अटल जो हमारी यादों में जिंदा रहेंगे, उनकी जिंदादिली हमेशा उन्हें जिंदा रखेगी।
ख़बर 24 एक्सप्रेस की टीम की तरफ से पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि।
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?
तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आजमा।
मौत से बेखबर, जिंदगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।
प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।
आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है।
पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ां का, तेवरी तन गई।
पूर्व प्रधानमंत्री, भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी
भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी, कभी ना हारा था, कभी न हारेगा, कभी न मरा था, कभी नहीं मरेगा।
अटल नाम एक ऐसा नाम, एक ऐसा युग जो युगों-युगों तक याद किया जाएगा। अटल एक नेता ही नहीं बल्कि महान इंसान थे। और ऐसे इंसान को हमने खो दिया है। अब अटल जी हमारे बीच में नहीं हैं। और यकीन मानिए यह राजनीति के साथ साथ देश का एक बड़ा नुकसान है।
परसों 15 अगस्त की शाम जब हमें अटल जी की तबियत के बारे में पता चला तब हमने अपने सोर्स से उनकी ताबियत के बारे में पता लगाना चाहा तब हमें सुनकर बड़ा धक्का लगा। कि वो नहीं रहे।
बता दें कि अलौकिक व्यक्तित्व वाले पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल श्री बिहारी वाजपेयी लंबी बीमारियों से जूझते हुए दिल्ली के एम्स हॉस्पिटल में आखिरी सांस ली। कल शाम 5 बजकर 5 मिनट पर दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में अंतिम सांस ली। 25 दिसंबर 1924 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर में जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी कई सालों से बीमार चल रहे थे।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर पूरे देश में शोक की लहर है। हर कोई उन्हें उनके भाषणों, कविताओं आदि के जरिए याद कर रहा है। पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा है कि वाजपेयी भले ही हमें छोड़कर चिरनिद्रा में लीन हो गए हों लेकिन उनकी वाणी, उनका जीवन दर्शन सभी भारतवासियों को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। उनका ओजस्वी, तेजस्वी और यशस्वी व्यक्तित्व सदा देश के लोगों का मार्गदर्शन करता रहेगा।
अटल बिहारी वाजपेयी ने खुद को किसी खास विचारधारा के पहरेदार के रूप में स्थापित नहीं होने दिया। उनके प्रधानमंत्रित्व काल में कश्मीर से लेकर पाकिस्तान तक से बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ था। अलगाववादियों से बातचीत के फैसले पर सवाल उठा कि क्या बातचीत संविधान के दायरे में होगी? तो उनका जवाब था, इंसानियत के दायरे में होगी।
अटल बिहारी वाजपेयी को एक ऐसे नेता के तौर पर याद किया जाएगा जिन्होंने विपरीत विचारधारा के लोगों को भी साथ लिया और गठबंधन सरकार बनाई। विपक्षी पार्टियों के नेताओं की वह आलोचना तो करते ही थे साथ ही अपनी आलोचना सुनने का भी साहस रखते थे। ऐसे में विरोधी भी उनकी बात को बड़ी तल्लीनता से सुनते थे।
अटल बिहारी वाजपेयी ने हिंदी को विश्वस्तर पर मान दिलाने के लिए काफी प्रयास किए। वह 1977 में जनता सरकार में विदेश मंत्री थे। संयुक्त राष्ट्र संघ में उनके द्वारा दिया गया हिंदी में भाषण उस समय काफी लोकप्रिय हुआ था। उनके द्वारा हिंदी के चुने हुए शब्दों का ही असर था कि यूएन के प्रतिनिधियों ने खड़े होकर वाजपेयी के लिए तालियां बजाईं थीं। इसके बाद कई बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर अटल ने हिंदी में दुनिया को संबोधित किया।
उन्हें शब्दों का जादूगर माना गया। विरोधी भी उनकी वाकपटुता और तर्कों के कायल रहे। 1994 में केंद्र की कांग्रेस सरकार ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का पक्ष रखने वाले प्रतिनिधिमंडल की नुमाइंदगी अटल जी को सौंपी थी। किसी सरकार का विपक्षी नेता पर इस हद तक भरोसे को पूरी दुनिया में आश्चर्य से देखा गया था।
अपने-पराए का भेद किए बिना सच कहने का साहस उनमें था। गुजरात दंगों के समय सीएम रहे नरेंद्र मोदी के लिए उनका यह बयान आज भी मील का पत्थर बना हुआ है- मेरा एक संदेश है कि वह राजधर्म का पालन करें। राजा के लिए, शासक के लिए प्रजा-प्रजा में भेद नहीं हो सकता। न जन्म के आधार पर, न जाति के आधार पर और न संप्रदाय के आधार पर।
1998 में पोकरण परमाणु परीक्षण उनकी इस सोच का परिचायक था कि भारत दुनिया में किसी भी ताकत के आगे घुटने टेकने को तैयार नहीं है। उन्होंने एक मौके पर कहा भी कहा था कि भारत मजबूत होगा, तभी आगे जा सकता है। कोई उसे बेवजह तंग करने की जुर्रत महसूस न करे, उसके लिए हमें ऐसा कर दिखाना जरूरी है।
अटल जी के दिल में एक राजनेता से कहीं ज्यादा एक कवि बसता था। उनकी कविताओं का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोलता रहा है। हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं… उनकी लोकप्रिय कविताओं में से एक है। संसद से लेकर जनसभाओं तक में वह अक्सर कविता पाठ के मूड में आ जाते थे।
****
खबर 24 एक्सप्रेस
Discover more from Khabar 24 Express Indias Leading News Network, Khabar 24 Express Live TV shows, Latest News, Breaking News in Hindi, Daily News, News Headlines
Subscribe to get the latest posts sent to your email.