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भारत की बड़ी संवैधानिक संस्था में कुत्ते बिल्ली का खेल,? क्या यही है सीबीआई? मनीष कुमार की कलम से

 

 

 

 

भारत की एक बड़ी लोकतांत्रिक, संवैधानिक संस्था, सबसे बड़ी स्वतंत्र जांच एजेंसी… लेकिन खेल कुत्ते बिल्ली का, जी हां बिल्कुल खेल ऐसे चल रहा है जैसे छुटभैये नेता आपस में लड़ रहे हों। यह भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है। और यकीन मानिए यह भारत का एक बड़ा दुर्भाग्य भी है।

 

 

भारत की इस सबसे बड़ी जांच एजेंसी की उसी जांच एजंसी के जरिये जांच हो रही है जिस बड़ी जांच एंजेसी के दो बड़े प्रमुखों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं। जी हां बिल्कुल सही कहा मैंने। अब इसको आप भारत के इतिहास का सबसे काला दिन मानेंगे कि नहीं मानेंगे?

यह खेल कहीं और नहीं बल्कि भारत की सबसे बड़ी और भरोसेमंद कही जाने वालों जांच एजेंसी सीबीआई के दो बड़े दिग्गजों के बीच में हो रहा है।
वही सीबीआई, जब लोग स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की मांग करते हैं तो लोग पुलिस से ज्यादा इसी पर भरोसा करते हैं। किसी बड़े केस की बात आती है तो सीबीआई को पुकारा जाता है। भरोसे की सीबीआई आज भरोसा खो रही है लोगों की हंसी का पात्र बन रही है।
आज जिस तरह के गंभीर आरोप सीबीआई पर लग रहे हैं ये वाकई दुर्भाग्यपूर्ण हैं।

सीबीआई को तोता तो कहा ही जाता था अब सीबीआई को न जाने क्या-क्या कहा जा रहा है।

 

और ये इसलिए हो रहा है है क्योंकि केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआई) ने अपने विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के खिलाफ रिश्वत के आरोपों के संबंध में सोमवार को बड़ी कार्रवाई की है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस मामले में एजेंसी ने डीएसपी देवेन्द्र कुमार को गिरफ्तार किया है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीबीआई प्रमुख और उप प्रमुख को तलब किया है।
बता दें कि जिस राकेश अस्थाना के खिलाफ यह जांच चल रही है उन्हें पीएम मोदी के सबसे करीब वाला बताया जाता है। लोग यहीं नहीं रुकते लोगों का कहना है कि आज अस्थाना सीबीआई में सबसे बड़े पद पर आसीन हैं तो उसकी वजह हैं पीएम मोदी।

 

अब पहले थोड़ा मामला समझिए कि आखिर ये है क्या?

सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना पर घूस लेने का मामला सामने आया।
बता दें कि तेलंगाना वासी सतीश बाबू सना ने अपनी शिकायत में खुलासा किया है कि उसने सीबीआई के विशेष निदेशक को 3 करोड़ रुपये घूस दी थी। जिसके बाद सीबीआई ने स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना, डीएसपी देवेंद्र कुमार, सोमेश प्रसाद, मनोज प्रसाद और अन्य कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज कराया है।

सना ने बताया कि मुझे और मेरे परिवार को झूठे केस में टॉर्चर न किया जाए, इसके लिए मैंने देश की सर्वश्रेष्ठ जांच एजेंसी सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को उनके आदमियों के हाथ कथित तौर पर 2.95 करोड़ रुपए पहुंचा दिए थे। कुल पांच करोड़ की बात हुई थी। बाकी बची राशि का जुगाड़ करने में थोड़ी देरी हो गई तो उन्होंने मेरे खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी करा दिया। मैं अपने बेटे का दाखिला कराने के लिए परिवार के साथ फ्रांस जा रहा था, लेकिन मुझे हैदराबाद एयरपोर्ट पर रोक लिया गया। मैंने किसी तरह उन्हें बीते दस अक्तूबर को बाकी राशि देने का भरोसा दिलाया। कुछ दे भी दिए। फिर उन्होंने दबाव बनाया तो मैंने सीबीआई निदेशक को लिखित शिकायत दे दी। सीबीआई के भीतर करप्शन का कितना बड़ा खेल चलता है।

सतीश बाबू सना के मुताबिक, सीबीआई के डीएसपी देवेन्द्र कुमार ने 9 अक्टूबर 2017 को मुझे पहला नोटिस भेजा। इसमें लिखा था कि मोईन अख्तर कुरैशी मामले में पूछताछ के लिए उसे 12 अक्टूबर को सीबीआई मुख्यालय आना है। मैं चला गया। कुरैशी के साथ क्या संबंध है, ऐसे कुछ सवाल पूछे। मुझे ऑडियो भी सुनाया गया। मैंने अपना बयान दर्ज करा दिया और शाम को घर चला गया। उन्हें बता दिया था कि मैं एक निवेशक हूं, मैने कोई गलत काम नहीं किया।

आठ दिन बाद यानी 17 अक्तूबर को फिर डीएसपी ने नोटिस भेज दिया। मैं 23 अक्तूबर को पेश हुआ तो फिर वही पहले वाले सवाल। मैंने बता दिया कि कुरैशी की ग्रेट हाइट इंफ्रा कंपनी में 50 लाख रुपए निवेश किए थे। आयकर विभाग में भी यह सब जानकारी है। 1 नवम्बर 2017 को फिर बुला लिया। वही सवाल और वही जवाब चलते रहे। हां, इस बार वहां पर सुकेश गुप्ता, शब्बीर अली और कुरैशी भी मौजूद थे। जांच अधिकारी देवेंद्र कुमार बोला कि मैंने वेनपिक केस के पचास लाख दिए हैं। मैंने इस बात से इंकार कर दिया और लिखित में कहा कि मेरा इस केस से कोई लेना-देना नहीं है। फिर भी नोटिस आते रहे।

बतौर सतीश बाबू, दिसंबर में मैं दुबई चला गया। वहां मनोज प्रसाद नाम के व्यक्ति से मिला। उसने सोमेश से मिलवाया। सोमेश ने सीबीआई के अफसर से फोन पर बात करा दी। मुझसे कहा, पांच करोड़ दे दो, नोटिस नहीं आएगा। 3 करोड़ एडवांस देने होंगे और बाकी चार्जशीट फाइल करते समय दे देना। पक्का क्लीन चिट मिल जाएगी।

सोमेश ने अपने मोबाइल के वाटसेप की डीपी की फोटो दिखाई। उसने बताया, ये राकेश अस्थाना हैं। फोटो वर्दी में थी। मैंने गूगल पर चेक किया तो वह फोटो स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना की थी। यह सोचकर कि ये लोग परिवार को भी परेशान करेंगे, मैंने सोमेश को एक करोड़ दे दिए। दिल्ली प्रेस क्लब की पार्किंग में भी पेमेंट की गई। सोमेश ने एक फोन भी सुनवाया, जिसमें सीबीआई का आला अफसर अपने मातहत अधिकारी को यह मामला निपटाने का आदेश दे रहा है।

सोमेश का यह भी कहना था कि अस्थाना लंदन में मेरे घर पर ही ठहरते हैं। मैं उनका निवेश का काम धंधा भी संभालता हूं। अब तक 2.95 करोड़ दिए जा चुके थे। इसके बाद कुछ माह तक सब शांत रहा, लेकिन इस साल फिर से नोटिस आने लगे। फिर वही सवाल होने लगे।

25 सितंबर 2017 को मुझे परिवार के साथ पेरिस जाना था। हमें एयरपोर्ट पर यह कह कर रोक दिया कि आपके खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी हुआ है। मैंने डीएसपी देवेंद्र से सम्पर्क किया। वे बोले, हमें बताए बिना विदेश क्यों जा रहे थे। वह मुझे संयुक्त निदेशक सीबीआई साई मनोहर के पास ले गए। बोले, मैं झूठ बोल रहा हूं।

तीन अक्टूबर को मुझे फिर बुलाया। इस बीच मैंने (दिराम) विदेशी मुद्रा के रूप में उन्हें 11 लाख रुपए दे दिए। इसके अलावा मनोज प्रसाद के आदमी पुनीत को भी 25 लाख दे दिए। सीबीआई वाले फिर दबाव बनाने लगे। जब देखा कि इनकी भूख बढ़ती जा रही है तो मैंने सीबीआई निदेशक को इनकी शिकायत दे दी।

खैर अब बात आती है कि सीबीआई में ऐसा क्या हो गया कि नंबर एक पद पर तैनात सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा की नंबर दो पर काम करने वाले स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना से नहीं बनी? और नंबर तीन पर तैनात ज्वायंट डायरेक्टर एके शर्मा भी अपने सीनियर राकेश अस्थाना के खिलाफ हो गए? जबकि सब जानते हैं कि ये तीनों अफसर नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद सीबीआई में लाए गए थे।

सीबीआई में नंबर दो बनने वाले राकेश अस्थाना गुजरात पुलिस के अफसर थे। सूरत के पुलिस कमिश्नर के तौर पर वे आसाराम जैसे आपराधिक केस देख रहे थे। आलोक वर्मा सीबीआई डायरेक्टर बनने से पहले दिल्ली के पुलिस कमिश्नर थे। एके शर्मा की तैनाती भी अस्थाना की तरह गुजरात में थी और वे भी वहां की सरकार के खास पुलिस अफसर बताए जाते थे।

हमारे सूत्र बताते हैं कि जिन अफसरों को इतनी मशक्कत के बाद पीएमओ ने सीबीआई दफ्तर भेजा वे आपस में कुत्ते बिल्ली की तरह लड़ रहे हैं। इससे सरकार की नींद उड़ गई है।
बताया जा रहा है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्तर पर सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना से बात हुई। लेकिन इतने ऊपरी हस्तक्षेप के बाद भी मामला सुलझा नहीं बल्कि और बिगड़ गया।
अब इसमें कोई रॉ की भूमिका बता रहा है तो कोई कांग्रेस की साजिश।
मामला जो भी हो लेकिन इस तरह की आपसी लड़ाई ने एक बड़ी लोकतांत्रिक संस्था से लोगों का विश्वास उठा दिया है। इसपर सरकार और सीबीआई को गंभीर रूप से विचार करना होगा।

 

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मनीष कुमार

 

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