हिंदू धर्म में किसा भी धार्मिक अनुष्ठान हो या पूजा-पाठ लगभग सभी अवसर पर लोग पण्डित या गुरु से अपने हाथ की कलाई पर लाल धागा बंधवाते हैं, जिसे अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नाम से जाना जाता है। कई लोग इसे ‘मौली’ करते हैं, तो कई लोग कलावा और कंगन के नाम से भी जानते हैं।
लेकिन क्या आप इस बात को जानते हैं कि आखिर पूजा-पाठ के बाद मौली यानी कलावा क्यों बांधते हैं, इसका क्या महत्व है? अगर आपका जवाब नहीं है-तो आइये- आज आपको इस प्रश्न से छुटकारा देते हुए कलावा के महत्व को लेकर कुछ जरूरी बातें बतातें हैं।
आपको बता दें कि कलावा को रक्षा सूत्र भी कहा जाता है कि इसे बांधने के धार्मिक महत्व के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी है।
क्या है रक्षा सूत्र का महत्व:-
धर्म शास्त्रों की कथाओं में बताया जाता है कि- असुरों के दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधे थे। भक्तों के लिए रक्षाबंधन का प्रतीक माने जाने वाले रक्षा-सूत्र को माता पूर्णिमाँ की लक्ष्य प्राप्ति को कराने वाली लक्षयी अवतार माता लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में अपने पति विष्णु जी की रक्षा के लिए ये बंधन बांधा था।
क्या है रक्षा सूत्र यानी मौली का अर्थ:-
धर्मज्ञों के अनुसार ‘मौली’ का अर्थ होता ‘सबसे ऊपर’, क्योंकि मौली को कलाई में बांधते हैं, इस लिए इसे “कलावा” भी कहते हैं। और एक और अर्थ है-कल माने भविष्य और आवा माने प्राप्त होने वाला फल,यो इसे कर्म के प्रतीक हाथ के प्रारम्भ और अंतिम स्थान,जिसे कलाई कहते है,वहां बांध कर भक्त के आने वाले भविष्य के अशुभ परिणाम को शुभता में मन्त्रों या शुभ आशीर्वाद वचनों के साथ परिवर्तित किया जाता है।
वैसे इसका वैदिक नाम “उप मणिबंध” भी है।हस्तरेखा शास्त्र में ये मणिबन्ध में मुख्य तीन और पांच रेखाएं होती है और उन्हें देख कर ही भक्त के भविष्य में शुभ अशुभ फल मिलेगा,ये बताया जाता है की-प्रत्येक रेखा 20 से 25 साल के भविष्य फल को दर्शाती है,यदि ये रेखाएं कटी फ़टी हो,तो उस भक्त का भाग्य छोटी बड़ी बांधाओं और अचानक विघ्नों से परिवर्तनों से बाँधित होकर परेशानी पाता है।यो उन्हें पूज्य मन्त्रों से उन सभी रेखाओं के रूप में भाग्य को बांधा जाता है।और इस मूलबंध या मणिबन्ध के स्थान पर हाथ में स्थित सभी 9 ग्रहों-सूर्य(अनामिका ऊँगली)-चन्द्र(कंग की ऊँगली) आदि और हाथ के बीच में हथेली में जो मूल शक्ति बिंदुओं को आती जाती ऊर्जा जिसका सम्बन्ध हमारे मष्तिष्क और शरीर के सभी स्थानों पर प्रभावी होता है,यहां ये तीन या पांच पड़ी रेखाओं के नीचे जाने वाली जीवन शक्ति नसों को,जिन्हें शनि या भाग्य रेखा तथा जीवन रेखा तथा मन रेखा व् मष्तिष्क रेखा और ह्रदय रेखा-ये पँच देव देवी है और भी सूर्य रेखा आदि को नियंत्रित इस कलावे के बांधने से बहुत हद तक होता है।
-और कहा जाता है कि- शंकर भगवान के सिर पर चन्द्रमा हैं, यही कारण है कि उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है।
-मौली कच्चे धागे से बनती है, जिसमें मूलत: 3 रंग के धागे (लाल, पीला और हरा)का प्रयोग होता है, लाल या गुलाबी रंग-विष्णु और लक्ष्मी देवी की कृपा रंग है और पीला-ब्रह्मा और सरस्वती देवी का कृपा रंग है और हरा शिव शक्ति की कृपा रंग है और कभी-कभी ये 5 धागों की भी बनाई जाती है, जिसमें नीले-शनिदेव या सत्यनारायण भगवान और सफेद रंग-माता पूर्णिमाँ और गणेश जी की कृपा रंग के रूप में धागों का भी प्रयोग किया जाता है, यानि इसका सीधा अर्थ- ये बताया जाता है कि-3 यानी की त्रिदेव के नाम पर और 5 यानी की पंचदेव के नाम पर इस बांधा जाता है।
-ज्ञानियों का मानना है कि- अविवाहित लड़कों या पुरुष और अविवाहित युवतियों को इसे दाएं हाथ में बांधना चाहिए।
जबकि विवाहित पुरुषों और महिलाओं को बाएं हाथ में बांधना चाहिए।
-इसे बंधवाते समय आपकी मुट्ठी बंधी और उँगलियों का भाग बांधने वाले की और ऊपर को होना चाहिए और आपका दूसरा हाथ सिर पर रखा होना चाहिए।
-मौली बांधने के लिए किसी पूजा या खास स्थान की जरूरत नहीं होती है, इसे किसी भी स्थान पर बैठकर बांध सकते है, लेकिन इतना ध्यान रहे कि इस सूत्र को केवल 3 बार ही लपेटते हैं। हालांकि अब लोग इसे फैसन के तौर पर भी बांधते है, ऐसे में लोग इसे कई बार लपेटते हैं।
कुछ गुरु लोग अपने लम्बे स्त्रोत्रपाठ के जपने के कारण 5 या 9 बार भी लपेट कर भक्त के ग्रह संकट बंधन के लिए बांधते है।
इसके वैज्ञानिक लाभ भी हैं:-
जैसा की ऊपर बताया जा चुका है की- हाथ, पैर, कमर और गले में मौली बांधने से आपको स्वास्थ लाभ भी होता है, जैसे कि इससे त्रिदोष यानि वात, पित्त और कफ का संतुलन बना रहता है। इसके बांधने से ब्लड प्रेशर, हार्टअटैक, डायबिटीज और लकवा और पेशाब के रोग आदि जैसे गंभीर बीमारियों से बचाव करने में भी लाभ होता है।
*स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी महाराज*