को निरन्तर करना चाहिए,पर उसमें लिप्त नहीं होना चाहिए यानि कर्म करते रहो और उसके परिणाम के प्रति अपनी लालसा से मुक्त रहो।जो गीता का महावाक्य घोष है की-
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥ ४७ ॥
और अर्थ है:- कर्तव्यकर्म करने में ही तेरा अधिकार है फलों में कभी नहीं। अतः तू कर्मफलका हेतु भी मत बन और तेरी अकर्मण्यता में भी आसक्ति न हो।जेसे-अपने कोई फल का पेड़ लगाया और उसे लगाने के बाद उससे फल क्यों अभी नहीं आ रहा है,इस इंतजार में वहीं बैठे रहे और अंत में ये कहते निराशा से उठ जाये की-इस पेड़ लगाने की महनत से क्या लाभ हुआ ये तो अभी फल नहीं दे रहा।यो अपने अपना कर्म यानि पेड़ लगा दिया और समय आने पर वो अपना फल अवश्य देगा।जेसे तुमने अपने से पहले लगाये किसी और या माता पिता के लगाये पेड़ के फल अब खाये है,ठीक ऐसे ही आपका लगाया पेड़ भी आप को और आप ही की सन्तान को अवश्य फल देगा।यो कर्म करो पर उसके किये अहंकार से मुक्त रहो।
उनकी पत्नी रिद्धि सिद्धि का अर्थ:- प्रत्येक मनुष्य की भौतिक कर्म और उसका फल ही रिद्धि तथा आध्यात्मिक कर्म और उसका कर्म फल ही सिद्धि कहलाती है।यो ये मनुष्य के दोनों और समान रूप से विराजमान यानि बैठी दिखाई गयी है।
स्वस्तिक अर्थ:-स्व का आस्तिक यानि अपने में विश्वास करना यानि अपनी आत्मा को जानना ही स्वस्तिक अर्थ है।और उस आत्मा के चार भौतिक और आध्यात्मिक कर्म और उनका चार फलों को प्रतीक रूप प्रदर्शित करता प्रतीक ही स्वस्तिक है।उसमें प्रथम बीज बिंदु ही मूल ईश्वर है और उससे उत्पन्न दो स्त्री पुरुष और उनके दो अपने अपने भौतिक और आध्यात्मिक कर्म मिलाकर चार भाग है और पुनः उनका अपने मूल स्वरूप आत्म रूपी बिंदु में समाहित होना ही चार बिंदी लगानी है।चार युग-चार पुरुष युग + चार स्त्री युग + चार बीज युग + चार पुनर्जागरण युग है।आदि अनेक अर्थ स्वस्तिक के है। यहां संछिप्त में अर्थ बता रहा हूँ।
गणेश स्थापना का शुभारंभ:- करने के लिए चतुर्थी के दिन शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 08 मिनट से शुरू होगा। उसके बाद दोपहर के 1 बजकर 34 मिनट तक आप घर में गणपति की स्थापना कर सकते हैं।
गणेश स्थापना से पहले पूजा की सारी सामग्री एकत्र कर लें। पूजा के लिए चौकी, लाल कपड़ा, गणेश प्रतिमा, जल कलश, पंचामृत, लाल कपड़ा, रोली, अक्षत, कलावा जनेऊ, गंगाजलु, सुपारी, इलाइची, नारियल, चांदी का वर्क, सुपारी, लौंग पंचमेवा, घी कपूर आदि एकत्र कर लें।
श्री गणेश स्थापना विधि:–
सुबह स्नान के पश्चात लाल वस्त्र धारण करें। सही दिशा का चुनाव करके चौकी स्थापित करें। भगवान गणेश की स्थापना से पहले उन्हें पंचामृत से स्नान कराएं। उसके बाद उन्हें गंगाजल से स्नान कराने के बाद चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर गणेश प्रतिमा को स्थापित करें। रिद्धि-सिद्धि के रूप में प्रतिमा के दोनों ओर एक-एक सुपारी भी रखें।
श्री गणेश पूजन विधि:-
स्थापना के पश्चात गणेश जी को सिंदूर लगाएं और चांदी का वर्क लगाएं। तश्पचात जनेऊ, लाल पुष्प, दूब, मोदक, नारियल आदि सामग्री भगवान को अर्पित करें।
श्री गणेश मंत्र:-
सभी सामग्री चढ़ाने के बाद धूप, दीप और अगरबत्ती से भगवान की आरती करें और…
‘वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे दे सर्व कार्येषु सर्वदा।। मंत्र का जप करें।
श्री गणेश भगवान को भोग:-
गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक जब तक भगवान गणेश घर में रहते हैं।तब तक उनका एक परिवार की सदस्य की तरह ध्यान रखा जाता है। गणपति को 3 बार भोग लगाना अनिवार्य होता है। वैसे गणपति को मोदक का भोग रोजाना लगाना अनिवार्य होता है।
-अपने घर में गणेश जी को स्थापित करें और मोदक रूपी आनन्द भोग का स्वयं भी भोग लगाये और अन्यों को भी उस आनन्द भोग को बाँटें और अंत में इस सभी कर्म करने के मोह यानि की मैं ही सर्व कर्म का कर्ता भाव के अहंकार आदि का विसर्जन करके मुक्त हो जाये।
इस लेख को अधिक से अधिक अपने मित्रों, रिश्तेदारों और शुभचिंतकों को भेजें, पूण्य के भागीदार बनें।”
अगर आप अपने जीवन में कोई कमी महसूस कर रहे हैं घर में सुख-शांति नहीं मिल रही है? वैवाहिक जीवन में उथल-पुथल मची हुई है? पढ़ाई में ध्यान नहीं लग रहा है? कोई आपके ऊपर तंत्र मंत्र कर रहा है? आपका परिवार खुश नहीं है? धन व्यर्थ के कार्यों में खर्च हो रहा है? घर में बीमारी का वास हो रहा है? पूजा पाठ में मन नहीं लग रहा है?
अगर आप इस तरह की कोई भी समस्या अपने जीवन में महसूस कर रहे हैं तो एक बार श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के पास जाएं और आपकी समस्या क्षण भर में खत्म हो जाएगी।
माता पूर्णिमाँ देवी की चमत्कारी प्रतिमा या बीज मंत्र मंगाने के लिए, श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज से जुड़ने के लिए या किसी प्रकार की सलाह के लिए संपर्क करें +918923316611
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श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र महाराज
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
Khojee n yogic nature swamiji . Ultimately found true natrue of women.