आप सभी धनतेरस दिवाली की खरीददारी में व्यस्त होंगे। लगभग हम हर जरुरत की हर बड़ी विशेष चीज ज्यादातर धनतेरस या दिवाली पर खरीदते हैं। लेकिन कुछ लोग इसका ना महत्व जानते हैं। धनतेरस पर क्या करना चाहिए क्या नहीं ये भी सबको नहीं पता होता।
धनतेरस पर कब और किस वक़्त खरीदना है ये आपको हम बताते हैं।
आपको बता दें कि दिवाली से एक दिन पहले धनतेरस का त्यौहार आता है और ये काफी शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सोने, चाँदी, या स्टील के बर्तनों की खरीदारी करना काफी शुभ होता है। घर में बाजार से सोना चाँदी खरीदकर लाना सबसे ज्यादा शुभ माना गया है। भूलकर भी लोहे की खरीदारी ना करें।
इस दिन खरीदारी करने से मां लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर प्रसन्न होते हैं और धन-संपत्ति प्राप्ति का वरदान देते हैं।
आज धनतेरस है। वैसे तो कहते हैं कि धनतेरस का दिन इतना शुभ होता है कि इस दिन अगर कोई व्यक्ति पूरे दिन में कभी भी खरीदारी करे तो वह अच्छा ही होगा। पर हर धनतेरस पर खरीदारी करने का शुभ समय होता है, जिसमें खरीदारी और पूजन करने से ज्यादा फल की प्राप्ति होती है।
धनतेरस के दिन शाम 07.30 से 09.00 के बीच में खरीदारी करने का शुभ समय है। पूजा का शुभ समय भी यही है। इसलिए इसी समय में पूजा उपासना भी करें।
धनतेरस के दिन अगर आप पूरे दिन खरीदारी करने की सोच रहे हैं तो अपना इरादा बदल दें। क्योंकि, सायं 03.00 से 04.30 के बीच पूजन और खरीदारी का शुभ मुहूर्त नहीं है। इस बीच खरीदारी या पूजन ना करें। ऐसा करना अशुभ होगा।
आज ही के दिन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता धन्वन्तरि वैद्य समुद्र से अमृत कलश लेकर प्रगट हुए थे, इसलिए धनतेरस को धन्वन्तरि जयन्ती भी कहते हैं। इसीलिए वैद्य-हकीम और ब्राह्मण समाज आज धन्वन्तरि भगवान का पूजन कर धन्वन्तरि जयन्ती मनाता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि धनतेरस आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों में नए बर्तन खरीदते हैं और उनमें पकवान रखकर भगवान धन्वंतरि को अर्पित करते हैं।
लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि असली धन तो स्वास्थ्य है। धन्वंतरि ईसा से लगभग दस हजार वर्ष पूर्व हुए थे। वह काशी के राजा महाराज धन्व के पुत्र थे। उन्होंने शल्य शास्त्र पर महत्त्वपूर्ण गवेषणाएं की थीं। उनके प्रपौत्र दिवोदास ने उन्हें परिमार्जित कर सुश्रुत आदि शिष्यों को उपदेश दिए इस तरह सुश्रुत संहिता किसी एक का नहीं, बल्कि धन्वंतरि, दिवोदास और सुश्रुत तीनों के वैज्ञानिक जीवन का मूर्त रूप है।
धन्वंतरि के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है। उनके जीवन के साथ अमृत का कलश जुड़ा है। वह भी सोने का कलश। अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था। उन्होंने कहा कि जरा मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का आविष्कार किया था। सुश्रुत उनके रासायनिक प्रयोग के उल्लेख हैं।
धन्वंतरि के संप्रदाय में सौ प्रकार की मृत्यु है। उनमें एक ही काल मृत्यु है, शेष अकाल मृत्यु रोकने के प्रयास ही निदान और चिकित्सा हैं। आयु के न्यूनाधिक्य की एक-एक माप धन्वंतरि ने बताई है।