चारा घोटाला से संबंधित एक अन्य मामले में जब राँची की सीबीआई अदालत ने पिछले सप्ताह लालू प्रसाद यादव को दोषी करार दिया, तो स्वाभाविक रूप उसी दिन खबरिया चैनलों पर बहसें शुरू हो गयीं।बड़े चैनल ‘आजतक’ पर भी।
पुण्य प्रसून वाजपेयी एंकरिंग कर रहे थे।वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता पत्रकार के रूप में बहस में भाग ले रहे थे।अपनी बात रखने के क्रम में आलोक मेहता अचानक बोल पड़े कि,”….चारा घोटाले में पत्रकारों को भी पैसे मिले।”हालांकि, बहस में इस बिंदु पर बात आगे नहीं बढ़ी।लेकिन, सोशल मीडिया में कुछ लोगों ने आलोक जी से उन पत्रकारों के नाम बताने का आग्रह किया जिन्हें कथित रूप से धन मिले।नाम सामने नहीं आये।
मामला पत्रकार और पत्रकारिता का होने के कारण अनेक पत्रकार मित्रों/सहयोगियों ने मुझसे इस पर प्रकाश डालने का आग्रह किया। आग्रह के कारण मौजूद थे।
कारण ये कि तब “पशुपालन घोटाला” के रूप इस घोटाले से संबंधित खबर सबसे पहले हमने ” प्रभात खबर ” में छापी थी-1984 के अंतिम दिनों या1985 के आरंभ में।तब एक दिन मेरे एक तेज-तर्रार सहयोगी संवाददाता मधुकर जी दस्तावेजों के साथ घोटाले की ख़बर ले कर मेरी केबिन में आये थे।उन्होंने घोटाले की गंभीरता, अधिकारियों-नेताओं की संलिप्तता आदि की जानकारी दी।कैसे बोगस बिल बनाये जा रहे थे, दवा आपूर्तिकर्ता कंपनियों के साथ पशुपालन अधिकारियों की सांठ-गांठ, नेताओं-ठेकेदारों-अधिकारियों की मिलीभगत से सरकारी खजाने को कैसे चूना लगाया जा रहा था आदि आदि।
पूरी ख़बर के अवलोकन और दस्तावेजों की पड़ताल के बाद मैंने ख़बर को प्रकाशनार्थ जारी कर दिया।खबर छपी और पशुपालन विभाग में खलबली शुरू। मधुकर जी को दबाव-प्रलोभन से जूझना पड़ा।दबाव मुझ पर भी आये।मुख्यतः जाति के नाम पर।प्रसंगवश, पशुपालन घोटाले के ‘किंगपिन’ ड़ॉ श्याम बिहारी सिन्हा सहित प्रायः सभी शीर्ष घोटालेबाज कायस्थ जाति के ही थे।लेकिन, मधुकर जी को मैंने खुली छूट दे रखी थी।हिम्मत भी कि डरने की जरूरत नहीं।बाद में वही पशुपालन घोटाला “चारा घोटाला” के रूप में कुख्यात हुआ।इतिहास कि चारा घोटाले को सर्वप्रथम उजागर ” प्रभात खबर” ने किया था।और तब, “प्रभात खबर” के प्रथम संपादक के रूप में संपादकीय जिम्मेदारी मैं संभाल रहा था।मेरे प्रभात खबर से पृथक होने के बाद स्थितियां बदलीं।इस घोटाले से जुड़े अनेक अप्रकाशित रोचक प्रसंग हैं, जिन पर कभी अलग से प्रकाश डालूंगा।फिलहाल पत्रकार औऱ पैसा।
हाँ, तो आलोक मेहता जी ने चर्चा में बताया कि चारा घोटाले में पत्रकार भी उपकृत हुए।आलोक जी सम्भवतः1986में ‘नवभारत टाइम्स’ के पटना संस्करण में, दीनानाथ मिश्र के बाद, संपादक बन कर आये थे।1991में अरुण रंजन,जहाँ तक मुझे याद है, संपादक बने।चारा घोटाला उन्हीं दिनों एक घटना के कारण कुख्यात हुआ।बल्क़ि, व्यापक रूप में प्रकाश में आया।
घटना थी कि एक दिन आयकर विभाग को गुप्त सूचना मिली कि रांची से दिल्ली जाने वाले इंडियन एयरलाइन्स के विमान में एक यात्री बड़ी नक़द रकम ले कर दिल्ली जा रहा है।आयकर विभाग के बड़े अधिकारी हवाई अड्डा पहुंचे।उनलोगों ने उड़ान भर चुके विमान को वापस उतरवाया।तलाशी पर दो यात्रियों के बुक कराये गये समान से नकद के रूप में बहुत ही बड़ी रकम बरामद हुई।यात्री डॉ श्याम बिहारी सिन्हा के नजदीकी रिश्तेदार थे।यहीं से मामले ने तूल पकड़ा कि इतनी बड़ी रक़म आखिर दिल्ली किसके लिए और क्यों ले जायी जा रही थी?
बिहार विधानसभा में हंगामा हुआ।डॉ जगन्नाथ मिश्र विपक्ष के नेता थे।जांच की मांग हुई।मुख्यमंत्री लालू यादव ने सीआईडी जांच के आदेश दे दिए। शुरू में सीबीआई जांच की मांग करने वाला विपक्ष मौन रह गया।विपक्ष का “मौन” रहस्यमय था!हालांकि बाद में मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था।
एक और घटना।’टाइम्स ऑफ इंडिया’ का पटना संस्करण चारा घोटाले की खबरों को निरंतर प्रमुखता से छाप रहा था।उत्तम सेन गुप्ता (संप्रति, नेशनल हेराल्ड, दिल्ली)तब संपादक थे।एक दिन कार्यालय के सामने उत्तम सेन पर गोली चलाई गई।उत्तम बाल-बाल बचे थे।हमले की उस घटना को चारा घोटाला और लालू यादव से जोड़ा गया था।खैर।
घोटाले की जांच के दौरान एक बार छापेमारी में श्याम बिहारी सिन्हा के आवास से अन्य दस्तावेजों के साथ एक डायरी मिली थी।डायरी में कुछ ऐसे नाम लिखे थे जिन्हें कथित रूप से श्याम बिहारी सिन्हा ने पैसे दिए थे।भुगतान की रकम भी लिखी थी।इसी में पत्रकार के नाम भी शामिल थे-बड़ी रकम के साथ।अलोक जी ने संभवतः उसी की चर्चा की होगी।या हो सकता है कि उनके पास कोई और जानकारी हो।अब लोग अगर उस/उन पत्रकार/पत्रकारों के नाम जानना चाहते हैं तो आलोक जी को चाहिए कि नाम सार्वजनिक कर दें!बिरादरी में प्रविष्ट काले भेड़ियों की पहचान तो होनी ही चाहिए!
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यह आर्टिकल वरिष्ठ पत्रकार श्री एस. एन विनोद द्वारा लिखा गया है।
सर, उन दिनों प्रभात खबर अंग्रेजी में भी छपता था।मैंने भी पढ़ा था।
आपने कमाल की रिपोर्टिंग करवाई थी।आपकी सराहना होती थी।
कुछ लोग हिम्मत की भी दाद देते थे।
दुर्भाग्यवश उन दिनों के प्रभात खबर की कटिंग मैं नहीं रख सका।
यू.एन.विश्वास के एक करीबी पत्रकार ने तब मुझे बताया था कि उसने वह लिस्ट देखी थी।पटना,रांची और दिल्ली के 55 पत्रकारों के नाम थे।रकम
10 हजार से 35 लाख रुपए तक।
शर्मनाक स्थिति थी।
मैं जनसत्ता के लिए रिपोर्टिंग करता था।
विनोद जी, आप से बेहतर कौन जान सकता है कि कितने तनाव में हम लोग रहते थे।
एक घोटालेबाज ने, जो तब जेल में था, अब भी जेल में हैं ,कई लोगों के सामने कहा था कि जेल से निकल कर सच्चिदानंद झा और सुरेंद्र किशोर की मुड़ी कटवा दूंगा।उत्तम सेन गुप्त तथा कई अन्य पत्रकारों की भूमिका शानदार थी।गर्व होता है ऐसे पत्रकारों पर।
समाज के हर संबंधित क्षेत्रों के प्रभावशाली लोगों के बीच पैसे बांटते थे वे घोटालेबाज।
इस देश में कितने लोग हैं जो घर आई लक्ष्मी का तिरस्कार करें ? जितने लोग हैं, उतने ही लोगों ने ठुकराया था।