सबसे पहले नज़र डालते हैं रुपये की हालत पर। 2014 में जब लोकसभा चुनाव हो रहे थे तब मोदी ने बड़े ही जोर शोर से चुनावी वादा किया था कि वो रुपये की हालत को ठीक कर देंगे। उन्होंने रुपये की गिरती साख के लिए तत्कालीन सरकार को जिम्मेदार ठहराया था।
लेकिन अब जब रुपये के मुकाबले डॉलर दिनों दिन मजबूत होता जा रहा है और रुपया गिरता जा रहा है तो ऐसे में बता दें कि 2014 में एक डॉलर की कीमत 60 रुपये के आस पास थी लेकिन आज 65 तक जा पहुंची है इतना ही नहीं एक वक्त तो एक डॉलर की कीमत 68 रुपये तक जा पहुंची थी।
आंकड़े जनवरी 2012 से नवंबर 2017 तक के हैं
लेकिन केंद्र सरकार रुपये की गिरती हुई कीमत की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं है।
आज डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये 10 पैसे की कमजोरी के साथ 64.51 के स्तर पर खुला है। जबकि मंगलवार के सत्र में रुपया 9 पैसे की बढ़त के साथ 64.41 के स्तर पर, जो कि दो महीने का उच्चतम स्तर है, पर बंद हुआ था। डॉलर के मुकाबले रुपये में तेजी या कमजोरी का सीधे तौर पर आम आदमी से सरोकार होता है।
रुपये की मजबूती और कमजोरी से आम आदमी पर बड़ा फर्क पड़ता है। अगर रुपया कमजोर होता है तो कई चीजें मेंहंगी हो जाती हैं।
रुपए के कमजोर होने से अब विदेश की यात्रा आपको थोड़ी महंगी पड़ेगी क्योंकि आपको डॉलर का भुगतान करने के लिए ज्यादा भारतीय रुपए खर्च करने होंगे।
अगर आपका बच्चा विदेश में पढ़ाई कर रहा है तो अब यह भी महंगा हो जाएगा। अब आपको पहले के मुकाबले थोड़े ज्यादा पैसे भेजने होंगे। यानी अगर डॉलर मजबूत है तो आपको ज्यादा रुपए भेजने होंगे। तो इस तरह से विदेश में पढ़ रहे बच्चों की पढ़ाई भारतीय अभिभावकों को परेशान कर सकती है।
डॉलर के मजबूत होने से क्रूड ऑयल भी महंगा हो जाएगा। यानि जो देश कच्चे तेल का आयात करते हैं, उन्हें अब पहले के मुकाबले (डॉलर के मुकाबले) ज्यादा रुपए खर्च करने होंगे। भारत जैसे देश के लिहाज से देखा जाए तो अगर क्रूड आयल महंगा होगा तो सीधे तौर पर महंगाई बढ़ने की संभावना बढ़ेगी।
वहीं अगर डॉलर कमजोर होता है तो डॉलर के मुकाबले भारत जिन भी मदों में पेमेंट करता है वह भी महंगा हो जाएगा। यानी उपभोक्ताओं के लिहाज से भी यह राहत भरी खबर नहीं है।
सरकार रुपये को मजबूत करने में सक्षम नज़र आ रही है। और ना रुपये की हालत सुधर रही है। पीएम मोदी ने चुनाव से पहले जो वायदे किये थे उनमें रुपये को प्राथमिकता देते हुए बड़ा जोर दिया था लेकिन 3 साल बीत जाने के बाद भी रुपया लगातार कमजोर होता जा रहा है। यानि कि ये भी बाकी की तरह एक जुमला निकला और आम जनता को राहत सिर्फ चुनावी वायदा रहा।
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