मनीष कुमार। ख़बर 24 एक्सप्रेस।
लगता है यूपी बच्चों के लिए कब्रगाह बनती जा रही है। पहले गोरखपुर में 250 बच्चों की मौत का मामला। अब यूपी के फर्रुखाबाद में 49 बच्चों की मौत की ख़बर। ये किसी एक्सीडेंट या किसी दुर्घटना का नतीजा नहीं बल्कि लापरवाही का मामला है। इस लापरवाही को सीधे तौर पर बच्चों की हत्या भी कहा जा सकता है।
सरकारी ताम झामों में कमियां, खामियां बच्चों की मौत का कारण बनती हैं। इनमें अधिकतर बच्चे नवजात होते हैं। लेकिन सीएम योगी के गोरखपुर का मामला लापरवाही और सिस्टम में खामियों का नतीजा रहा। इन सबमें बड़ी बात यह थी कि जिन बच्चों की मौतें हुईं वो बेहद गरीब और निचले तबके के परिवारों के बच्चे थे। गोरखपुर में गैरसरकारी अस्पताल भी हैं लेकिन वहां पर ऐसी घटना सुनने को नहीं आयी।
फर्रुखाबाद में भी बिलकुल ऐसा मामला आया। जहां ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत होना बताया गया।
आपको बता दें कि सरकारी अस्पतालों के रखरखाव के लिए यूपी ही नहीं बल्कि पूरे देश में एक बजट होता है लेकिन कमीशन का खेल इस बजट को धता बता देता है।
फर्रुखाबाद के लोहिया अस्पताल में माहभर के भीतर 49 बच्चों की मौत मामले की जांच रिपोर्ट ने एक बार गोरखपुर हादसे की पुनरावृत्ति कर दी। रिपोर्ट में ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत होने का पता चलने पर महकमे में हड़कंप मच गया। डीएम रविंद्र कुमार के आदेश पर सिटी मजिस्ट्रेट जेके जैन ने सीएमओ और महिला सीएमएस के खिलाफ बच्चों के इलाज में लापरवाही और समय पर सूचना न देने की रिपोर्ट दर्ज कराई। कोतवाल अनूप निगम ने बताया कि जांच के बाद कार्रवाई की जाएगी।
लेकिन कमीशन के इस खेल में कितने मासूम अपनी जान गवां बैठे। क्या उन बच्चों की हत्या का केस इन कमीशनखोरों पर नहीं चलना चाहिए। दोषी कोई भी हो उसको वैसे ही सजा मिलनी चाहिए जैसे किसी हत्यारे को मिलती है।
आपको बता दें कि फर्रुखाबाद के जिलाधिकारी ने 30 अगस्त को एसएनसीयू वार्ड का निरीक्षण कर शिशुओं के बारे में जानकारी ली थी। उन्हें बताया गया कि 20 जुलाई से 20 अगस्त के बीच 49 शिशुओं की मौत बीमारी के चलते हुई, जबकि शिशुओं के परिवारीजनों ने ऑक्सीजन न मिलने और इलाज में लापरवाही से बच्चों की मौत होने का आरोप लगाया था। डीएम के आदेश पर सिटी मजिस्ट्रेट, एसडीएम सदर, तहसीलदार सदर की टीम ने पूरे मामले की जांच की।
छानबीन की गई तो प्रथम दृष्टया ऑक्सीजन की कमी के कारण बच्चों की मृत्यु का मामला सामने आया। जिलाधिकारी रविंद्र कुमार का कहना है कि पूरे मामले को गंभीरता से लिया गया है। दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने कहा कि ऑक्सीजन की कमी किन कारणों से हुई है, इसकी विस्तृत जांच कराई जाएगी। इस सवाल का जवाब खोजा जाएगा कि बच्चों को आवश्यकता पड़ने पर कृत्रिम आक्सीजन नहीं मिली या फिर जन्म लेने के बाद सांस लेने के दौरान ऑक्सीजन की कमी प्राकृतिक कारणों से हुई।
प्राथमिक तौर पर लापरवाही की बात सामने आने पर सिटी मजिस्ट्रेट के जरिए रिपोर्ट लिखाई गई है। जिम्मेदार कुछ दिन पहले चार्ज लेने वाले मौजूदा सीएमएस हैं या पूर्व में कार्यरत रहे सीएमओ, यह पुलिस की जांच में पता चलेगा। कोतवाल अनूप निगम ने बताया कि सिटी मजिस्ट्रेट की तहरीर पर रिपोर्ट दर्ज कर ली गई है। जांच के बाद नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।
अब सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि यहाँ सिस्टम में खामियां कब दूर होंगी? कितने बच्चे और इसका शिकार बनेंगे? गोरखपुर में ठीक वैसी ही खामी थी तब भी यूपी के स्वास्थ्यमंत्री नहीं चेते।
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मनीष कुमार