आये दिन बढ़ते पेट्रोल डीज़ल के दाम की वजह से पहले से ही महंगा पेट्रोल डीज़ल खरीद रहे थे और अब नए खिलासे में यह जानकर सभी भौंचक्के रह गए हैं कि पेट्रोल पंप मालिक 1 लीटर में मात्र 700 से 900 मिलीलीटर पेट्रोल डीज़ल ही देर रहे थे।
देश में ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ चोरी को अंजाम ना दिया जा रहा हो।
अभी कच्चे तेल के दाम अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 50-55 के इर्द गिर्द घूम रहे हैं लेकिन बाबजूद इसके हम महंगा तेल खरीदने को मजबूर हैं और अब ये पंप मालिकों की धोखाधड़ी।
पेट्रोल पंपों में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के जरिए तेल चोरी कर हर साल ग्राहकों को 250 करोड़ रुपये का चूना लगाए जाने का अनुमान है। देश में बिक रहे वाहन इंधनों से चोरी की मात्रा 10 प्रतिशत भी मान ली जाए तो स्पष्ट है कि धोखाधड़ी में शामिल पेट्रोल पंप डीलर ग्राहकों को सालाना भारी चपत लगा रहे हैं। पेट्रोलियम मंत्रालय के आंकड़े के मुताबिक, हर साल 3.5 करोड़ ग्राहक कुल 59,595 सरकारी पेट्रोल पंपों से 2,500 करोड़ रुपये का पेट्रोल-डीजल खरीदते हैं। पेट्रोल-डीजल की खुदरा बिक्री से जुड़े लोगों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स की पकड़ में आया फर्जीवाड़ा तो बस नमूना भर हो सकता है।
एसटीएफ ने सात पेट्रोल पंपों पर छापेमारी की, जहां इंधन आपूर्ति में गड़बड़ी करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल किया जा रहा था। ग्राहक तो डिस्पेंसर में दिख रही तेल की मात्रा के लिए पैसे भरते हैं जबकि उन्हें 10 से 15 प्रतिशत तक कम तेल दिया जाता है। इस मामले के प्रमुख अभियुक्त रविंदर ने इस बात की ओर इशारा किया कि ग्राहकों के साथ यह धोखाधड़ी कितने विशाल पैमाने पर हो रहा है। रविंदर ने माना कि उसने उत्तर प्रदेश के 1,000 पेट्रोल पंपों पर लगी 1,000 डिस्पेंसिंग मशीनों में इलेक्ट्रॉनिक उपकरण लगाए थे।
एसटीएफ ने मामले की जांच के लिए स्पेशल टीम गठित की है। इसी कड़ी में शनिवार को मुरादाबाद जिले के पांच अन्य पेट्रोल पंपों पर भी छापे मारे गए। इधर, पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस रैकेट का भंडाफोड़ करने के लिए यूपी एसटीएफ को मुबारकबाद दिया और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की बात कही।
चिंता की बात यह है कि पेट्रोल पंपों पर ग्राहकों को चूना लगाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है जो शायद पहली बार सामने आया। इससे तेल बाजार को साफ-सुथरा रखने की चुनौती और बढ़ गई है क्योंकि ऐसा माना जा रहा था कि मकैनिकल डिस्पेंसर की जगह इलेक्ट्रॉनिक डिस्पेंसर लगाने के बाद इस तरह की धोखाधड़ी को रोका जा सकेगा। माना जा रहा था कि मकैनिकल डिस्पेंसर के जमाने में कम तेल देने का धंधा चलता था जबकि इलेक्ट्रॉनिक डिस्पेंसर लगने के बाद मिलावट का कारोबार शुरू हो गया। 19 नवंबर 2005 में उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में ही इंडियन ऑइल के युवा फील्ड ऑफिसर एस. मंजूनाथ की मिलावटखोर माफिया ने हत्या कर दी थी।
इंडस्ट्री के अंदर के लोगों का कहना है कि डिस्पेंसिंग मशीनों से छेड़छाड़ का मामला अनुमान से कहीं बड़ा हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि अब लगभग हर पेट्रोल पंप पर इलेक्ट्रॉनिक डिस्पेंसिंग मशीनें ही लगी हैं जिनमें आसानी से उपलब्ध तकनीकी उपकरणों से छेड़छाड़ की जा सकती है। एक तेल कंपनी में काम करनेवाले सीनियर मार्केटिंग एग्जिक्युटिव ने कहा, ‘डिस्पेंसिंग मशीन की सुरक्षा बढ़ाए जाने की दरकार है। ऐसा शायद बेहतर एन्क्रिप्शन और दूसरे तरीकों से संभव है।’
लेकिन, हकीकत यह भी है कि अपनी सीमाओं की वजह से स्वचालन (ऑटोमेशन) भी जमीन पर काम नहीं कर रहा है। एक डीलर ने कहा, ‘टैंकर में आए तेल को पेट्रोल पंप भंडार में खाली करने से पहले मापने के लिए अब भी इसमें डंडा डुबाना पड़ता है।’