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लुप्त प्राय ज्योतिषीय ज्ञान-केतुकाल यानि “रात्रिकाल” का अद्धभुत रहस्य ज्ञान श्री सत्यसाहिब जी की जुबानी

 

 

 

स्वामी सत्येन्द्र जी महाराज जिन्होंने न जाने कितनों के जीवन में उजाला भर दिया। अपनी दिव्य दृष्टि, अपने ध्यान से सभी भक्तों के दुखों को दूर कर, श्री सत्यसाहिब जी महाराज हर पल अपने अनंत ज्ञान से के लोगों के जीवन में प्रकाश फैलातें रहते हैं।

 

एक ऐसा ज्योतिषीय रहस्य जो आज तक ना किसी ज्योतिषी ने बताया और ज्योतिष के शास्त्रों में उल्लेखित है तथा न इस पर किसी ने कोई चर्चा कहीं और ना ही सुनी गयी…

 

-जो आपको आज स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी स्वानुसंधान द्धारा बताई जा रही है, जिस ज्ञान को पाकर आप अपनी रात्रिकालीन रहस्यमयी गुप्त साधनाओं से सिद्धियां प्राप्त कर सकते है और गृहस्थी व्यक्ति इस काल में मैथुन क्रिया नहीं करें अन्यथा उनकी संतान का जीवन में बड़े संकट आते है और सन्तान सुख से वंचित रहना पड़ता है और करे तो अपनी कुंडली में केतु की स्थिति देख कर करेगा,तो अद्धभुत उच्चकोटि की सन्तति सुख की प्राप्ति करेगा, उसकी सात पीढियां तर जाएँगी और जो व्यक्ति इस काल में निंद्रा में होता है उसे दिखाई देने वाले स्वप्न और उनका भविष्य में प्रभाव अवश्य बुरा या अच्छा प्राप्त होता है।और जिन्हें इस काल में अचानक नींद उचट जाये और अच्छा अनुभव हो, तो उससे उसके ननसाल के पितृ विशेषकर उसके नाना या नानी उसकी सहायता को आये है,यो उस समय तुरन्त ध्यान करें,तो उनकी प्रेरणा का सन्देश उसे प्राप्त होगा और जीवन में बड़ा लाभ प्राप्त होगा।

 

श्री केतु देव “श्री सत्य सिद्ध शानिपीठ” से प्राप्त तस्वीर

 

 

-इस काल का उपयोग कैसे करें और कब करे,आओ ये जाने और लाभान्वित हो:-

-केतु क्या है:- केतु एक छाया ग्रह है और मोक्ष का ग्रह है और ये गुप्त समय पहर का यानि रात्रि के पहरों का स्वामी है।यो इसका काल सायकाल से लेकर प्रातः काल तक का समय होता है।यो वर्तमान में जितने भी विवाह होते है,वो और सभी रात्रिकालीन पार्टियां,फंग्शन,मीटिंग,शयन,
मैथुन,प्रणय सम्बन्ध आदि सबके सब इस केतु ग्रह के काल में ही होते है।जबकि हिन्दू धर्म में सभी विवाह काल दिन के पहर में निश्चित है,जो लोगों ने अपनी सुविधा के अनुसार रात्रिकाल में करने प्रारम्भ कर दिए और तो और सारे पण्डितों ने भी इसे मान्यता दे दी और सभी विवाहित जीवन जीने वालों के सभी सुखों का नाश में साथ दिया है,जबकि वे द्रढ़ता से चले तो ये विनाश नहीं हो ! ये रात्रि काल राक्षसों और दुष्ट शक्तियों का पहर है और उस समय देवताओं के मंत्र पढ़े जाने पर वे देवताओं को प्राप्त नहीं होते है और उन देव मन्त्रों की शक्ति से दैत्यों व् बुरी नकारात्मक शक्तियां विचलित होती है और विवाहितों के फेरों में बंधकर उनके साथ जीवन भर रहती और उनका विनाश करती रहती है और जिनका पूण्य बल अच्छा है उनका पूण्य बल कम होकर उतना लाभ नहीं मिलता है,जितना मिलना चाहिए था,यो बहुतों को लगेगा की-हमारे विवाह में तो कोई बांधा नहीं आई,सब शुभ रहा,पर ये उनका पूण्य बल घटा है और लाभ हुआ पर,विशेष नहीं।आज इसी कारण लगभग सभी गृहस्थी जीवन में भयंकर तनाव है और उनकी सन्तानें प्रारम्भ से ही रोगी बनकर अस्पताल में भर्ती रहती है।यो इस पर सभी विचार करें।

और यदि केतुकाल के समय के अंतर्गत आने वाले नीचे दिए गए सातों दिनों के समय सारणी में व्यक्ति के ये शुभ कार्य होते है,तो उन सभी पर केतु का प्रभाव पूर्ण रूप से बहुत अच्छा या बहुत बुरा होता है,यो ये ज्ञान अति आवश्यक है।

-अपनी जन्मकुंडली में केतु की स्थिति कैसी है,ये भी व्यक्ति पर शुभ अशुभ प्रभाव को बताती है और निदान भी..

-केतुकाल:– जानिए किस दिन कौनसे समय रहता है केतुकाल:-

-केतुकाल:- का समय – हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले मुहूर्त देखने की परंपरा है।

राहु काल की तरह 90 मिनिट का होता है केतुकाल:-*

राहुकाल का नाम सुना तो सभी ने होगा, लेकिन लोग ये नहीं जानते हैं कि केतुकाल होता क्या है? और ये किस प्रकार शुभ या अशुभ फल प्रदान करता है? ज्योतिष में केतु को छाया ग्रह माना गया है। यह ग्रह अशुभ फल प्रदान करता है। इसलिए इसके आधिपत्य का जो समय रहता है, उस दौरान शुभ कार्य करना वर्जित माने गए हैं।
सूर्य उदय से सूर्य अस्त तक के समय में से आठवे भाग का स्वामी राहु होता है और सूर्यास्त से लेकर सूर्य उदय तक के समय में से आठवे भाग का स्वामी केतु होता है। इसे ही केतुकाल कहते हैं। चूँकि राहु और केतु सदा एक दूसरे के आमने सामने होते है यो राहु की तरहां ही केतु का भी यह प्रत्येक दिन यानि वार को रात्रि में 90 मिनट का एक निश्चित समय होता है, जो केतुकाल कहलाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस समय शुरू किया गया कोई भी शुभ कार्य या भोग या मैथुन या साधना को शुभ नही माना जाता।

केतुकाल में न करें शुभ कार्य:-

ज्योतिष के अनुसार, केतुकाल में शुरू किए गए किसी भी शुभ कार्य में हमेशा कोई न कोई विघ्न आता है। अगर इस समय में कोई व्यापार की प्लानिंग की मीटिंग का प्रारंभ किया गया हो तो वह घाटे में आकर बंद हो जाता है। इस काल में विचार करके दिन में खरीदा गया कोई भी वाहन, मकान, जेवरात अन्य कोई भी वस्तु शुभ फलकारी नही होती। अत: किसी भी शुभ कार्य को करते समय केतुकाल पर अवश्य विचार कर लेना चाहिए।
प्रत्येक स्थान पर एवं ऋतुओं में अलग अलग समय पर सूर्र्यस्त से सूर्य उदय होता हैं। अत: हर जगह पर केतु काल का समय अलग-अलग होता हैं किंतु प्रत्येक वार पर इसके स्टैंडर्ड समय के अनुसार केतु काल मान सकते हैं:-

1-सोमवार को केतुकाल का स्टैंडर्ड समय साय 07:30 से 09 बजे तक माना गया है।

2-मंगलवार को रात्रि 03 से 04:30 बजे तक केतुकाल रहता है।

3-बुधवार को रात्रि 12 से 01:30 बजे तक का समय केतुकाल होता है।

4-गुरुवार को केतुकाल का स्टैंडर्ड समय रात्रि 01:30 से 03 बजे तक रहता है।

5-शुक्रवार को रात्रि 10:30 से 12 बजे तक के समय का स्वामी केतु होता है।

6-शनिवार को रात्रि 09 से 10:30 बजे तक केतुकाल होता है।

7-रविवार को केतुकाल का समय रात्रि 04:30 से भौर या प्रातः06 बजे तक रहता है।

केतुकाल के उपाय:-

अपने बिस्तरे के नीचे एक प्लेट में जल रख कर प्रातः उसे पोधे में डाल दे।
-फिटकरी अपने बिस्तरे में सिरहाने रखे और अमावस्या को निकाल कर नदी में प्रवाहित करें।
-विवाह में केतु के 21 मंत्र यज्ञाहुति अवश्य दे।
-विवाह उपरांत ये समस्या पाये,तो केतु के मंत्र से अभिमन्त्रित सूअर के दो दाँत स्वयं व् बच्चे को पहनावे और केतु के सवा लाख जाप भी करें या करावे।
-धूसर रंग के कुत्ते को भोजन या जो बने खाने को देते रहे।

-यो सात दिनों के इस केतुकाल समय अवधि में इस विषय और बताये गए उपायों पर सभी भक्त ध्यान रखें,तो अवश्य मनवांछित कल्याण होगा।

 

 

 

स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी

जय सत्य ॐ सिद्धायै नमः
www.satyasmeemission.org

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