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क्या यूपी-बिहार के उपचुनाव की आंधी कर्नाटक विस चुनावों तक जाएगी? बैंगलोर से रामजान अली की स्पेशल रिपोर्ट






“यूपी बिहार के नतीजे जैसे ही आये वैसे ही राजनीतिक गलियारों में खुसफुसाहट तेज़ हो गयी। यूपी के सीएम ने उपचुनाव में प्रचार के दौरान कहा था कि यह हमारी 2019 की तैयारी होगी और हमें कोई हरा नहीं पायेगा। लेकिन कल जैसे ही चुनावों का परिणाम आया वो सत्तापक्ष के पक्ष में तो बिलकुल नहीं रहा। तो क्या अब ऐसे में इसको 2019 की तैयारी माना जाए?”

 

 

 

बता दें कि जिन सीटों पर उपचुनाव हुए थे उनमें यूपी की प्रमुख सीटों में थीं। गोरखपुर की सीट जिसे पिछले 26 सालों से योगी आदित्यनाथ और गोरखपुर मठ ने बचा कर रखा हुआ था तो दूसरी सीट सपा से छीनी हुई सीट थी जिस पर भाजपा के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने जीत हासिल की थी। यह पहली बार था जब आंधी में भाजपा यह सीट भी ले उड़ी थी। इसी बदौलत केशव प्रसाद मौर्या को पहले केंद्र, फिर यूपी में बड़ी जिम्मेदारियों से नवाजा गया। लेकिन महज़ 4 साल में उनका जादू ठंडा पड़ गया।

 

 

“गोरखपुर में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के बूथ पर उनके उम्मीदवार को महज 43 वोट मिले। यह केवल एक संजोग ही नहीं बल्कि गोरखपुर में ऑक्सीजन की कमी के कारण जान गंवा चुके मासूमों के माँ बाप का बदला था।”

 

 

यूपी ही नहीं बल्कि बिहार में अपनी जीत का दावा कर रहे नीतीश कुमार भी धराशायी हुए। महागठबंधन से अलग होने के बाद एनडीए के साथ पहला चुनाव लड़ रहे नीतीश कुमार को बिहार में तगड़ा झटका लगा। बेशक बिहार की तीनों सीटों पर उन्हीं पार्टियों के उम्मीदवार जीते जिनके पास वो सीटें पहले से थीं। लेकिन विकास बाबू ने इन तीनों सीटों पर जबरदस्त चुनाव प्रचार किया था बल्कि एनडीए के कई बड़े नेता भी इन तीनों सीटों पर चुनाव प्रचार करके गए थे। लेकिन आरजेडी की सीटों को चुराने में नाकामयाब रहे। एकमात्र भभुआ सीट जिस पर उनके उम्मीदवार ने जीत दर्ज की वो भी बहुत बड़ी नहीं कह सकते हैं।

 

तो अब सीधे तौर पर कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश और बिहार की लोक सभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीज़े का असर कर्नाटक पर भी हो सकता है। कर्नाटक में दो महीने बाद ही विधानसभा के चुनाव हैं। यूपी-बिहार के उपचुनाव में मिली हार से सबक लेते हुए भारतीय जनता पार्टी वहां अपनी चुनावी रणनीति पर फिर से विचार कर रही है। बता दें कि स्टारप्रचारक के रूप में योगी आदित्यनाथ कई बार कर्नाटक होकर आए और उन्होंने कांग्रेस को जमकर कोसा। यूपी में श्री राम का सहारा तो कर्नाटक के चुनावों में श्री हनुमान के नाम को उन्हीं के द्वारा उछाला गया।

 

पीएम मोदी ने कर्नाटक बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा के 75वें जन्मदिन के अवसर पर हुई रैली के आयोजन में वहां के सीएम के खिलाफ जमकर हल्ला बोल था। पीएम मोदी ने कहा था कि कर्नाटक में सबकुछ पैसों के लिए हो रहा है और सिद्धरमैया सरकार ‘एक सीधा रुपैया सरकार’ बन चुकी है। साथ ही उन्होंने बीएस येदियुरप्पा को कर्नाटक के सीएम का उम्मीदवार बनाया था। जबकि ये वही येदुरप्पा थे जिन पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगे थे।

प्रधानमंत्री मोदी शायद भूल गए कि ये वही येदुरप्पा हैं जिन पर सीएम रहते भ्रष्टाचार के आरोप लगे और इन्हें अपनी कुर्सी तक गंवानी पड़ी थी और साथ ही भाजपा ने इन्हें बाहर का रास्ता भी दिखा दिया था। लेकिन कर्नाटक में विकल्प न होने के कारण पीएम मोदी द्वारा पूर्व सीएम येदुरप्पा को वापस लाया गया।

 

 

“प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी हर रैली में यूपीए सरकार के शासनकाल में हुए भ्रष्टाचार के मुद्दे को जोर-शोर से उठाते रहे हैं। ऐसे में येदुरप्पा की वापसी और उनको सीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने से बीजेपी को बैकफुट पर धकेल सकती है। हर रैली में नरेंद्र मोदी कांग्रेस को भ्रष्टाचार पर कोसते रहे हैं। लेकिन भ्रष्टाचार पर कांग्रेस को घेरने वाले मोदी का येदुरप्पा पर यूटर्न क्यों? वो उनके द्वारा किये गए भ्रष्टाचार को कैसे भूल जाते हैं?”

 

 

येदुरप्पा पर लगे हैं ये बड़े आरोप :

– येदुरप्पा के सीएम रहते उन पर बेटों और रिश्तेदारों को फायदा पहुंचाने का आरोप।
– कई जमीन सौदों में गड़बड़ी का आरोप
– अवैध रूप से खनन लाइसेंस देने का आरोप
-भ्रष्टाचार के आरोप में येदुरप्पा को जेल भी जाना पड़ा था।

 

लेकिन जैसे ही पीएम मोदी प्रधानमंत्री बने वैसे ही येदुरप्पा के ऊपर से आरोप हटते गए।

येदुरप्पा मोदी समर्थक माने जाते हैं। पार्टी से बाहर रहने के बावजूद उन्होंने मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाए जाने का जोरदार समर्थन किया था। लिहाजा मोदी ने भी आडवाणी विरोध और शुचिता के दावे को ताक पर रख सीटों को तरजीह दी। दरअसल, पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा 18 सीटें कर्नाटक से ही मिली थीं। लेकिन येदुरप्पा के अलग होने के बाद विधानसभा चुनाव में न बीजेपी का कमल खिला, न ही येदुरप्पा की केजीपी पार्टी जीती। अब येदुरप्पा के आने के बाद बीजेपी को उम्मीद है कि इस बार विधानसभा और लोकसभा चुनाव में वो कर्नाटक में पहले से ज्यादा सीटें मिलेंगी।

 

 

अब बात यूपी-बिहार के उपचुनाव के इफ़ेक्ट की हो रही हैं तो उसी बात पर वापस आते हैं।
कर्नाटक विस चुनावों पर यूपी-बिहार के उपचुनाव के असर की बात करें तो एक बड़े राष्ट्रीय अखबार के मुताबिक उत्तर प्रदेश और बिहार में हुए उपचुनाव के नतीज़ों का असर कर्नाटक में सबसे ज़्यादा उम्मीदवारों के चयन पर पड़ सकता है। यहां भाजपा मठ-मंदिरों के प्रमुखों को टिकट देने से परहेज़ कर सकती है। या फिर बहुत सीमित संख्या में इक्का-दुक्का ऐसे उम्मीदवारों को ही भाजपा का टिकट दे सकती है जो मजबूत दावेदार होंगे। जबकि कर्नाटक में आधा दर्ज़न से अधिक टिकट के दावेदार ऐसे बताए जाते हैं जो किसी न किसी मठ-मंदिर के प्रमुख हैं। क्योंकि सीएम योगी के कहने पर इन उम्मीदवारों का चयन किया जा रहा था लेकिन गोरखपुर की हार ने सीएम योगी को बैकफुट पर ला खड़ा किया है।

ख़बरों के मुताबिक ऐसे दावेदारों में शिरूर मठ के लक्ष्मीवर तीर्थ स्वामी प्रमुख हैं। वे उडुपी से टिकट चाहते हैं। मनगुंडी के बासवानंद स्वामी तो टिकट की उम्मीद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिल चुके हैं। उनके बारे में कहा जा रहा है कि भाजपा उन्हें कलघटगी से उम्मीदवार बना सकती है। इनके अलावा मेंगलुरू के वज्रदेही मठ के राजशेखरानंद स्वामी, होलालकेरे के मादरा चेन्नैया स्वामी और कुछ अन्य संत भी टिकट के दावेदारों में शुमार हैं।

लेकिन अब जब खुद योगी ही अपनी सुरक्षित सीट को बचाने में नाकामयाब रहे हैं तो ऐसे में आशंका ज़ताई जा रही है, गोरखरपुर सीट से भाजपा की हार का उल्टा असर कर्नाटक के इन ‘स्वामियों’ के टिकट की दावेदारी पर भी पड़ सकता है। कर्नाटक भाजपा के प्रवक्ता वामन आचार्य कहते भी कह रहे हैं कि ‘स्वामियों’ को टिकट देना हमारे एजेंडे में नहीं है। अगर कोई टिकट चाहता भी है तो उसे जिला और राज्य स्तर पर प्रत्याशी चयन प्रक्रिया से गुजरना होगा।

अब देखना यह बड़ा दिलचस्प रहेगा कि त्रिपुरा, मेघालय, और नागालैंड के विधानसभा चुनावों में स्टार प्रचारक के तौर पर अपनी भूमिका निभा चुके सीएम योगी कर्नाटक में ठीक वैसा ही जादू कर पाएंगे? पार्टी की तरफ से ठीक वैसी ही तरहीज दी जाएगी जैसी गुजरात, त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय में दी गयी थी।

खैर हार जीत तो लगी ही रहती है लेकिन साख भी एक बड़ी चीज होती है। कर्नाटक चुनावों को बस 2 महीने बचे हैं। पार्टी की आगे की रणनीति क्या रहेगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

 

 

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स्पेशल रिपोर्ट :
रामजान अली

ख़बर 24 एक्सप्रेस

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