“राफेल डील एक महाघोटाला है” ये ख़बर हमने पिछली साल सितंबर में बड़ी ही प्रमुखता से दिखाई थी उस वक़्त इक्का दुक्का न्यूज़ पेपर ने इस ख़बर को कहीं एक कौने में जगह दी। हमने बार-बार इस डील पर सवाल उठाए क्योंकि जब 2010 में यह डील होने जा रही थी उस वक़्त के और अब के सौदे में बहुत बड़ा अंतर आ चुका था।
अब जब पीएम मोदी के गढ़ गुजरात में जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं विपक्ष के हमले और तीखे होते जा रहे हैं। कांग्रेस में उपाध्यक्ष ने ख़बर 24 एक्सप्रेस की राफेल घोटाले की ख़बर को आधार मानते हुए सीधे मोदी पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी ने एक कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए कैसे पूरी राफेल डील को ही बदल डाला। उन्होंने कहा कि जो सौदा पहले आधे दामों में हो रहा था पीएम मोदी उसको दोगने दाम में खरीदकर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं।
आपको बता दें कि ख़बर 24 एक्सप्रेस ने बताया था कि राफेल एक बहुत बड़ा घोटाला साबित हो सकती है। क्योंकि डील शक के घेरे में इसलिए है, जब चार साल पहले फ्रांस के साथ इस फाइटर प्लेन ख़रीद के लिए समझौता हुआ था तब इसके तहत 126 विमानों को 79254 करोड़ रुपये में खरीदा जा रहा था लेकिन फ्रांस की कंपनी दस्सो इस पर तैयार नहीं थी वो 98280 करोड़ रुपये यानि 780 करोड़ रुपये प्रति राफेल बेचने पर तैैयार थी इस सौदे में टेक्नोलॉजी बेचने की भी की बात शामिल थी।
अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि मोदी सरकार ने किस आधार पर राफेल के लिए समझौता किया जो इतना महँगा साबित हुआ। उसमें स़िर्फ 36 विमानों को 8.74 बिलियन डॉलर में ख़रीदा जाना है। मतलब यह कि एक विमान की क़ीमत 243 मिलियन डॉलर, लगभग 1600 करोड़ रुपये वो भी बिना टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के। अब सवाल तो पूछना लाज़िमी है कि चार साल में ऐसी क्या बात हो गई कि राफेल की क़ीमत दोगुनी से ज्यादा हो गई। यानि कि लगभग 28800 करोड़ का घोटाला। क्या यह महाघोटाला नहीं है?
हमारी खबर के आधार पर कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने भी भाजपा से इस डील मेम हुए कथित घोटाले पर सावल पूँछें थे। लेकिन हमेशा की तरह भाजपा ने उस वक़्त भी कोई जबाव नहीं दिया उकात कांग्रेस पारद ऐश को लूटने का आरोप मढ़ दिया था।
(इस ख़बर को ख़बर 24 एक्सप्रेस ने 2010 में हो रही डील के आधार पर दिखाया था, गूगल पर भी पुरानी खबरे उपलब्ध हैं जिनसे ये साबित होता है कि जो सौदा भाजपा की केंद्र सरकार ने किया है वो पहले वाले सौदे से काफी महँगा है। इसके अलावा एनडीए के रक्षा मंत्री रहे मनोहर पर्रिकर ने डील पर हस्ताक्षर करते ही रक्षा मंत्रालय से हटने और वापस गोवा जाने की इक्षा जताई थी.)
विमान की ख़रीद की प्रक्रिया यूपीए सरकार ने 2010 में शुरू की थी। 2012 से लेकर 2015 तक इसे लेकर सिर्फ बातचीत चलती रही। जब 126 विमानों की बात चल रही थी, तब ये सौदा हुआ था कि 18 विमान भारत ख़रीदेगा और 108 विमान भारत सरकार की कंपनी हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स एसेम्बल करेगी, और तो और भारत को विमान बनाने के लिए टेक्नोलॉजी भी मिलने वाली थी। यानि कि यूपीए सरकार की डील में कुल मिलाकर बात यह थी कि सिर्फ 18 विमान हम फ्रांस से लेंगे और बाकि के 108 विमान हम भारत में ही बनाएंगे और वो भी डील से कम रेटों पर। जो विमान हमें 780 करोड़ का पड़ रहा था वो भारत में इससे भी कम का पड़ता। लेकिन इन सबके बाबजूद डील फाइनल नहीं हुई क्योंकि उस वक़्त के पीएम मनमोहन सिंह सौदे को और कम करना चाह रहे थे उन्हें ये सौदा बहुत महँगा लग रहा था।
लेकिन अप्रैल 2015 में मोदी सरकार ने पेरिस में घोषणा की कि हम 126 विमानों के सौदे को रद्द कर रहे हैं और इसके बदले 36 विमान सीधे फ्रांस से ख़रीद रहे हैं इनमें एक भी विमान भारत में नहीं बनेगा। ख़बर ये भी आई कि राफेल बनाने वाली कंपनी दस्सो को भारत सरकार 15 फ़ीसदी एडवांस रक़म देगी, तब उन विमानों पर काम शुरू होगा।
अब आपको सबसे बड़ी बात यह बता दें कि जिस कंपनी फ्रांसिसी कंपनी दस्सो में साथ हम समझौता कर रहे हैं वो कंपनी बंद होने के कगार पर थी। इस विमान को ख़रीदने वाले ख़रीदार नहीं मिल रहे थे क्योंकि इतनी क़ीमत पर दुनिया में इससे बेहतर लड़ाकू विमान उपलब्ध हैं। जानकारों का मानना है कि भारत ने इस सौदे के जरिए दस्सो कंपनी को खत्म होने से बचाया है। इस डील के होते ही इस कंपनी के शेयर आसमान में उड़ने लगे थे।
एक तरफ आतंकी हमले के परिदृश्य में सरकार ने अफरा-तफरी में डील को हरी झंडी दी, लेकिन हैरानी तो तब होती है कि जब इसके तुरंत बाद अनिल अंबानी की अगुवाई वाले रिलायंस समूह तथा राफेल विमान बनाने वाली कंपनी दस्सो एविएशन ज्वाइंट वेंचर लगाने की घोषणा करती है। अब ये कोई कहे कि राफेल सौदे के पहले किसी को इस बात की जानकारी नहीं थी तो ये बात किसी को हज़म नहीं होगी। दोनों कंपनियों के बीच हुए ज्वाइंट वेंचर से ये साफ लगता है कि सरकार, दस्सो और रिलायंस ने मिल-जुल कर एक ऐसा मसौदा तैयार किया, जिससे बंद होने वाली कंपनी दस्सो बच भी जाए और रिलायंस को फ़ायदा भी हो जाए।
यह इसलिए क्योंकि ज्वाइंट वेंचर का मक़सद ही यह था कि पूरे सौदे के 50 फीसदी रक़म को ‘ऑफसेट’ कॉन्ट्रैक्ट को पूरा करने में रिलायंस अहम भूमिका निभाएगा। इस बात से शक और भी पुख्ता होता है क्योंकि भारत और फ्रांस ने 23 सितंबर को 36 राफेल लड़ाकू जेट के लिए समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद संयुक्त उद्यम दस्सो रिलायंस एयरोस्पेस गठित किए जाने की घोषणा की।
अब जैसे -जैस विधान सभा और लोकसभा चुनाव नज़दीक आते जा रहे हैं वैसे-वैसे विपक्षी दल सरकार के खिलाफ लामबंद होते जा रहे हैं। राफेल फाइटर्स की डील पर सत्ताधारी बीजेपी और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के बीच घमासान मचा हुआ है। गुरुवार को कांग्रेस के वाइस प्रेजिडेंट राहुल गांधी ने प्राइम मिनिस्टर नरेंद्र मोदी पर जमकर हमला बोला। राहुल ने मोदी पर एक कारोबारी को फायदा पहुंचाने के लिए ‘पूरी डील’ बदल देने का आरोप लगाया है जिसको बीजेपी ने खारिज कर दिया।
राहुल ने यह भी सवाल उठाया कि अमित शाह के बेटे जय के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवालात क्यों नहीं किए गए? मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद जय की कंपनी के टर्नओवर में कथित तौर पर अप्रत्याशित उछाल आया है। कांग्रेस के उपाध्यक्ष ने कहा, ‘आप मुझसे कितने सारे सवाल पूछते हैं और मैं सबका जवाब देता हूं। मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से राफेल डील पर सवाल क्यों नहीं पूछते? आप उनसे अमित शाह के बेटे के बारे में सवाल क्यों नहीं पूछते? आप क्यों नहीं प्रधानमंत्री से सवाल पूछते हैं जिन्होंने एक कारोबारी को फायदा पहुंचाने के लिए राफेल डील बदल डाली।
हमने ख़बर 24 एक्सप्रेस पर इस खबर को बड़ी ही प्रमुखता से दिखाया था। और हमने यह भी आरोप लगाए थे कि विपक्ष इस मुद्दे पर अपनी चुप्पी क्यों साधे हुए है। लेकिन अब राहुल गांधी द्वारा इस डील पर सवाल उठाने के साथ ही यह मुद्दा और गर्माएगा जो मोदी और बीजेपी की मुसीबतें बढ़ा सकता है।
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ख़बर 24 एक्सप्रेस