हस्तरेखा विज्ञान के अभी तक 10 विभिन्न भाग श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज बता चुके हैं अगर आप उन 10 अलग-अलग भागों को जानना चाहते हैं अथवा पढ़ना चाहते हैं तो खबर 24 एक्सप्रेस के माध्यम से स्वामी जी द्वारा दिये गए अनन्य ज्ञान को आप पढ़ सकते हैं अपने कुटुम्बजनों को भेज सकते हैं।
“स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज इस अद्भुत और अकल्पनीय ज्ञान के लिए किसी से कोई धन नहीं लेते हैं वे सिर्फ अज्ञानता को दूर कर ज्ञान को बांटने का काम करते हैं।
श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज, श्री सत्यसिद्ध शानिपीठ और सत्यस्मि मिशन के संस्थापक हैं। स्वामी जी गरीब बच्चों के लिए स्कूल खोल रहे हैं तो दूसरी ओर सत्यस्मि मिशन के माध्यम से महिलाओं के उत्थान का भी कार्य कर रहे हैं। संक्षिप्त में बताते हुए अगर कोई इन सबको आगे बढ़ाने में, पूण्य कार्य करने में सहयोग करना चाहता है तो आप भी स्वामी जी के आशीर्वाद से पुण्य के भागीदार बन सकते हैं। लेख के अंत में सभी जानकारियां हैं आप पढ़ें और दूसरों को भी पूण्य कमाने के लिए प्रोत्साहित करें”।
तो आइये अब श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज से जानते हैं हाथ में चंद्र पर्वत के होने के शुभ अशुभ लाभ : –
[भाग-11]
चंद्र पर्वत मस्तक रेखा की समाप्ति पर और केतु पर्वत के नीचे तथा जीवन रेखा और शुक्र पर्वत के दूसरी और स्थित होता है।ये मन का स्वामी या प्रतीक ग्रह है और मनुष्य की समस्त इच्छाओँ की वैचारिक रूपी कल्पनाओ का स्वामी ग्रह है।
चूँकि चंद्रमा पृथ्वी की पुत्री है और पृथ्वी का पुत्र मंगल है।यो चन्द्रमा अपनी माता पृथ्वी के पास बना रहता है।ज्योतिष में भी चन्द्रमा स्त्री प्रधान गुण लिए ग्रह है।वैसे चंद्रमा उपग्रह है,नाकि ग्रह है।और चूँकि ये सभी मूल 6 ग्रहों के साथ उनकी कक्षा में एक से लेकर अनेक तक पाया जाता है और उन्हीं ग्रहों का अंश भी होता है।यो ही चन्द्र और माँ से ही अर्थ बना-और अंश से उत्पन्न अंश।सूर्य से सभी ग्रह है और उन ग्रहों से ये चन्द्र उत्पन्न है।यो ये स्त्रिकारक ग्रह है।ये माता,बहिन,बेटी,पत्नी,बुआ,और दवाई,कपड़े या वस्त्र,मोती या समस्त श्वेत वस्तुओं का स्वामी और ऐसी अनेक वनस्पतियों से जीव के मन और उनमे व्याप्त जल पर इसका प्रभाव होता है।ये
प्रसन्नता,विषाद,सौन्दर्यप्रियता, आदर्शवादी, साहित्य, काव्य, और मानसिक तनाव से उत्पन्न ब्लडप्रेशर,परिवर्तन,मित्रों का कारक ग्रह है,यो चंद्रमा के उच्च प्रभाव वाले व्यक्ति का मन और कल्पनायें उत्तम और सर्वश्रेष्ठ होने से सभी आविष्कारिक चिंतन, थ्योरी,धर्म और साहित्य आदि उत्पन्न होकर लिखे जाते है।ऐसे लोग अपनी ही दुनिया में मस्त रहतें हैं,यदि चंद्र पर्वत हाँथ में अच्छा उभार लिए है और अपने स्थान पर है तो ऐसा व्यक्ति सामाजिक और व्यक्तिगत तथा प्रकृति- प्रेमी होगा, ऐसा व्यक्ति जीवन में कभी किसी को धोखा नहीं दे सकता, संसार के छल-प्रपंचों, धोखेबाजी, ईर्ष्या,विवादआदि से कोसों दूर रहता है, ऐसे व्यक्ति प्रसिद्ध कवि,चित्रकार, साहित्यकार, कलाकार, संगीत के जानकार होते है, ऐसा व्यक्ति मिलनसार और प्रचलित विचार से परे स्वतंत्र रूप से विचार करने में समर्थ होता है, एवं सच्चा धार्मिक प्रवत्ति का होता है।
जिन पुरुषों में चंद्र पर्वत का उभार कम या दबा सा रहता है,तो उस व्यक्ति के घुटनो में दर्द रहता है और जल्दी सर्दी जुखाम पकड़ लेते है और दबा होने पर, ऐसा व्यक्ति एंटी सोशल यानि समाज से कटा हुआ यानि असामाजिक और ह्रदय का निर्मम और कठोर होता है, इनमे तुरन्त कहे चाहे वाक्य,वे हास्य में ही हो,उनके उल्टा अर्थ ही समझ में आने से प्रिय व्यक्ति से भी बदला लेने की भावना अधिक होती है। यदि चंद्र पर्वत अपनी सामान्य अवस्था से अधिक उभरा हुआ है। तो ऐसे व्यक्ति सदा कोई न कोई, मानसिक योजनाये तो बनातें है, किन्तु उसे कार्य रूप में बदल नहीं पातें हैं,काल्पनिक प्रेम और सौंदर्य के व्यर्थ चित्रण का चिंतन, इनके जीवन की कमजोरी होती है,और उसी में अपनी जीवन ऊर्जा खपाते रहते है अगर इनकी जरा भी उपेक्षा इनका प्रिय व्यक्ति या जीवन साथी, कर दे तो, ये जीवन के प्रति इतना निराश हो जातें हैं। कि आत्महत्या तक कर सकते है।
यदि चंद्र पर्वत का झुकाव हथेली के बाहर की ओर है। तो ऐसे व्यक्ति अपने परिजनों की नहीं सुनते,बल्कि बाहर के लोगों की राय पर विश्वास और उन्ही से जुड़े रहते तथा भोगी एवं कामी होते है।चन्द्र पर्वत पर एक रेखा हो,तो व्यक्ति आने वाली विपदा या कठनाई को पहले ही भांप लेने की वैचारिक शक्ति रखता है तथा जीवन शक्ति प्रतिरोधक और अच्छी होती है।
यदि चंद्र पर्वत पर गोल वृत्त हो
तथा कुछ रेखाएं मस्तिष्क रेखा से निकलकर इस पर्वत तक पहुंचती हो,और शनि पर्वत उठा हो तो, वह व्यक्ति राजनीतिक कारणों से यात्रा करता है,यदि बुध पर्वत उठा हो तो, व्यापारिक दृष्टी से विदेशयात्रा करता है और गुरु पर्वत उठा हो तो धर्म के प्रचारार्थ विदेश यात्रा अवश्य करता है। चंद्र पर्वत पर शंख का चिन्ह अशुभ माना जाता है, अगर ये चिन्ह चन्द्र पर्वत पर है, तो ऐसा व्यक्ति सफलता प्राप्त करने के लिए बहुत संघर्ष करता है,एवं कठोर परिश्रम के बाद ही सफलताए प्राप्त करता है।
चंद्र पर्वत पर त्रिभुज का चिन्ह है,तो उसे अपने विपरीतलिंगी से सदा प्रेम और अन्य सहयोगी लाभ मिलते है और उसकी अंतरदृष्टि इंटीयूशन बढ़ी हुयी होती है।और वह अपने जीवन में अनेक बार विदेश यात्रा करता है।और यदि क्रास का निशान है तो, जल में डूबने से मृत्यु या बुखार के तेज चढ़ने से मस्तिष्क रोग या पुरानी रखी दवाई,जिसकी तिथि निकल चुकी हो या उस रोग से सम्बंधित नहीं हो,ऐसी दवाई के खाने से भयंकर रोगी होता है। यदि चंद्र पर्वत पर काला तिल है या धब्बा है तो,उसे स्नायविक कमजोरी से पागलपन के दौरे होते है।केवल वृत्त का चिन्ह होने पर पानी में डूबने से खतरा या मृत्यु का योग होता है।और धोखे से हत्या होने का योग होता है। यदि चंद्र पर्वत कमजोर हो और वहाँ द्वीप का चिन्ह है तो,व्यक्ति क्रूर और निर्दयी स्वभाव का या गुप्त रूप से हत्यारा होगा।यदि वर्ग का चिन्ह है तो, प्रत्येक दिशा में विकास होता है। यदि जाल का चिन्ह है तो, वह व्यक्ति अनावश्यक रूप से अर्थ का अनर्थ करता हुआ,बेकार में मानसिक तनावों का सामना करता है।और पक्षाघात यानि फालिस भी पड़ने का खतरा होता है।
यदि नक्षत्र या तारे का चिन्ह हो तो उदर विकार या मानसिक रोग होता है।ये नक्षत्र यदि वहाँ भाग्य रेखा के पास या उससे भाग्य रेखा निकले तो,लाटरी और सट्टे से धन लाभ होता है।
यदि मणिबंध से कोई रेखा निकल कर चन्द्र पर्वत पर जाये तो,व्यक्ति सदा किसी न किसी बात को लेकर परिचितों और दुसरो को परेशान ही करने के उपाय ढूंढता है।
अपने हाँथ में चन्द्र कि स्थिति को अच्छी और शुभ बलवान करने के लिए कुछ उपाय बताता हूँ।
जब भी पूर्णिमा पड़े उस रात्रि को कम से कम कपड़ो में या हो सके तो, नंगे बदन कुछ समय के लिए चंद्रमा के प्रकाश को अपने शरीर में पड़ने देना चाहिए और चंद्रमा की पहले थोड़ी देर देखे और आँख बंद करके उसकी चमकती छवि को अपने मन में बनाकर ध्यान करते हुए,किसी भी आसन या कुर्सी पर बैठकर गुरु मंत्र या जो इष्ट हो उसका जप ध्यान करना चाहिए।
गुरु मंत्र नहीं हो तो,”ॐ चं चन्द्राय नमः” का जप करना चाहिए।
*कमजोर चन्द्र के कारण से उत्पन्न रोग, मानसिक परेशानियाँ अथवा तनाव को कम करने लिए कनिष्ठिका ऊँगली में 7 से 8 रत्ती का मोती पंचाम्रत से स्नान कराकर, सोमवार को चांदी में धारण करना चाहिए।
तांम्बे के पात्र में जल भरकर उसे छलनी या महीन कपड़े से ढ़ककर, रात को चाँद की रौशनी में रख कर,सुबह इस जल को पीने से चन्द्र के विपरीत प्रभावों को बहुत कम किया जा सकता है।
विशेष:-और जैसा मेने अन्य लेखो में बताया है की-चन्द्र पर्वत को अपने दूसरे हाथ के अंगूठे से थोड़ी देर रगड़ कर र दबाकर उसके स्पर्श को ध्यान करते हुए आँखे बंद करके गुरु मंत्र के जप से बहुत ही उत्तम चन्द्र के लाभ पाये जा सकते है।
“इस लेख को अधिक से अधिक अपने मित्रों, रिश्तेदारों और शुभचिंतकों को भेजें, पूण्य के भागीदार बनें।”
अगर आप अपने जीवन में कोई कमी महसूस कर रहे हैं? घर में सुख-शांति नहीं मिल रही है? वैवाहिक जीवन में उथल-पुथल मची हुई है? पढ़ाई में ध्यान नहीं लग रहा है? कोई आपके ऊपर तंत्र मंत्र कर रहा है? आपका परिवार खुश नहीं है? धन व्यर्थ के कार्यों में खर्च हो रहा है? घर में बीमारी का वास हो रहा है? पूजा पाठ में मन नहीं लग रहा है?
अगर आप इस तरह की कोई भी समस्या अपने जीवन में महसूस कर रहे हैं तो एक बार श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज के पास जाएं और आपकी समस्या क्षण भर में खत्म हो जाएगी।
माता पूर्णिमाँ देवी की चमत्कारी प्रतिमा या बीज मंत्र मंगाने के लिए, श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज से जुड़ने के लिए या किसी प्रकार की सलाह के लिए संपर्क करें +918923316611
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श्री सत्यसाहिब स्वामी सत्येंद्र जी महाराज
जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः