अरबों की सल्तनत, करोड़ों फॉलोवर, एक आवाज पर लाखों लोग अपनी जान दे देने वाले। लेकिन कानून के सामने वो बौना साबित हो गया।
बलात्कार का आरोपी बाबा राम रहीम जिनके पीछे एक बहुत बड़ी सल्तनत खड़ी है। करोड़ों लोग बाबा की सिर्फ एक आवाज पर जान देने को तैयार हो जाते हों, परन्तु जो गुनाह बाबा ने किया था कानून की किताब में शायद ही उस गुनाह की माफी तो दूर की बात सजा ही कम हो।
बाबा राम रहीम और उनके वकीलों ने बचाव में तमाम दलीलें दीं। लेकिन वो काम ना आ सकीं।
बाबा ने कहा कि वो आजीवन गरीबों की सेवा करते आये हैं। लोगों की मदद करते आये हैं। लेकिन जज ने उनकी एक ना सुनी।
आपको बता दें कि रेप के मामले में रोहतक की जिला जेल में बाबा राम रहीम के खिलाफ सजा के फैसले के दौरान कुछ अलग ही नजारा था। एक कुर्सी पर जज थे तो उनके सामने कटघरे में खड़ा था वो व्यक्ति जिसके सामने कभी देश की तमाम हस्तियां एक टांग पर खड़ी रहा करती थीं। इस शख्स के चेहरे पर हवाइयां उड़ी हुई थीं, दहशत में मुंह से शब्द नहीं फूट रहे थे। जुबान बार बार लड़खड़ा रही थी।
मीडिया की खबरों के अनुसार जब कोर्ट की कार्यवाही शुरू हुई तो सबसे पहले सीबीआई के वकीलों ने एक एक कर गुरमीत राम रहीम के गुनाहों को सामने लाना शुरू किया। जज ने दोनों पक्षों को दस-दस मिनट का समय अपनी अपनी-अपनी दलील के लिए दिया। इस वक्त में सीबीआई के वकीलों ने बाबा राम रहीम के लिए सख्त से सख्त सजा की मांग की। यह सुनते ही राम रहीम के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी।
हाथ जोड़कर उन्होंने दलील दी कि वह तमाम उम्र लोगों की मदद करते रहे, समाज की सेवा के लिए कई काम किए। डेरा प्रमुख के वकीलों ने भी दलील दी कि बाबा ने हमेशा समाज की भलाई के लिए काम किया है।
फैसला सुनते ही कुर्सी पकड़कर बैठ गए राम रहीम
दस मिनट तक गुरमीत राम रहीम और उनके वकील जज के सामने डेरे और डेरा प्रमुख के तमाम परोपकारी कामों को गिनवाते रहे, लेकिन सामने बैठे जज पर इन दलीलों का कोई असर होता नहीं दिखा। इसका आभास सामने खड़े डेरा प्रमुख को भी हो गया था।
उन्होंने जज के सामने हाथ जोड़कर खुद को सजा में रियायत की मांग की। लेकिन इन सबसे बेअसर जज ने अपना फैसला पढ़ना शुरू किया। जैसे जैसे जज फैसला पढ़ते रहे सामने खड़े गुरमीत राम रहीम के चेहरे का रंग उड़ता चला गया। जैसे ही जज ने डेरा प्रमुख को दस साल की सजा का ऐलान किया, उनके चेहरे की हवाइयां उड़ गई।
फैसला सुनते ही वह कुर्सी पकड़ कर नीचे बैठ गए। चेहरे पर झर-झर आए आंसुओं को पोंछने की कोशिश करते लेकिन चेहरा फिर भीग जाता। कुछ देर बाद ही वह जोर जोर से जज के सामने रोने लगे। उन्हें ले जाने के लिए जेल के कर्मचारियों ने उठाया तो वह फर्श पर ही बैठ गए। कर्मचारियों ने सख्ती की तो गिड़गिड़ाने लगे और कहीं जाने से इंकार कर दिया। इसके बाद कर्मचारी लगभग उन्हें हाथ पकड़कर खींचते हुए बाहर ले गए। यह नजारा शायद एक सल्तनत के ढहने का था और एक हस्ती के मिटने का।